Book Title: Shrutsagar Ank 2013 06 029
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 17
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५ श्रुतसागर • २९ गुणोनो पालक श्रावक पण अतिथि कहेवाय छे. आवा गुण-विशिष्ट अतिथिओनुं सन्मान करवू ए अतिथिसंविभाग शिक्षाव्रत कहेवाय छे. मुनिभगवंतोनी आहार, पाणी अने उपकरण विशेषथी भक्ति करी, तेमनां दर्शन, ज्ञान अने चारित्रनी आराधनामां सहायक बनवू ए आ व्रतनुं आराधन छे. पांच अतिचारो सचित्त निक्षेप : सचित्त वस्तु अचित्त वस्तुमां नांखी वहोराववी ते... सचित्त पिधान : सचित्त वस्तु वडे ढांकेली अचित्त वस्तु वहोराववी ते. अन्यव्यपदेश : पोतानी वस्तु बीजानी छे तेम कही न वहोराववी. तेमज बीजानी वस्तु पोतानी छे. तेम कही वहोराववी. समत्सर दान : मत्सर करी मुनिराजने दान आपq ते. कालातिक्रम : वहोरवानो समय वीत्या पछी दान वहोराववानो आग्रह करवो ते. __आ बारेय व्रत कह्या छे ते जे जीव आ व्रतोने सम्यक्त्व साथे निश्चय अने व्यवहारथी धारण करे, ते जीवने पांचमा गुणस्थाननो अधिकारी अथवा देशविरति श्रावक कहे छे. देश अर्थात् अंशथी विरति एटले त्याग, ए देशविरतिनो अर्थ छे. सर्व प्रकारना त्यागने सर्व-विरति कहे छे, आ सर्वविरति साधुने होय छे. साधुना पांच महाव्रतोमां आ बारेय व्रतोनो समावेश थइ जाय छे. संदर्भ साहित्य १. गृहस्थ दिक्षा याने देशविरति धर्म., सं. - जिनाज्ञाश्रीजी २. १२ व्रतनी संक्षिप्त समज., सं - आ. श्री कीर्तियशसूरि ३. मुक्तिना मंगल प्रभाते., आ. श्री वर्धमानसागरसूरि ४. बारव्रत अने सिद्धशिला सोपान., सं. - पं. पूर्णानंद वि. ५. श्रावकना बार व्रतो., सं. - लाभचंद्रजी स्वामी. ६. आवश्यक मुक्तावली., सं. - महिमाविजय. ७. नेमि-विज्ञान-कस्तूरसूरि स्मृति श्रेणी पुस्तिका ८. आत्मानंद प्रकाश, अंक नं. - १,२,३,४, वि. सं. १९६७-६८ For Private and Personal Use Only

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