Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 09 10
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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८२ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
[ १०।१ * सूत्रार्थ - मोहनीय कर्म के क्षय होने पर ज्ञानावरण, दर्शनावरण तथा अन्तराय कर्मों का क्षय होता है तदनन्तर केवल ज्ञान, केवल दर्शन प्रकट होते हैं।
अर्थात् पूर्वोक्त चार कर्म प्रकृतियों का क्षय केवल ज्ञान, केवल दर्शन के उद्भव/प्राकट्य का हेतु है॥१०-१॥
* विवेचनामृतम् * निर्जरा से कर्मक्षय होता है किन्तु आठों कर्मों का क्षय एक साथ नहीं होता है। प्रथमत: चार घाती कर्मों का क्षय होता है तदन्तर चार अघाती कर्मों का क्षय होता है। यहाँ चार अघाती कर्मों का क्षय से आत्मा में कौन सा गुण प्रगट होता है? इस सन्दर्भ में प्रस्तुत सूत्र कहता है कि मोहनीय कर्म का क्षय होने से ज्ञान-दर्शनावरण के तथा अन्तराय कर्म के क्षय से केवल ज्ञान उत्पन्न होता है।
इन चार कर्मप्रकृतियों का क्षय केवल ज्ञान का हेतु है। सूत्र में मोह के क्षय से ऐसा पृथग् ग्रहण-क्रम दर्शनाने के अभिप्राय से निर्देशित है- ऐसा विधिवत् समझना चाहिए।
तात्पर्य यह है कि सर्वप्रथम मोहनीय कर्म क्षीण होता है तदन्तर अन्तर्मुहूत मात्र में ज्ञानावरण दर्शनावरण और अन्तराय- इन तीनों कर्मों का एक साथ क्षय होने पर पंचम केवल ज्ञान उत्पन्न होता है॥१०-१॥
मोहनीयादि कर्मणां क्षये को हेतु रिति कृत्वा प्रोच्यते卐 सूत्रम् -
बन्धहेत्वभावनिर्जराभ्यानम् ॥१०-२॥
॥ सुबोधिका टीका ॥ ___ इत: पूर्वमष्टमाध्याये मिथ्यादर्शनाविरति प्रमाद-कषाय योगा: बन्धन हेतवः प्रतिपादिताः सन्ति। बन्धहेतूनामभावात् संवरः प्रतिपद्यते।
नवमाध्याये प्रोक्तं तावत्-आस्रवनिरोधः संवरः-१। सम्यक्त्वमावृणोति मिथ्यात्वम्। मिथ्यात्वस्य-दर्शनमोहनीयं + कर्मणोऽभावन्मिथ्या-दर्शनं सम्भवति संवरः। ततश्च निसर्गादधिगमाद्वा तत्त्वार्थश्रद्धानरूपं सम्यग्दर्शनं संजायते। एवमेव अविरत्यादि सन्दर्भेष्वपि ज्ञेयम्।
बन्धत्वहे + तोरभावात्-संवर निर्जराभ्यां मोहनीयादि- कर्मपाणां क्षयो भवति।
* सूत्रार्थ - बन्ध हेतु के अभाव से अर्थात् संवर से तथा निर्जरा से मोहनीय आदि कर्मों का क्षय होता है।