Book Title: Tapascharya
Author(s): Niranjanmuni
Publisher: Ajaramar Active Assort

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Page 545
________________ તપશ્ચર્યા २४. २५. २७. न विद्यया केवलया तपसा वाऽपि पात्रता । यत्रवृत भिमे चोभे तद्धि पात्रप्रकीर्तितम् ॥ २९. ३०. - मनुस्मृति १/१२२ 1 न केवल विद्या से और न केवल तप से पवित्रता प्राप्त होती है । जिसमें विद्या और तप दोनों ही हों, वही मात्र कहलाता है । सम्मानात् तपसः क्षयः । २६. वेदस्योपनिषत् सत्यं, सत्यस्योपनिषद् दमः । दमस्योपनिषद् दानं, दानस्योपनिषत् तपः । आपस्तम्ब स्मृति १०१९ सम्मान से तप का क्षय हो जाता है । - - महाभारत शान्ति पर्व २५१/११ वेद का सार है सत्य वचन, सत्य का सार है इन्द्रियों का संयम, संयम का सार है, दान और दान का सार है 'तपस्या' । तपो हि परमं श्रेयः सम्मोहमितरत्सुखम् । २८. तपसैव महोग्रेण यद् दुरापं तदाप्यते । वाल्मीकी रामायण ७/८४/९ तप ही परम कल्याणकारी है । तप से भिन्न सुख तो मात्र बुद्धि के सम्मोह को उत्पन्न करने वाला है। • योगवाशिष्ठ ३ / ६८ / १४ - પ્રકરણ ૬ जो दुष्प्राप्य वस्तुए हैं, वे उग्रतपस्या से ही प्राप्त होती है। ध्यानयोगरतो भिक्षं प्राप्नोति परमां गतिम् । - शंखस्मृति ध्यान योग में लीन मुनि मोक्षपद को प्राप्त करता है । ओमित्येव ध्यायथ ! आत्मानं स्वस्ति वः। पाराय तमसः परास्तात । - मुण्डकोपनिपद् २/२/६ इस आत्मा का ध्यान के रूप में करो ! तुम्हारा कल्याण होगा अन्धकार दूर करने का यह एक ही साधन है। ૫૦૨.

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