Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 09 10
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ * तत्त्वार्थ भूमिका * भारतीय मनीषी, सत्यान्वेषण के प्रति अनादि काल सजग एवं सचेष्ट रहे हैं जिनकी सत्यान्वेषणा एवं त्वगवेषणा आज भी पूर्णत: प्रासंगिक है। आचार्यश्री सुशील सुरीश्वर जी महाराज भी प्राचीन मनीषियों के पदचिन्हों का अनुसरण करते हुए अपनी नवनवोन्मेषिणी प्रतिभा से तात्त्विक ग्रन्थों का प्रणयन करते हुए साहित्य समृद्धि में तल्लीन है। श्री तच्वार्थाधिगमसूत्र जैनागम रहस्यवेत्ता पूर्वधर वाचक प्रवर श्री उमास्वाति महाराज की कालजयी कृति है। यह ग्रन्थरत्न श्वेताम्बर-दिगम्बर नामक उभयविध जैन सम्प्रदायों का मान्य ग्रन्थ है। जैन साहित्य का संस्कृत भाषा में निबद्ध यह प्रथम सूत्र ग्रन्थ है। यह सूत्र ग्रन्थ दस अध्यायों में विभक्त है। इसके कुल सूत्रों की संख्या ३४४ है। प्रत्येक अध्याय में विद्यमान तत्त्व विवेचना सारांशत: इस प्रकार है प्रथम अध्याय - इस अध्याय में ३५२ सूत्र है। शास्त्र की प्रधानता,सम्यग्दर्शन का लक्षण सम्यक्त्व की उत्पत्ति तत्त्वों के नाम, निक्षेपों के नाम, तत्वों की विचारणा के साथ ज्ञान का स्वरूप तथा सप्तनयों का स्वरूप आदि का तात्त्विक सूत्रात्मक प्रतिपादन है, जिसे आचार्य प्रवर सुशील सूरीश्वर ने सुबोधिका नामक संस्कृत टीका, सूत्रार्थ एवं हिन्दी विवेचनामृत द्वारा सरल एवं सुगम बनाने का प्रशस्त प्रयास किया है। द्वितीय अध्याय - इस अध्याय में ५२ सूत्र है। इस में जीवों के लक्षण औपशमिक आदि भावो के ५३ भेद जीव-भेद इन्द्रिय,गति,शरीर,आयुष्य की स्थिति इत्यादि का विशद विवेचन हुआ की। तृतीय अध्याय - इस अध्याय में कुल १८ सूत्र है। इनमें सात पृथ्वियों, नरक के जीवों की वेदना एवम् आयुष्य मनुष्य क्षेत्र का वर्णन,तिर्यञ्च जीवों के भेद व स्थिति आदि का प्रामाणिक विवेचन है। चतुर्थ अध्याय - प्रस्तुत अध्याय में ५३ सूत्र है जिनमें देवलोक, देवों की ऋद्धि और उनके जघन्योत्कृष्ट आयुष्य आदि का विशद प्रतिपादन है। पंचम अध्याय - प्रस्तुत अध्याय में ४४ सूत्र है, जिनमें धर्मास्तिकाय आदि अजीव तत्त्व का निरूपण व षड्द्रव्य का भी वर्णन है। पदार्थों के विषय में जैनदर्शन तथा जैनेतर दर्शनों का वर्णन है। जैनदर्शन षड्द्रव्य मानतें है। जिनमें एक जीव द्रव्य है शेष अजीव द्रव्य है। षष्ठ अध्याय - प्रस्तुस अध्याय में २६ सूत्र है इनमें आस्रव तत्त्व के कारणों का स्पष्टीकरण है। इसकी उत्पत्ति यागों की प्रवृत्ति से होती है। अत: पुण्य को पृथक् न रखकर आस्रव में ही पुण्य-पाप का समावेश किया गया है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116