Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 09 10
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

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Page 58
________________ ९।१ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे * वैयावृत्य भेदा: * 9 सूत्रम् - आचार्योपध्यायतपस्वि शैक्षकग्लानगण कुलसङ्घ साधु समनोज्ञानाम् ॥२४॥ है सुबोधिका टीका ___ आचार्योपध्योयेति। वैत्यावृत्यस्य दशभेदा: सन्ति आचार्य:, उपाध्यायः, तपस्वी, शैक्षक:, ग्लान:, गणः, कुल:, संघ:, साधुः समपनोज्ञश्चेति। वैयावृत्यं तावत् सेवारूप:। सेवायोग्यानां सङ्ख्या दश वर्तते। अतएव वैयावृत्यस्य दशभेदा: सन्ति। तद् यथा- आचार्य वैयावृत्यम्, उपाध्याय वैयावृत्यम् तपस्वि वैयावृत्यम, शैक्षिकवैयावृत्यम्, ग्लानवैयावृत्यम्, कुलवैयावृत्यम्, गणवैयावृत्यम्, संघ वैयावृत्यम्, साधुवैयावृत्यम्, समनाज्ञ वैयावृत्यमिति। __ मुख्यरूपेण यस्य कार्यं व्रतप्रदानम् आचारण शिक्षणं च भवति स आचार्यः। मुख्यत: यस्य कार्यं श्रुताभ्यास शिक्षणं भवति स उपाध्यायः। महत: उग्रस्य वा तपस: कर्ता 'तपस्वी'। नवदीक्षितो भूत्वा शिक्षार्थी (विद्यार्थी) शैक्षः। शिक्षामर्हतीति शैक्षः। रोगादिभिः क्षीण: ग्लानः। स्थविर संतति संस्थितिर्गण:। आचार्यसंततिसंस्थिति: कुलम्। चतुर्विधः श्रमण-श्रमणी-श्रावकश्राविका रूप: संघः। प्रवज्या धारिण: साधवः। ज्ञानादिगुणैः समाना: समानशीला: समनोज्ञाः। एतेषां सेवा-शुश्रुषा नाम वैयावृत्यम्। * सूत्रार्थ - वैयावृत्य दश प्रकार का होता है- आचार्य वैयावृत्य, उपाध्याय वैयावृत्य, तपस्विवैयावृत्य, शैक्षिक वैयावृत्य, ग्लानवैयावृत्य, गणवैयावृत्य, कुलवैयावृत्य, संघवैयावृत्य, साधुवैयावृत्य, समनोज्ञवैयावृत्य। * विवेचनामृतम् * वैयावृत्य, सेवा, शुश्रुषा, पर्युपासना आदि अनेक नामों से जैन धर्म में व्याख्यात है। वस्तुत: इसका जीवन के साथ घनिष्ट सम्बन्ध है। इसमें 'परस्परोपग्रहो जीवानाम्' तथा परस्परं भावयन्त: श्रेय: परमावाप्स्यथ की अनुस्यूतता/एकात्मकता अनुभूत होती है। भगवान् महावीर स्वामी से एक बार गणधर गौतम ने प्रश्न किया- प्रभो वैयावृत्य का आपने बहुत महत्व बताया है किन्तु कृपया यह भी बताइये कि इस वैयावृत्य के द्वारा आत्मा को किस फल की प्राप्ति होती हैभगवान् महावीर स्वामी ने कहा यावच्चेणं तित्थयर नाम गोयं कम्म निबंधेइ १. उत्तराध्ययन- २९/३

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