Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 09 10
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

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Page 77
________________ श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ ९।१ होता है। वह स्थिति शुक्लध्यान की स्थिति है। गजसुकुमाल मुनि के मस्तक पर अंगार भर देने पर भी वे मरणान्तक पीड़ा से अकम्पित, अचंचल रहते हुए शुक्लध्यान में लीन रहे। चित्त की ऐसी निर्मलता व स्थिरता- शुक्लध्यान कहलाती है। शुक्लध्यान के दो भेद किए गए है शुक्लध्यान एवं परशुक्लध्यान। चतुर्दश पूर्वधर तक का ध्यान शुक्लध्यान कहलाता है। तथा केवली भगवान् का ध्यान परमशुक्लध्यान कहलाता है। जैनागमों में कहा है कि 'सूक्ष्मक्रिया प्रतिपाति' ध्यान केवली वीतराग आत्मा को ही होता है। जब आयुष्य का बहुत कम समय (अन्तर्मुहूर्त) शेष रह जाता है उस समय वीतराग आत्मा में योगनिरोध की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है। आत्मा, चौदहवें गुणस्थान की श्रेणी में आरुढ़ होकर अयोगी केवली बन जाता है। यह परम निष्कम्प, समस्त क्रिया योग से मुक्त ध्यान स्थिति है। इस स्थिति में पुन: उस ध्यान से निवृत्ति नहीं होती है। अतएव इसे समुच्छिन्न क्रियानिवृत्ति या व्युपरत क्रिया निवृत्ति कहते हैं। 卐 मूल सूत्रम् - पृथक्त्वैकत्व वितर्क सूक्ष्म क्रिया प्रतिपाति व्युपरत क्रिया निवृत्तीनि॥४१॥ ॐ सुबोधिका टीका है पृथक्त्वेति। चत्वारि शुक्लध्या नानि भवन्ति तानि च पृथक्त्वैकत्ववितर्कसूक्ष्मक्रिया प्रतिपाति क्रियानिवृत्तिरूपाणीति। शुक्लध्यानस्यापि चत्वारो भेदा: सन्ति १. पृथकत्ववितर्कसविचार: २. एकत्ववितर्क निर्विचारः ३. सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाती ४. व्युपरतक्रिया निवृत्तिः। * सूत्रार्थ - पृथक्त्ववितर्क, एकत्ववितर्क, सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाती और व्युपरतक्रियानिवृत्तिये चार शुक्लध्यान है। * विवेचनामृतम् * शुक्लध्यान के चारों प्रकारों पर विवेचन इस प्रकार किया जा सकता है - १. पृथक्त्व वितर्क सविचार - पृथक्त्व का अर्थ है- भेद। वितर्क का अर्थ हैतर्कप्रधानचिन्तन। इस ध्यान में श्रुतज्ञान का सहारा लेकर वस्तु के विविध भेदों पर सूक्ष्मातिसूक्ष्म चिन्तन किया जाता है।

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