Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 09 10
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

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Page 19
________________ ४ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ ९।१ आत्मपरिणाम धारा का उपयोग करता है तब, उसे 'भाव संवर' कहते हैं। इसी के उपाय हेतु मुख्य छ: भेद तथा तदनन्तर २७ भेद साधन स्वरूप बताये गए है। यथा समिइ गत्ति-परीसह, जइ धम्मो भावणा चरित्ताणी। पणति दुवीस दशवार, स पंच भे एहिं समवन्ना॥ (नवतच्वाप्रकरण) * विशेष - यद्यपि गुप्ति आदि से भी संवर के साथ निर्जरा भी होती है किन्तु तप से निर्जरा अधिक होती है। अत: तप में निर्जरा की प्रधानता है तथा गुप्ति आदि में संवर की प्रधानता है॥६-३॥ * गुप्तेर्व्याख्या * 9 सूत्रम् सम्यग्योगनि ग्रहो गुप्तिः॥६-४॥ सुबोधिका टीका ___ सम्यगिति। सम्यग् प्रकारेण मनोवचोकायाभिः कृतो योग निग्रहो गुप्तिरिति। शाद्धोक्तविधिना मनोवाक् + कायकृतयोगनिग्रहः कर्त्तव्यो न तु तद्विधिमत्सृज्यात एवोक्तम्सम्यगिति। गुप्तिद्धिधा- कायगुप्तिर्वाग्गुप्ति-मनो-गुप्तिश्चेति। तत्र शाद्धागमविधिविरुद्ध कायिक चेष्टानिरोध-विषयको नियम: कायगुप्तिः। शाद्धविरुद्धवाचिकचेष्टा-निरोधनियमो वागगुप्तिरिति। शाद्धविधिविरुद्ध मानसिकचेष्टाविषयानिरोधनियमो मनोगुप्तिर्भणतीति। * सूत्रार्थ - सम्यक् (प्रशस्त) रूप से योग विग्रह को 'गुप्ति' कहते है॥६-४॥ * विवेचनामृत * सम्यक् प्रकार से मन, वचन, काया रूपी त्रिकरण से शाद्धाज्ञान के अनुसार तत्तत् मानसिक, वाचिक एवं कायिक योगनिग्रह'गुप्ति' कहलाता है। गुप्ति के तीन प्रकार है- १ कायगुप्ति- आगमशाद्ध की विधियों के अनुसार चलने-फिरने, खाने-पीने, सोने-जागने आदि कायिक चेष्टाओं को जो संयमित(प्रतिरोधित) करने के नियम है, उसे 'कायगुप्ति' कहते है। २. वाग् गुप्ति - शाद्ध प्रतिपादित विधि के अनुसार-वाणी-व्यवहार को संयमित करना, सावद्य-वाचिक व्यवहार से विरमण, वाणीसंयम को ही वागगुप्ति' कहते है। शाद्धानुसार 'वागगुप्ति' की साधना सत्यव्रत को परिपुष्ट एवं वाणी के सौन्दर्य को निखारती है। ३. मनोगुप्ति - शाद्धीय विधि के विरुद्ध मानसिक चेष्टाओं को लेशमात्र भी गतिशील होने

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