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તપશ્ચર્યા
लोकेषनार्थ तपते उन साधुओं का, ना शुद्ध हो तप महाकुल धारियों का ।
शंसा अतः न अपने तपकी करो रे !
जाने न अन्य जन यों तप धार लो रे ॥ ३२ ॥
स्वामी समाहत विबोध सुवात से है,, उद्दीप्त भी तप हुताशन, शील से है । वैसा कुकर्म वन को पल में जलाता, जैसा वनानल घने वन को जलाता ॥ ३३ ॥
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પ્રકરણ
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