Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 09 10
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

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Page 85
________________ ७० ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ ९।१ ६. लेश्या - पुलाक में तेज, पद्म और शुक्ल ये तीन लेश्याएं होती हैं। बकुश और प्रतिसेवना कुशील में छ: लेश्याएं होती हैं। कषायकुशील यदि परिहार विशुद्ध चारित्र वाला हो तो तेज आदि तीन लेश्याएं होती है और यदि सूक्ष्म सम्पराय चारित्र वाला हो तो एक शुक्ल लेश्या ही होती है। निर्ग्रन्थ और स्नातक में शुक्ल लेश्या ही होती है। अयोगी स्नातक अलेश्य ही होता है। ७. उपपात - पुलाक आदि चार निर्ग्रन्थों का जघन्य उपपात, सौधर्मकल्प में पल्योपम पृथकत्व स्थिति वाले देवों में होता है, पुलाक का उत्कृष्ट उपपात सहस्रार कल्प में बीस सागरोपम की स्थिति में होता है। बकुश और प्रतिसेवना कुशील का उत्कृष्ट उपपात आरण और अच्युतकल्प में बाईस सागरोपम की स्थिति में होता है। कषाय-कुशील और निर्ग्रन्थ का उत्कृष्ट उपपात सर्वार्थ सिद्ध विमान में तैंतीस सागरोपम की स्थिति में होता है। स्नातक का निर्वाण ही होता है। ८. स्थान - कषाय और योग का निग्रह ही संयम है। संयम सबका, सदैव समान नहीं होता है। कषाय और निग्रह के तारतम्य से ही संयम की तारतम्यता सुनिश्चित होती है। संयम स्थानों में जघन्य स्थान पुलाक और कषाय कुशील के होते हैं। ॥ इति नवमोऽध्यायः॥ ॥

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