Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 09 10
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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९।१ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
[ ७५ आचार्योपध्यातपस्विशैक्षक + ग्लान + गण + कुल संघ साधु + समनोज्ञाम् ॥२४॥ वाचना-पृच्छनाऽनुप्रेक्षाम्नाय धर्मोपदेशाः॥२५॥ बाह्यभ्यन्तरोपध्योः॥२६॥ * हिन्दी पद्यानुवाद -
भेद नव है प्रायश्चित्त के, एवं विनय के चार हैं, दशभेद वैयावच्च के हैं, स्वाध्याय के भी पाँच हैं। व्युत्सर्ग तप के भेद दो हैं, तत्त्वार्थ से व्याख्यात है, ध्यान के है भेद चारों, शुचि ध्यान मार्ग निर्माण हैं । आलोचना अरु प्रतिक्रमण फिर उभय विवेक है, व्युत्सर्ग तप औ छेद अष्टम, परिहार अनेक हैं। उपस्थापन इन नव भेद से, प्रायश्चित्त पहचानिये, ज्ञान-दर्शन चरण औ उपचार से विनय को भी जानिये॥ दशभेद वैयावच्च के हैं, आचार्य और वाचक वरा, तपस्वी फिर शिष्य चौथा, ग्लान गण कुल सुन्दरा। संघ चार प्रकार साधु, दशम समशील मानिये, इन दशों की पंच विध कर सुश्रुषा सुख मानिये॥ वाचना औ पृच्छना शुभ अनुप्रेक्षा भावना, परावर्तन कर सूत्र का, धर्म की उपदेशना। पंचविध स्वाध्याय को, समझो करो तुम सेवना, बाह्य-अन्तर उपधि छोड़ो, व्युत्सर्ग शुभ कामना।
* ध्यान स्वरूप * ॐ सूत्राणि -- - उत्तम + संहनन + स्थैकाग्रचिन्ता + निरोधो + ध्यानम् ॥२७॥ आमुहूर्तात् ॥२८॥ आर्तरौद्र + धर्मशुक्लानि ॥२९॥ परे मोक्ष + हेतू ॥३०॥
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