Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 09 10
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 20
________________ श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे से रोकना, सावद्य संकल्प-विकल्पों से विरत करना 'मनोगुप्ति' कहलाता है। मनोगुप्ति के सम्यग् आराधना से मानसिक जागृति होती है, उदार मानसिकता की अभिवृद्धि होती है, आत्मजागृति में परमसहायक मानसिक सम्बल एवं मानस-सौंदर्य निखरता है। गुप्तित्रयी, सवं की प्रमुख साधयित्री है। अत: जिज्ञासुओं तथा मुमुक्षुओं को सम्यक् प्रकार से, निष्ठापूर्वक गुप्तित्रयी को अपने आचरण का अभिन्न अंग बनाना चाहिए। * विशेष - ज्ञान-श्रद्धा युक्त योगनिग्रह ही सम्यक् है। अर्थात सम्यग्ज्ञान तथा सम्यग्दर्शन पूर्वक कृत 'योगनिग्रह' सम्यक् है। अत: सम्यग्ज्ञान और सम्यग्दर्शन के बिना योगनिग्रह गुप्ति नहीं क्लेशरूप मात्र है। प्रस्तुत सूत्र में निग्रह का अर्थ केवल निवृत्ति नहीं है अपितु-प्रवृत्ति-निवृत्ति उभयस्वरूप है। शाद्धनिषिद्ध यागों को निवृत्ति तथा शाद्धविहित योग की प्रवृत्ति। कायोत्सर्ग इत्यादि द्वारा कायव्यापार की निवृत्ति या शाद्ध विहित अनुष्ठानों में शाद्धीय विधि के अनुसार प्रवृत्ति को 'कायगुप्ति' कहते है। मौनव्रत आदि द्वारा वचन व्यापार की निवृत्ति या शाद्धोक्त विधि के मुताबिक स्वाध्याय एवम् उपदेशादिक में वचन प्रवृति को वाग् गुप्ति(वचन गुप्ति) कहते है। आर्तध्यान तथा रौद्र ध्यान स्वरूप अशुभ विचारों से निवृति या धर्म ध्यान के शुभध्यान में मन की प्रवृत्ति, या फिर शुभ-अशुभ उभयविध विचारों का त्याग ‘मनोगुप्ति' कहते है। * सारांश - पूर्वकथित (अध्याय छ सूत्र १) योगों को समस्त प्रकार से रोकना अर्थात् निग्रह करना यह वास्तविक रूप से संवर नहीं है। ज्ञानवृद्धि से श्रद्धापूर्वक, मन, वचन तथा काया को उन्मार्ग से रोकना 'गुप्ति' है तथा एवं प्रकारक गुप्ति ही संवर का उपाय कही जाती है। अत: तात्त्विकार्थ यह है कि मन, वचन, काया के सावध व्यापारों (चेष्टाओं) का निरोध करना ही 'गुप्ति' पदार्थ है॥८-५॥ * पञ्चसमिति-वर्णनम् * ॐ सुत्रम् - ईर्या-भाषैषणादान-निक्षेपोत्सर्गः समितयः॥६-५॥ ॥ सुबोधिका टीका ॥ ईर्याभाषेति। पूर्वस्मात् सूत्रादस्मिन् सूत्रे'सम्यक्' पदस्यानुवृत्तिः। सम्यग् पदस्य प्रत्येकं १. यह मनोगुप्ति योग निरोध अवस्था में होती है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116