Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 09 10
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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४८ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
[ ९।१ अर्थात् जिसने ममत्व वृत्ति का त्याग कर दिया है। वास्तव में उसी ने संसार का त्याग कर दिया है। वास्तव में उसी ने मोक्ष का मार्ग देखा है, जिसके मन में किसी भी भौतिक वस्तु के प्रति, शरीर के प्रति भी ममत्व नहीं है। संसार का सबसे बड़ा बन्धन है- 'ममत्व'।
ममत्व बुद्धि के परिहार के लिए प्रदर्शित उपायों एवं साधनो में प्रमुख है- व्युत्सर्ग। ॐ सूत्रम् - उत्तम संहननस्यैकाग्र चिन्तानिरोधो ध्यानम् ॥२७॥
आमुहूतात्॥२८॥
# सुबोधिका टीका उत्तमेति। वज्रर्षभ संहननार्द्धवज्र संहनन-नाराच-संहननानि तावत् उत्तम संहननानि कथ्यन्ते। एतैः संहननै र्युक्तो जीवो यदा एकाग्रचित्तो भूत्वा चिन्ता निरोधं करोति तद् ध्यानम् उच्यते।
उत्तम संहननवत एकस्मिन् विषये अन्त:करण वृत्ते: स्थापनं ध्यानमिति भावः।
तद्ध्यानं मुहूर्तं यावत् अन्तमूहर्तपर्यन्त मेव भवतीति तात्पर्येणाह- आ मुहूर्त्ता दिति। आचार्य हेमचन्द्र सूरिणापि योगशास्त्रे वर्णितम् मुहूर्तान्तर्मन: स्थैर्य ध्यानं छद्मस्थ योगिनाम्।
* सूत्रार्थ - उत्तम संहनन वाले का एक विषय में अन्त: करण की वृत्ति का स्थापन ध्यान कहलाता है ॥२७॥ वह ध्यान मुहूर्त पर्यन्त या अन्तमुहूर्त पर्यन्त रहता है॥२८॥ .
* विवेचनामृतम् * ___ छ: प्रकार के संहननों/शारीरिक संघटनों में वज्रर्षभ अर्धवज्रर्षभ और नाराच- ये तीन उत्तम माने जाते हैं। उत्तम संहनन वाला ही ध्यान का अधिकारी होता है।
ध्यान, अधिक से अधिक एक मुहूर्त तक होता है। ध्यान के सन्दर्भ में अधिकारी, स्वरूप और काल का परिणाम- ये तीन तथ्य शास्त्रों में उल्लिखित है
१. अधिकारी - षट् प्रकार के संहननों (निरोधों) में वज्रर्षभ नाराच, अर्धवज्रर्षभ नाराच और नाराच ये तीन उत्तम माने जाते हैं। उत्तम संहनन वाला ही ध्यान का अधिकारी होता है क्योंकि ध्यान करने में आवश्यक मानसिक बल के लिए जितना शारीरिक बल आवश्यक है- वह उक्त तीन संहनन वाले शरीर में संभव हैं, शेष तीन संहनन वाले में नहीं। मानसिक बल का एक प्रमुख आधार शरीर है और शरीर बल शारीरिक संघटन पर निर्भर करता है। अत: उत्तम संहनन वाले के