Book Title: Tattvartha Sutrana Agam Adhar Sthano
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Shrutnidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ પ્રથમાડધ્યાયઃ (2) तं समासओ दुविहं पण्णत्तं तं जहा पञ्चक्खं च परोक्खं च D नंदि० सू. २ [११] आद्ये परोक्षम् મતિ અને શ્રુત પરાક્ષ પ્રમાણ છે. (1) परोक्खे णाणे दुबिहे पण्णत्ते तं जहा आभिणिबोहिणाणे चेव सुना चैव स्था० २७.१सू.७१/१७ ( 2 ) परोक्ख नाणं दुविहं पन्नत्तं तं जहा आभिणिवोहिय नाण परोक्खं च, सुयनाणं परोक्खं च नंदि० सू.२२ [१२] प्रत्यक्षमन्यद् અવધિ, મન:પર્યાય અને કેવળજ્ઞાન પ્રત્યક્ષ પ્રમાણ છે. (1) पञ्चक्रखे नाणे दुविहे पन्नत्ते - तं जहा केवलणाणे चेव णोकेवलणाणे चे. गोवा दुवि पण्णत्ते-तं जहा ओहिणाणे चेव मणपज्जवणाणे चेव. स्था०२उ. १ सू.७१/२-१२ (2) नोइंदिय पञ्चक्खं तिविहं पण्णत्तं तं जहा ओहिनाण पञ्चक्खं, मणपज्जवनाण पञ्चचखं, केवलनाण पञ्चक्खं नंदि०सू. ५ [१३] मतिः स्मृति: संज्ञा चिन्ताऽभिनिबोध इत्यनर्थान्तरम् भति, स्मृति, संज्ञा, यिता, अलिनिमोध से अधा येष्ठार्थ४ छे. ईहा अपोह वीमंसा मग्गणा य गवेसणा सन्ना सई मई पन्ना सव्वं आभिणिबोहियं नंदि०सू. ३७/८० [१४] तदिन्द्रियानिन्द्रिय निमित्तम् મતિજ્ઞાન ઇંદ્રિય અને મન નિમિત્ત થાય છે. 3 (1) से किं तं पञ्चकख पचख दुविहं पण्णत्तं तं जहा इन्दिय पथक्खं नोइन्दिय पञ्चवखं च नंदि० सू. ३ (2) से किं तं पश्चक्खे - पश्चक्खे दुविहे पण्णत्ते तं जहा इंदिय पश्चक्खे अ नोइंदिय पञ्चक्खे अ अनुयोग ० सू. १४४ [१५] अवग्रहेहापाय धारणा : अवअडे, धडा, अपाय, धारणा, भतिज्ञानना लेहे। छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118