Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 09 10
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

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Page 12
________________ ************************ प्रकाशकीय-निवेदन, *RRRRRRRRRRRRRRRRR* 'श्रीतत्त्वार्थाधिगम-सूत्रम्' नाम से सुप्रसिद्ध महान् ग्रन्थ आज भी श्रीजैनदर्शन के अद्वितीय आगमशास्त्र के सार-रूप श्रेष्ठ है। इसके रचयिता पूर्वधर-परमर्षि सुप्रसिद्ध परम पूज्य वाचकप्रवर श्री उमास्वातिजी महाराज हैं। इस महान् ग्रन्थ पर भाष्य, वृत्ति-टीका तथा विवरणादि विशेष प्रमाण में उपलब्ध हैं एवं विविध भाषाओं में भी इस पर विपुल साहित्य रचा गया है। उनमें से कुछ मुद्रित भी है और कुछ आज भी अमुद्रित है। इस तत्त्वार्थाधिगम सूत्र पर समर्थ विद्वान् पूज्यपाद आचार्यदेव श्रीमद्विजय सुशील सूरीश्वरजी म.सा. ने भी सरल संस्कृत भाषा में संक्षिप्त 'सुबोधिका टीका' रची है तथा सरल हिन्दी भाषा में अर्थ युक्त विवेचनामृत अतीव सुन्दर लिखा है। इसके प्रथम और द्वितीय अध्याय का पहला खण्ड, तृतीय और चतुर्थ अध्याय का दूसरा खण्ड तथा पाँचवें और छठे अध्याय का तीसरा खण्ड, सातवें और आठवें अध्याय का चतुर्थ खण्ड सुबोधिका टीका व तत्त्वार्थविवेचनामृत सहित हमारी समिति की ओर से पूर्व में प्रकाशित किया जा चुका है। अब श्रीतत्त्वार्थाधिगम सूत्र के नवम और दशम अध्याय का पंचम खण्ड प्रकाशित करते हुए हमें हर्ष-आनन्द का अनुभव हो रहा है। परमपूज्य आचार्य म. श्री को इस ग्रन्थ की सुबोधिका टीका, विवेचनामृत तथा सरलार्थ बनाने की सत्प्रेरणा करने वाले उन्हीं के पट्टधर-शिष्यरत्न पूज्य उपाध्याय श्री विनोद विजय जी गणिवर्य महाराज हैं। हमें इस ग्रन्थरत्न को शीघ्र प्रकाशित करने की सत्प्रेरणा देने वाले भी पू. उपाध्याय जी म. हैं। ग्रन्थ के स्वच्छ, शुद्ध एवं निर्दोष प्रकाशन का कार्य डॉ. डॉ. चेतनप्रकाशजी पाटनी की देख-रेख में सम्पन्न हुआ है। ग्रन्थ-प्रकाशन में अर्थ-व्यवस्था का सम्पूर्ण लाभ सुकृत के सहयोगी श्री पिण्डवाड़ा जैन संघ, समस्त पिण्डवाड़ा एवम श्री सुपार्श्वनाथ जैन श्वेताम्बर मूतिपूजक संघ दावणगेरे द्वारा लिया गया है। इन सभी का हम हार्दिक धन्यवाद पूर्वक आभार मानते हैं। यह ग्रन्थ चतुर्विध संघ के समस्त तत्त्वानुरागी महानुभावों के लिए तथा श्री जैनधर्म में रुचि रखने वाले अन्य तत्त्वप्रेमियों के लिए भी अति उपयोगी सिद्ध होगा। इसी आशा के साथ यह ग्रन्थ स्वाध्यायार्थ आपके हाथों में प्रस्तुत है।

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