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सिरिवालचरिउ
है तो मणिभद्र समुद्रको हिलाकर जहाज उलट देता है, चक्रेश्वरी देवी अपना चक्र चलाती है, ज्वालामालिनी
ग लगाती है, क्षेत्रपाल कुत्तेकी सवारीपर आता है। इस प्रकार ग्रन्थकारने सब देवी-देवताओंके करतब दखलाये हैं। अतः सिद्धचक्रयन्त्रमें भी इन्हें स्थान दिया गया है जो उस समयमें देवी-देवताओंके बढ़ते हए तापका सूचक है।
सिद्धचक्रयन्त्र भी लघु और बृहत् दो हैं । बृहत्में पंचपरमेष्ठीका उल्लेख रहता है जैसा द्रव्यसंग्रहकी कासे भी व्यक्त होता है।
आश्चर्य इतना ही है कि श्रीपालकी रोचक कथा कथाकोशोंमें या पुराणोंमें वर्णित आख्यानोंमें देखने में हीं आती। इसका उद्गम स्थानका भी पता ज्ञात नहीं हो सका।
प्रो. श्री देवेन्द्रकुमारने हिन्दी अनुवादके साथ इसका सम्पादन किया है । उन्होंने अपनी प्रस्तावनामें सका तुलनात्मक परिचयादि दिया है।
हम भारतीय ज्ञानपीठके संस्थापक दानवीर साहु शान्तिप्रसाद जैन और अध्यक्षा श्रीमती रमा जैनके भारी हैं जिनकी उदारता तथा साहित्यानुरागवश प्राचीन साहित्य सुसम्पादित होकर प्रकाशमें आ रहा है स्त्री वा. लक्ष्मीचन्दजी भी धन्यवादके पात्र हैं जो इस कार्यको प्रगति देने में संलग्न रहते हैं।
-आ. ने. उपाध्ये -कैलाशचन्द्र शास्त्री
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