Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 09 10
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

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Page 76
________________ ९।१ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे * अथ शुक्लध्यानम् * 卐 मूल सूत्रम् - शुक्ले चाद्ये ॥३६॥ 卐 सुबोधिका टीका शुक्ल इति। उपशान्त मोह- क्षीणमोहयो: आद्य-द्वे ध्याने शुक्लध्याने भवतः। एते ध्याने शुक्लध्याने पूर्वधरस्य भवतः। उपशान्तकषाय-क्षीणकषायनामैकादश-द्वादश गुणवर्ति जीवानाम् आद्ये शुक्लध्याने पृथकत्व-वितर्केकत्व वितर्केपूर्वविदो भवतः। अत्र पूर्वविदः इत्यस्य तात्पर्यमस्ति- श्रुतकेवलिन इति। अर्थात् शुक्लध्यानस्याधिप: श्रुतकेवलीति। * सूत्रार्थ - अपशान्तमोह और क्षीणमोह में पहले के दो शुक्लध्यान सम्भव है। ये दो शुक्लध्यान पूर्वधर को होते हैं। * विवेचनामृतम् * अशान्त कषाय और क्षीण कषाय गुणस्थान में धर्मध्यान भी होता है तथा आदि के शुक्लध्यान भी होते हैं। यहाँ पूर्वविद का अर्थ है श्रुतकेवली। श्रुतकेवली के आदि के दो शुक्लध्यान भी होते हैं। शुक्ल ध्यान के स्वामी श्रुतकेवली ही होते हैं। 卐 मूल सूत्रम् - परे केवलिनः॥४०॥ # सुबोधिका टीका है पर इति। सूक्ष्मक्रिया प्रतिपाति-व्युपरतक्रिया निवृत्ति एतद्-ध्यानद्वयं केवलिन: भवत:। परे अन्तिम द्वे ध्याने केवलिन एव भवतः, न तु छद्मस्थस्य। केवलिन: त्रयोदश चतुर्दश गुणस्थावतो भवन्ति। सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति: त्रयोदशे गुणस्थाने तथा व्युपरतक्रियानिवृत्ति नामकं शुक्लध्यानं चतुर्दशे गुणस्थाने भवतः। * सूत्रार्थ - अन्त के सूक्ष्म क्रिया प्रतिपाति एवम् व्युपरत क्रिया निवृत्ति नामक दो ध्यान केवली भगवान के ही होते हैं। * विवेचनामृतम् * ध्यानावस्था में अनेक उपसर्ग होते हैं परन्तु उत्कृष्ट ध्यानियों का ध्यान, उनसे भंग नहीं

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