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________________ २३ अंक Jain Education International पृष्ठ . ३१-३३ 9 9 ९-१२ 9 २ 9 9 9 9 For Private & Personal Use Only लेख जीवन की अंतिम साधना जैनधर्म : एक निर्वचन लोकसाहित्य के आदि सर्जक-जैनविद्वान् ___ मैं मुक्ति चाहता हूँ कुषाणकालीन मथुरा की जैन सभ्यता नया और पुराना मानव कुछ तो विचारकर सच्चा जैन शिक्षा के दो रूप त्याग पूर्वक उपभोग करो पथ-भ्रष्ट आधुनिक पुस्तकालयों में पुस्तक-सूची(क्रमश:) निह्नववाद विद्वदवर विनयसागर आद्यपक्षीय नहीं पिप्पलक शाखा के थे तृष्णा और उसका अन्त ! महावीर भूले ? शिक्षा का जहर चंदनबाला और मृगावती श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक श्री सत्यदेव विद्यालंकार श्री श्रीरंजन सूरिदेव ७ श्री अगरचन्द नाहटा श्री भंवरमल सिंघी ७ डॉ० एस० सी० उपाध्याय मुनि सुरेशचन्द्र जी शास्त्री मुनि श्री महाप्रभ विजयजी महाराज श्री यशोविजय उपाध्याय श्री उमाशंकर त्रिपाठी श्री इन्द्र ७ श्री अभय मुनि जी महाराज श्री महेन्द्र राजा ७ श्री मोहनलाल मेहता ७ श्री अगरचन्द नाहटा ७ श्री ज्ञान मुनि जी महाराज श्री कस्तूरमल बांठिया श्री उमाशंकर त्रिपाठी ७ श्री जयचन्द बाफणा ७ 9 م نه نه نه نه نه نه نه نه نه له ته له سه سه سه له سه ई० सन् १९५५ १९५५ १९५५ १९५५ १९५५ १९५५ १९५५ १९५५ १९५५ १९५५ १९५५ १९५५ १९५६ १९५६ १९५६ १९५६ १९५६ १९५६ 9 २ 9 १७-१८ २०-२२ २३-२४ २५-२६ २७ २८-३१ ३३-३६ ३७-३८ ५-१२ १७-१८ १९-२० २२-२९ ३० ३१-३२ 9 9 २ ३ ३ 9 9 9 www.jainelibrary.org 9 ३
SR No.525034
Book TitleSramana 1998 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1998
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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