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अंक
Jain Education International
पृष्ठ . ३१-३३
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लेख जीवन की अंतिम साधना जैनधर्म : एक निर्वचन
लोकसाहित्य के आदि सर्जक-जैनविद्वान् ___ मैं मुक्ति चाहता हूँ
कुषाणकालीन मथुरा की जैन सभ्यता नया और पुराना मानव कुछ तो विचारकर सच्चा जैन शिक्षा के दो रूप त्याग पूर्वक उपभोग करो पथ-भ्रष्ट आधुनिक पुस्तकालयों में पुस्तक-सूची(क्रमश:) निह्नववाद विद्वदवर विनयसागर आद्यपक्षीय नहीं पिप्पलक शाखा के थे तृष्णा और उसका अन्त ! महावीर भूले ? शिक्षा का जहर चंदनबाला और मृगावती
श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक श्री सत्यदेव विद्यालंकार श्री श्रीरंजन सूरिदेव
७ श्री अगरचन्द नाहटा श्री भंवरमल सिंघी ७ डॉ० एस० सी० उपाध्याय मुनि सुरेशचन्द्र जी शास्त्री मुनि श्री महाप्रभ विजयजी महाराज श्री यशोविजय उपाध्याय श्री उमाशंकर त्रिपाठी श्री इन्द्र
७ श्री अभय मुनि जी महाराज श्री महेन्द्र राजा
७ श्री मोहनलाल मेहता ७ श्री अगरचन्द नाहटा ७ श्री ज्ञान मुनि जी महाराज श्री कस्तूरमल बांठिया श्री उमाशंकर त्रिपाठी ७ श्री जयचन्द बाफणा ७
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ई० सन् १९५५ १९५५ १९५५ १९५५ १९५५ १९५५ १९५५ १९५५ १९५५ १९५५ १९५५ १९५५ १९५६ १९५६ १९५६ १९५६ १९५६ १९५६
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१७-१८ २०-२२ २३-२४ २५-२६ २७ २८-३१ ३३-३६ ३७-३८ ५-१२ १७-१८ १९-२० २२-२९ ३० ३१-३२
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