Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 09 10
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
View full book text
________________
९।१ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
[ २५ तु मोक्षमार्ग सभ्यक् प्रकारेण साधयितुं न क्षमते। न तु तपश्च सुदृढ़तया कर्मनिर्जरार्थ तत्परो भवितुं शक्नोति।
परीषहा इति-। अन्वर्थोऽयं शब्दो जैनागम शाद्धेषु व्यवह्वत:। परिषह्यन्ते-इति परीषहाः। एते परिषहा जेतव्या: मुमुक्षुभिः। अत्र सुत्रे परिषहविजयस्य द्वे प्रयोजने कथिते स्त: मोक्ष मार्गाप्रच्यव: कर्मनिर्जरा च। संवरस्य साधनमपि परिषहविजयेन भवत्येवेति न विस्मर्तव्यम् ।
येन केनापि निमित्तेन कारणेन वा मोक्षमार्गसाधनस्वरूपे तपश्चरणे धर्माराधने च विघ्नबाधोपस्थिति र्जायते सा मुमुक्षुणा सहिष्णुतया षोढव्या ।
* सूत्रार्थ - सम्यग् दर्शन-सम्यग्ज्ञान-सम्यग्चरित्रस्वरूप मोक्षमार्ग से पथभ्रष्ट/च्युत न होने के लिए तथा कर्म निर्जरा के लिए परिषहों को समतापूर्वक सहन करना चाहिए॥६-७॥
* विवेचनामृत * मोक्षमार्ग के साधक को सुदृढ़ निर्भय होना चाहिए। रत्नत्रयी स्वरूप मोक्षमार्ग का साधक परिषहों से कदापि भयग्रस्त नहीं होता है। वह सदैव पूर्णनिष्ठा एवं सम्बल के साथ समागत परिषहों को निरूद्विग्न भाव से समतापूर्वक सहन करता है। प्रस्तत सुत्र में परिषह जीतने के दो प्रयोजन निर्दिष्ट हैं- १. मोक्षमार्गाप्रच्यव २. कर्मनिर्जरा। परिषहविजय के साथ-साथ संवर साधन भी अनिवार्यत: होता ही है- इसे कदापि भूलना नहीं चाहिए।
जिस किसी भी निमित्त/ कारण से साधक के मोक्षमार्ग या तपश्चरण आदि साधना में विघ्नबाधा उत्पन्न होती हैं उन्हें सहन करना ही परिषह है। परिषह-विजय-साधारण कार्य नहीं है। साधना के पथ में अनेक बाधायें आती है।
जैन धर्म एवं दर्शन में साधक पर आने वाली पीड़ा/वेदना के लिए दो पारिभाषिक शब्द प्रचलित है- उपसर्ग और परिषह। उपसर्ग एवं परिषह साधना की कसौटी है। वे तीन प्रकार के होते है- देवकृत, मनुष्यकृत तथा तियञ्चकृत । इन सभी उपसर्गों में साधक को समभाव पूर्वक अविचलित रहते हुए सहन करना चाहिए। साधक को दूसरे प्रकार की पीड़ा पषिहों से होती है। स्वीकृत धर्ममार्ग से अच्युत रहने तथा कर्मबन्धन-निर्जरा के लिए जो वेदना/कष्ट साधक समभाव पूर्वक सहन करता है, उसे परिषह कहते है
समवायांग सूत्र में बाइस परिषह इस प्रका बताए गए हैं- बावीस परीसहा पण्णत्ता तं जहा
१. दिगिंछापरीसहे २. पिवासापरीसहे ३. सीतपरीसहे ४. उसिणपरीसहे ५. दंसमसगपरीसहे ६. अचेलपरीसहे ७. अरइपरीसहे ८. इत्थीपरीसहे ९. चरियापरिसहे १०. निसीहियापरीसहे ११. सिजापरीसहे १२. वहपरीसहे १३. जायणापरीसहे