Book Title: Tattvartha Sutrana Agam Adhar Sthano
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Shrutnidhi Ahmedabad
View full book text
________________
ચતુર્થોડધ્યાયઃ
૩૫
[४२] परतः परत: पूर्वा पूर्वानन्तरा
પૂર્વ પૂર્વના કલ્પની જે ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ છે તે પછી–પછીના કલ્પની જઘન્ય સ્થિતિ જાણવી. ___(1) सूत्र ४:३७ मने ४:४२न। ५।। उत्त अध्ययन-३६नी गाथा નીચે જણાવેલ છે.
दस चेव सागराई उक्कोसेण ठिइ भवे बम्भलोए जहन्नेण सत्तउ सागरोवमा २२५ चउदस सागराइ उक्कोसेण ठिई भवे लन्तगम्मि जहन्नण दस उ सागरोवमा २२६ सत्तरस सागराइ उक्कोसेण ठिई भवे । महासुक्के जहन्नेण चोद्दस सागरोवमा २२७ अट्ठारस सागराइ उक्कोसेण ठिईभवे आणयम्मि जहन्नेण, अट्ठारस सागरोवमा २२८ सागरा अउणवीसं तु उक्कोसेण ठिईभवे आणयम्मि जहन्नेणं अट्ठारस सागरोवमा २२९ वीसं तु सागराइं उक्कोसेण ठिई भवे पाणयम्मि जहन्नेण सागरा अउण वीसई २३० सागरा इक्वीसं तु उक्कोसेण ठिई भवे आरणम्मि जहन्नेण वीसई सागरोवमा २३१ बावीसं सागराई उक्कोसेण ठिई भवे अच्चुयभ्भि जहन्नेण वीसई सागरोवमा २३२
[ अतः ग्रैवेयक-स्थिति वर्णनम् :-]. तेवीस सागराइं उक्कोसेण ठिई भवे “पढमम्मि जहन्नेणं बावीस सागरोवमा २३३
यावत् सागरा इकतीस तु उक्कोसेण ठिई भवे नवमम्मि जहन्नेणं यावत् तीसई सागरोपमा २४१ अजहन्नमणुक्कोसा तेत्तीस सागरोवमा महाविमाणे सव्वठे ठिई एसा वियाहिया २४३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118