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________________ लेख वर्ष Jain Education International urur ur ur १७-२१ २४-२८ ३०-३३ ३४-३८ ३९-४१ २-८ ११-१६ ur ur १२ ur ६ श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक पं० प्रवर श्री कन्हैयालालजी म०(कमल) ज्ञानमुनि जी महाराज श्री विज्ञ श्री बेचरदास दोशी मुनि श्री सुरेशचन्द्र जी शास्त्री श्री अगरचन्द नाहटा पं० दलसुख मालवणिया प्रिंस क्रोपाटकिन पं० सूरजचंद 'सत्यप्रेमी' कविरत्न श्री अमर मुनिजी श्री देवेन्द्र कुमार जैन शास्त्री श्री शीतल चन्द्र चटर्जी श्री अभयमुनि जी महाराज श्री महेन्द्रराजा पं० बेचरदास जी जोशी श्री कस्तूरमल बांठिया पं० श्री ज्ञानमुनिजी महाराज मुनि फूलचन्द जी 'श्रमण' १७ For Private & Personal Use Only पर्युषण मीमांसा महापर्व संवत्सरी • संवत्सरी और आचार्य श्री सोहनलाल जी महाराज अस्पृश्यता और जैनधर्म अपने को परखिए कल्पसूत्र का हिन्दी पद्यानुवाद एकान्तपाप और एकान्तपुण्य जिन्दगी किसे कहते हैं ? नमस्कार मंत्र का मौलिक परम अर्थ भारतीय संस्कृति का प्रहरी हम सौ वर्ष जी सकते हैं ? स्वामी विवेकानन्द मन-निग्रह पुस्तकों की व्यवस्था (क्रमश:) अब कहाँ तक ? अधिमास और पर्युषणा दीपमाला : एक आध्यात्मिक पर्व श्रमण भगवान् महावीर की शिष्य संपदा w “ะ * * * * * ; ; ; ; ; ; ; ; ; ; ; ; ई० सन् १९५५ १९५५ १९५५ १९५५ १९५५ १९५५ १९५५ १९५५ १९५५ १९५५ १९५५ १९५५ १९५५ १९५५ १९५५ १९५५ १९५५ १९५५ r ur ur ur ६ ७ ७ १८-२० २६-२८ ३१-३३ ३४-३५ ३६-३७ ३८-४० ८-१४ १७-२३ २५-२८ ३० 9 www.jainelibrary.org ७
SR No.525034
Book TitleSramana 1998 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1998
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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