Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 09 10
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

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Page 31
________________ १६ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ ९।१ पाक्षिक अतिचार में चतुर्थ महाव्रत के विषय में (ब्रह्मचर्य के विषय में) नौ वाडों के नाम का निर्देश गाथा द्वारा स्पष्ट है - वसहिकह निसिल्जिंदिय, कुड्डितरपुव्वकीलिए पणिए। अइमायाहार विभुसणाई नवबंभचेर-गुत्तीओ॥ भावार्थ - वसति आदि नौ गुप्तियों(नौ वाडों) का भाव सारांश इस प्रकार है। १. वसति - जहाँ स्त्री, पशु, नपुंसक रहते हो- ऐसी वसति (आवास) में नहीं रहना चाहिए। २. कथा - कामवर्धक स्त्री कथा नहीं करनी चाहिए। ३. निषद्या - जिस स्थान पर स्त्री बैठी हुई हो उस स्थान पर उस स्त्री के उठने के ४८ मिनट, तक पुरूष (साधक) को नहीं बैठना चाहिए। ४. इन्द्रिय - स्त्री के अंगोपांगों का, इन्द्रिय का निरीक्षण नहीं करना चाहिए। ५. कुड्यान्तर - जहाँ दीवार के सहारे से, पास के घर (कक्ष) आदि से पति-पत्नि के संभोग सम्बन्धी आवाज, या रत्यालाप सुनाई दे रहें हो, उस स्थान का त्याग करना चाहिए। ६. पूर्वक्रिडित - गृहस्थावस्था में की गई कामक्रीड़ा का स्मरण भी नहीं करना चाहिए। ७. प्रणीत आहार - अत्यन्त स्निग्ध तथा मधुर दूध, दही आदि के आहार का त्याग करना चाहिए। ८. अप्रणीत आहार - अतिमात्र भोजन का भी त्याग करना चाहिए। अप्रणीत आहार का तात्पर्य अतिमात्र भोजन से है। अर्थात् ऊनोदरी व्रत का सदैव पालन करना चाहिए। ९. शरीर तथा उपकरणों की साज-सज्जा की अभिलाषा भी नहीं रखनी चाहिए। उक्त नव (नौ) गुप्तियों का अहर्निश परिपालन नितान्त आवश्यक है। ब्रह्मचर्य की पाँच भावनाओं का परिपालन भी अनिवार्यत: होना चाहिए ॥८-६॥ धर्मानन्तरं संवरकारणेष्वनु प्रेक्षोल्लेखत्वात् अनुप्रेक्षारूपेण द्वादश भावनास्वरूपं विशदीकरोति 卐 सूत्रम - अनित्याशरण संसारैकत्वान्यत्वाशुचित्वास्रव संवर निर्जरालोकबोधिदुर्लभ - धर्मस्वाख्याततत्त्वानुचिन्तनमनुप्रेक्षा॥८-७॥

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