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श्रावक बार व्रत स्वाध्याय
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हिरेन दोशी
दूहा, ढाल अने चोपाई छंदमां रचायेल श्रावक बार व्रत स्वाध्याय विजयसेनसूरि महाराजना शिष्य साधु कवि सूरविजय महाराजनी रचना छे. कविनी रचनाए ३८ कडीमां श्रावकना बार व्रत संबंधी परिमाण अने त्यागनी वात करी छे. कृतिना प्रवाहमां सरळतानी साथे रसाळता भळी छे. काणि, छेक, रूपईआ, सुकाम जेवुं शब्द सौदर्यं कृतिनी उपादेयतामां वधारो करे छे. कृतिमां आम तो स्पष्ट रीते व्रत ग्रहण करनारना नामनो उल्लेख नथी. परंतु प्रत पुष्पिका रूपे मळता ' श्राविका पांखडी कृते अलेखि आ उल्लेख द्वारा आ व्रत टीप श्राविका पांखडीनी होवानी संभावना वधु छे. अन्य कृतिओनी जेम आ कृतिनो वर्ण्यविषय पण बार व्रतना स्वीकार रूप नोंधनो ज रह्यो छे. व्रत ग्रहण अने कृति रचना संबंधी स्थळ अने काळनो स्पष्ट निर्देश नथी मळतो.
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सुमति जिन अने मा शारदानुं स्मरण करी, कवि कृतिनो प्रारंभ करे छे. बे वर्ष जिनपूजा करवी वर्ष दरम्यान अडधो सेर दिवेल अने ११ फल आपवा इत्यादि व्रतनी नोंध कृतिना प्रारंभमां मळे छे, तो सवारे नवकारशी अने सांजे दुविहारना पच्चक्खाणनी वात पण नोंधनी विशेषतामा वधारो करे छे. साथे साथे . वर्ष दरम्यान एक हजार नवकार गणवानी नोंध करी छे. आ नोंध बाबते ओछामां ओछा आटला नवकारनो स्वाध्याय तो करीश ज आ रीते अर्थ समजवो.
त्रीजा व्रतना परिमाण दरम्यान दश मुंहमदी प्रमाण करनी जयणा राखवानी वात पण अहीं नोंधनीय छे. पुरातन काळमां राजा विगेरे द्वारा वेपार उपर कर लादवामां आवतो हतो, आ कर न चूकवे तो पोते स्वीकारेल अदत्तादान विरमण व्रतनो भंग थाय एटले व्रतने अखंडित राखवा माटे व्रत लेचार अमुक नक्की करेली रकम अनुसार करनी छूट राखता, राजादिना करनी छुट माटे अहीं कृतिमां दाणचोरी शब्द वपरायो छे, परंतु आ शब्द आजना संदर्भे घणो विपरीत अर्थमां वपराय छे. ए आवी कृतिओना पठनथी जाणी अने जोइ शकाय छे,
सातमा भोगोपभोग विरमण व्रत स्वीकारना प्रसंगे कृति उल्लेख अनुसार
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