Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 09 10
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

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Page 32
________________ ९।१ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ १७ 卐 सुबोधिका टीका है अनित्याशरणेति। द्वादशानुप्रेक्षा भवन्ति, तासां नामानि चथयम् अनित्यानुप्रेक्षा, अशरणानुप्रेक्षा, संसारानुप्रेक्षा, एकत्वानुप्रेक्षा, अन्यत्वानुप्रेक्षा अशुचित्वानुप्रेक्षा, आस्रवानुप्रेक्षा, संवरानुप्रेक्षा, निर्जरानुप्रेक्षा, लोकानुप्रेक्षा, बोधिदुर्लभानुप्रेक्षा, तथा धर्मस्वाख्यातत्त्वानुप्रेक्षा चेति। तात्त्विकदृष्ट्या सूक्ष्म विचारोऽनुप्रेक्षा । एता द्वादशानुप्रेक्षा लोकेषुशाद्धेषु च द्वादश भावनानामभि: प्रसिद्धाः सन्ति। एताभिः द्वादश भावनाभिः क्रोध-मान-माया-लोभादीनां कषायाणां रागद्वेषादि कुत्सित प्रवृतीनां निरोधो भवति। एतस्मादेव कारगात एता: भावना: जीवनशुद्धि कारिका: सन्ति। इमे संवरोपायस्वरूपा: सदैव साधकैरनुष्ठेयाः । * सूत्रार्थ - अनित्य, अशरण, संसार, एकत्व, अन्यत्व, अशुचित्व, आस्रव, संवर, निर्जरा, लोक, बोधिदुर्लभ तथा धर्मस्वाख्या तत्व का पुन: पुन: चिन्तन करना ही 'अनुप्रेक्षा' है। * विवेचनामृत * अनुप्रेक्षा के बारह भेद है अनित्यानु प्रेक्षा २. अशारणानुप्रेक्षा ३. संसारानुप्रेक्षा ४. एकत्वानुप्रेक्षा ५. अन्यत्वानुप्रेक्षा ६. अशुचित्वानुप्रेक्षा आस्रवानुप्रेक्षा ८. संवरानुप्रेक्षा निर्जरानुप्रेक्षा १०. लोकस्वरूपानुप्रेक्षा ११. बोधिदुर्लभानुप्रेक्षा १२... धर्मस्वाख्यातानुप्रेक्षा अनुप्रेक्षा का तात्पर्य है- गहन तत्त्विक विचार, जो बारह भावनाओं के नाम से जैन संस्कृति में प्राय:लोक विदित है। इसके द्वारा राग-द्वेष कलुषित प्रवृत्तियों का निरोध होता है। अत: संवर के उपाय स्वरूप बारह भावनाएं परमोपयोगी है। बाह्य एवम् आभ्यन्तर समस्त प्रकार के प्रदार्थों का अनित्य आदि के द्वारा चिन्तन/चितवन करना ही अनुप्रेक्षा है। अनित्यादि द्वादश अनुप्रेक्षाओं (भावनाओं का संक्षिप्त) वर्णन इस प्रकार है १. अनित्यानुप्रेक्षा - किसी भी प्राप्त वस्तु के वियोग से दु:ख न हो । अत: उस पर से ममत्व हटाने के लिए, चाहे शरीर हो, घर हो या कुटुम्ब-कबीला आदि हो। वे सभी अनित्य है, विनाशवान हैं।

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