Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 09 10
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 42
________________ ९।१ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ २७ बाईस परिषहों को सामान्यतया इस प्रकार समझा जा सकता है (१-२) क्षुथा-पिपासा परिषह - भूख-प्यास की अमित पीड़ा /वेदना होने पर भी साधुमर्यादा के उपयुक्त आहार-पानी न मिलने पर भी सदोष आहार-जल आदि को ग्रहण न करना तथा समतापूर्वक वेदना को सहन करना- क्षुधा-पिपासा परिषह कहलाता है। (३-४) शीत-उष्ण परिषह - सर्दी या गर्मी के अधिक पड़ने पर व्याकुल होकर अकल्पनीय सदोष मर्यादातीत वद्धादि या अग्नि आदि का सेवन न करते हुए पूर्ण समताभाव से सर्दीगर्मी को सहन करना शीत-ऊष्ण परिषह कहलाता है। (५) दंश-मशक परिषह - यदि किसी स्थान विशेष पर या ऋतु में मच्छर, डांस, खटमल आदि जन्तुओं का प्रकोप अधिक हो तो भी उसे समभाव से साधुमर्यादा के अनुसार सहन करना दंश-मश-परिषह कहलाता है। (६) अचेल(नएय) परिषह - यदि वद्ध फट गये हों, जीर्ण-क्षीर्ण हो या चोर चुरा ले गया हो तो भी दीनता प्रकट न करते हुए समभाव से वद्धाभाव को सहन करना नण्य या अचेल परिषह कहलाता है। (७) अरति परीषह - स्वीकार किए गए मार्ग में नाना प्रकार की कठिनाइयों तथा असुविधाओं के कारण, अरुचि, ग्लानि या चिन्ता न करना अपितु नरक-तियञ्च गति के दु:खों को सहन करने का स्मरण करके धीरतापूर्वक, परिषह को सहन करना-'अरति परिषह' कहलाता है। (८) स्त्रीपरीषह - पुरुष या द्धी साधक का अपनी साधना में विपरी लिङ्ग के प्रति कामवासना या आकर्षण पैदा होने पर उसकी ओर आकर्षित न होना, मन को सुदृढ़ रखना या कोई द्धी-पुरुष साधक को अथवा कोई पुरुष द्धी साधिका को विषय भोग के लिए आकृष्ट करे तो मन को वहाँ से मोड़कर आत्माराम में, संयम में रमण कराना 'द्धीपरीषह' कहलाता है। (९) चर्या-परीषह - एक जगह स्थाई रूप से निवास करने से मोह-ममत्व के बन्धन मे पड़ने की आशंका बलवती हो जाती है। अत: रुग्णता, अशक्यता, अतिवृद्धता की स्थिति को छोड़कर नौकल्पी विहार करना, विहार यात्रा में आने वाले कष्टों को समभाव से सहन करना- 'चर्यापरीषह' कहलाता है। (१०) निषद्या-परीषह - अकारण भ्रमण न करना अपितु अपने स्थान पर ही वृद्ध रुग्ण आदि की सेवा में दीर्घकाल तक रहना पड़े तो मन में खिन्नता न लाना, अथवा विहार करते समय रास्ते में बैठने का स्थान, ऊबड़-खाबड़, प्रतिकूल, कंकरीला, वृक्षमूल गिरिकन्दरा, एकान्त श्मशान या सूना मकान मिले तो उस समय कायोत्सर्ग करके या साधना के लिए आसन लगाकर बैठे हुए

Loading...

Page Navigation
1 ... 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116