Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 09 10
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे जीवन की तो बात ही क्या करें। क्रोध से बाह्यजीवन के नैतिक सभी आधार टूट जातें है। जीवन, मूल्यहीन हो जाता है। २. शारीरिक नुकसान -
क्रोध, शरीर के लिए भी घातक होता है। मानसिक रोग विशेषज्ञों का कहना है कि अनेक सप्ताहों तक कठिन परिश्रम करने से शरीर जितना आहत, क्षतिग्रस्त होता है उससे अधिक एक बार क्रोध करने से हो जाता है। क्रोध, हमारे रूधिर में विषाक्तता लाता है। क्रोध, जठराग्नि को मन्द कर देता है। इस क्रोध के कारण मन्दाग्नि, अजीर्ण तथा क्षय आदि रोग उत्पन्न होतें है।
क्रोधित माता का स्तनपान करने वाले शिशु पर भी विपरीत असर पड़ता है। वहीं दीर्घजीवी नहीं रहता। भोजन के समय क्रोधावेश से परिपूर्ण व्यक्ति अजीर्ण के शिकार होतें है। अजीर्णता, आयष्य क्षीण कर देती है। क्रोधी व्यक्ति अपनी सारी खुशियाँ गुमा बैठता है। ३. आध्यात्मिक नुकशान -
क्रोध करने से आध्यात्मिक दृष्टि से सर्वाधिक नुकसान होता है। क्रोधी की आत्म-परिणति अशुभ बन जाती है। फलत: कठोर साधना करने पर भी यथोचित उत्कृष्ट लाभ नहीं मिल पाता है। क्रोध से समुत्पन्न अशुभ आत्म परिणति के कारण नित्य नये, नये कर्म बन जाते है तथा पूर्व बद्ध शुभकर्म भी अशुभ बन जातें है।
क्रोधी व्यक्ति को वैमनस्य व क्रूरता की भावना के कारण किसी प्राणी की हिंसा करने में भी देर नहीं लगती है।
क्रोध के आवेश में 'मैं कौन हूँ'? यह भान भी क्रोधी को नहीं रहता। मेरा कर्त्तव्य क्या है ?अकर्तव्य क्या है? इत्यादि विवेक का विनाश होते ही साधक अपने व्रतों का भङ्ग कर डालता है।
अविवेक पूर्वक बोल मूढजीव (बालजीव) का स्वभाव है। ऐसा मानकर बालजीव के प्रति क्षमा भाव रखना नितान्त आवश्यक है। यदि कोई व्यक्ति आपकी परोक्षनिन्दा करता है तो भी आपको आवेश में आने की कोई आवश्यकता नहीं है। किसी दूसरे के द्वारा यह बात सुनकर कि वह आपकी 'परोक्ष निन्दा' करता है, असंयत होना कैसे ठीक कहा जा सकता है? परोक्ष निन्दक के प्रति भी सदैव क्षमा भावना बनाये रखें। साथ ही यदि परोक्ष निन्दा के रूप में कही जा रही बुराई का यदि लेशमात्र भी अपने में हो तो आत्मावलोकन करके आत्मपरिशोधन की दिशा में सबल प्रयत्न करेंयही विवेकी व्यक्ति की पहचान है। धीरता व क्षमा सफलता की कुंजी है।
कुछ लोग प्रत्यक्ष में ही यदि निन्दा करतें है, दोषारोपण करतें है तब भी धैर्य पूर्वक, शालीनता से उनका निवारण, स्पष्टीकरण करना चाहिए । मूढस्वभावी व्यक्ति भी साधक की साधना १. श्री उदयरत्न जी महाराज ने भी क्रोध की सज्ज्ञाय में कहा है
क्रोधे क्रोडपूरवतणुं संजम फल जाय। क्रोध सहित तप जे करे, ते लेखे नवि थाय॥