Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 09 10
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

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Page 48
________________ श्री तत्त्वार्थाधिगमसूत्रे सुबोधिका टीका चरित्रमोहइति । चरित्रमोहनीय - कर्मोदयाद् एते सप्त परिषहाः भवन्ति - नयपरिषह - अरतिपरिषह - स्त्रीपरिषह - निषद्यापरिषह - आक्रोश परिषह - याचनापरिषह - सत्कार पुरस्कार परिषहरूपाः । ९ । १ 1 ३३ * सूत्रार्थ - चरित्र मोह के उदय से नएयपरिषह अरतिपरिषह, स्त्रपरीषह, निषद्यापरिषह, आक्रोशपरिषह, याचनापरिषह तथा सत्कार - पुरस्कार परिषह होते हैं। * विवेचनामृत निर्ग्रन्थ लिङ्ग धारणा तथा तदर्थ आई हुई विपत्तियों को नयपरिषह कहते है । अनिष्ट पदार्थों के योग में अप्रतीति स्परूप भाव होन के कारण को अरतिपरिषह कहते है । ब्रह्मचर्यव्रत भङ्ग करने की अपेक्षा से स्त्रियों की चेष्टाओं को सहने की स्थिति को स्त्रीपरिषह कहते है । स्थिर सुखासन की कठिनता का अनुभव निषद्यापरिषह कहलाता है। सुसाधु के विषय में अज्ञानी मनष्यों द्वारा लगाए गए मिथ्या आरोप 'आक्रोशपरिषह' कहलाते हैं। संक्लेश=विपत्ति के समय उस विपत्ति को दूर करने के लिए अपने लिए वस्तु को मांगनायाचना परिषह कहते है । योग्यता अर्हता के रहने पर भी योग्य पद या सम्मान को नहीं प्राप्त कर पाना-‘सत्कार- पुरस्कार परिषह' कहते हैं। ये सातों परिषह चारित्र मोह के उदय के कारण होते है। 5 सूत्रम् - वेदनीये शेषा: ॥ ६-१३॥ सुबोधिका टीका वेदनीय इति । शेषा:= अवशिष्टाः, एकादश परिषहा : वेदनीय कर्मोदयाद् भवन्ति । एते जिने भवन्ति-इति पूर्वमुक्तम्। एकादश परिषहानां नामानि चेथयम् प्रज्ञा परिषहः अज्ञान परिषहः, अदर्शनपरिषहः, अलाभपरिषहः, नाग्य परिषहः, अरतिपरिषहः, स्त्रीपरिषहः, निषद्या परिषहः, आक्राश परिषहः, याचनापरिषहः, सत्कार - पुरस्कार परिषहः । एतेभ्यः शेषा एकादश परिषहाः । यथा- क्षुधापरिषहः, पिपासापरिषहः, शीतपरिषहः, शय्यापरिषहः, वधपरिषहः, रोगपरिषहः, तृणस्पर्शपरिषहः, मलपरिषहश्चेति । * सूत्रार्थ - पूर्वोक्त परिषहों के अतिरिक्त बचे एकादश परिषह वेदनीय कर्म के उदय से होते हैं। * विवेचनामृत प्रज्ञा परिषह, अज्ञान परिषह, अदर्शन परिषह, अलाभ परिषह, नय परिषह, अरतिपरिषह, स्त्रीपरिषह, निषद्यापरिषह, आक्रोश परिषह, याचना परिषह तथा सत्कार - पुरस्कार परिषह के

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