Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 09 10
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

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Page 72
________________ 1 श्री तत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ ५७ * सूत्रार्थ - प्रिय / रमणीय विषयों का वियोग होने पर उनकी प्राप्ति के लिए पुन: पुन: चिन्तन करना तीसरा आर्तध्यान कहलाता है। ९ । १ * विवेचनामृतम् * चित्ताकर्षक, रमणीय अभीष्ट विषयों का संयोग होने के पश्चात् वियोग भी होता है। वस्तुतः संयोग का अन्तिम चरण वियोग ही होता है । अभीष्ट वस्तु का वियोग होने के पश्चात् उसे पुन: प्राप्त करने के लिए चित्त की विकलता ही तीसरा आर्तध्यान है। इसे इष्ट वियोग आर्तध्यान भी कहते है । 5 मूल सूत्रम् - निदानं च ॥३४॥ सुबोधिका टीका निदानमिति । काम भोगासक्तानां विषयसुखतृष्णावतां गृद्धानां निदानमार्त ध्यानम् । ये + जीवात्मान: काम + भौगैर + तृप्ताः ते व्रतचारित्रफलस्वरूपेण सांसारिक विषयान् अभिलषन्ति यद्वा तदर्थमेव संयमधारिणो भवन्ति । एवं प्रकारकानां जीवानामियं भावना भवति यत् व्रतचारित्रप्रभावेन परलोके तत् तत् फलानां प्राप्तिः स्यात् । एतत् प्रकारक: संकल्प :- निदानमार्तध्यानमिति । * सूत्रार्थ - अप्राप्त वस्तु की प्राप्ति के लिए सतत कामना चिन्ता करना चौथा आर्तध्यान कहलाता है। * विवेचनामृतम् * अप्राप्त वस्तु, विषय-वासना आदि के प्रति जिनकी लालसा अभी तक समाप्त नहीं हुई है ये जीवात्मा व्रत चारित्र के फलस्वरूप भी भोग- कामना करते रहते हैं- उनका यह सतत कामैषणा सहित चिन्तन निदान नामक चतुर्थ आर्तध्यान कहलाता है। 5 मूल सूत्रम् - तदविरतदेश + विरत + प्रमत्त + संयतानाम् ॥३५॥ तदिति । तद्- आर्तध्यानम् - अविरत - देशविरत - प्रमत्त संयत- गुणस्थानेषु एव सम्भाव्यते । एतत् आर्तध्यानं चतुर्थ-पंचम - षष्ठ- गुणस्थानवर्त्तिजीनामेवात्र उल्लेखः । पूर्वसूत्रेषु आर्तध्यानभेदानामधिकारिणां च वर्णनमस्ति । दुःखोत्पत्तेः प्रमुखकारणचतुष्टय सन्ति- १. अनिष्ट वस्तुसंयोगः २ . इष्टवस्तु वियोग: ३. प्रतिकूलवेदना ४. भोगलिप्सा चेति ।

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