Book Title: Tattvartha Sutrana Agam Adhar Sthano
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Shrutnidhi Ahmedabad

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Page 51
________________ તત્ત્વાર્થ સૂત્રના આગમ આધાર સ્થાના (2) जीवे ण' अण'ताण' आभिणिबोहिय० सुय० ओहि ० मण पज्जव० केवल - नाण पज्जवाण, मइअण्णाण प० सुयअण्णाण प० विभंगणाण प०, चक्खु० अचक्खु० ओहि० केवल - दंसण पज्जवाण' उवओगं गच्छइ०.... भग० श. २७. १० सू. १२०/२ * सूत्रपाठ संबंध : पाठ विभिन्न रीते भवास्तिष्ठायनेो भवे। પહ્ત્વના ઉપકાર દર્શાવે છે. સૂત્ર સાથે જ પૂર્ણ સંગતતા પ્રાપ્ત નથી. क्रिया परत्वापरत्वे च कालस्य [२२] वर्तना परिणामः वर्तना, परिलाभ, डिया, परत्व, अपरत्व से अजनु अर्थ छे. वत्तना लक्खणो कालो उत्त० अ.२८गा. १० * सूत्रपाठ संबंध : भा पाठ पोते पर्याप्त नथी पशु प्रायः उत्तराध्ययनं टीअमां भेवो जुझासो छे हे वर्तना भी परिणाम - क्रिया વગેરેના સમાવેશ થઈ જાય છે. ૪૨ [२३] स्पर्श रस गन्ध वर्णवन्तः पुद्गलाः સ્પર્શ રસ ગંધ વર્ણવાળા પુદ્દગલા છે. पोग्गलत्थिकाए पंचवणे पंचरसे दुगंधे अठ्ठफासे पण्णत्ते भग० श. १२ उ. ५सू. ४५०/९ [२४] शब्दबन्ध सौक्ष्म्यस्थौल्यसंस्थान भेदतमश्छायातपोद्योतवन्तश्च शम्ह, अरौंध, सूक्ष्मता, स्थूलता, संस्थान, लेह, अधार, छाया, આતપ અને ઉદ્યોતવાળા પણ પુદ્ગલેા છે. सदन्धयार उज्जोओ पमा छाया तवो इ वा वण्णरसगन्धफासा पुग्गलाण तु लक्खण एगत्तं च पुहत्त च संखा संठाणमेव च संजोगा य विभागा य पज्जवाण तु लक्खण उत्त०अ.२८गा. १२-१३ [२५] अणवः स्कन्धाव અણુએ અને સ્કન્ધા એ પ્રકારે પુદ્દગલા છે. दुविहा पोरगला पण्णत्ता, त जहा परमाणु पोग्गला नो परमाणु पोरगला चेव स्था० २३.३सू.८२/३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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