Book Title: Tattvartha Sutrana Agam Adhar Sthano
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Shrutnidhi Ahmedabad

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Page 22
________________ દ્વિતીયેાધ્યાયઃ १३ कतिविहा ण' भंते इन्दिय उवओगद्धा पण्णत्ता गोयमा । पंचविहा इन्दिय उवओगद्धा पण्णत्ता - प्रज्ञा०प.१५उ.२सृ.१९९/४ [१९] उपयोगः पशादिषु સ્પર્શ વગેરે પાંચને વિષે ઉપયોગ થાય છે. [२०] स्पर्शन रसनघ्राण चक्षुः श्रोत्राणि २५शन, २सना, प्राणु, यक्षु, श्रोत्र मे पाय [[-द्रयो oneyal] सोइन्दिए चक्खिदिए घाणिदिए जिभिदिए फासिदिए प्रज्ञा०१५ उ.१सू.२/१ * 0 तस्य उपयोग विषये प्रज्ञापना सूत्रे इन्द्रिय पद द्वारे द्वितीय उद्देशे अपि साक्षि पाठ वर्णनमस्ति [२१] स्पर्श रस गन्ध वर्ण शब्दास्तदर्थाः २५श', २स, गध, १, शह तना मर्थ (विषयो) छे. पंच इन्दियत्था पण्णत्ता, त' जहा सोइन्दियत्थे जाव फासिदियत्थे । स्था०५७.३सू.४४३/१ [२२] श्रुतमनिन्द्रियस्य શ્રુતજ્ઞાન અનિદ્રિય અર્થાત્ મનને વિષય છે. सुणेइत्ति सुअं - नदि० सू.१५/३ [२३] वाय्वन्तामेकम् पृथ्वी-२५५-वनस्पति-त-पायु मेन्द्रिय छे. एगिदिय संसारसमावण्ण जीव पण्णवणा पंचविहा पण्णत्ता, त जहा पुढवी काइया आउकाइया तेउकाइया वाउकाइया वणस्सइकाइया 0 प्रज्ञा०प.१सू.१० [२४] कृमि पिपीलिका भ्रमर मनुप्यादीनामेकैक वृद्धानि કૃમિ વગેરે બે ઇન્દ્રિય, કીડી વગેરે ત્રણ ઈદ્રિય, ભ્રમર વગેરે ચાર ઈન્દ્રિય અને મનુષ્ય વગેરે પાંચ ઈન્દ્રિયવાળા છે. किमिया....पिपीलिया....भमरा....मणुस्स... इत्यादि 0 प्रज्ञा०प.१सू. २७/१... सू.२८/१....सू.२९/१...सू.३० [२५] संज्ञिनः समनस्काः સંજ્ઞી જે મનવાળા છે. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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