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श्रुतसागर
वर्ष-३, अंक-५, कुल अंक-२९, जून-२०१३
यस्मनामामालपार्टिलीचंद लानाना मिश्रमामायककीमाश्या णामनिउल्लासिामामिपंचामह अदाधाकनिअधिकायामापर संदरसाविश्यालीइलहावला मीश्व्याराशिध्यादवामदलो लदानवयासपदमाद मावागामिकादमिका पंचकमिश्यासहवनश्यार। सुवरसिंगकरेमियत यासहयाराणिदाजीमुनिम उममातायादार अतिमवि सागवत बारम/वमा पकवार पर माला एगा नाना विनासानुमनामावादासयागार पाल जलदामि रिधिमुंoीमन्नगिनाचीकमपरमादी दिसाबालाधकामुकम्फा निममंगनहोजाना। सुणमालवालक्ष
- विवानिवदेवता वीविावा प्राधान मूरिहरिकशबाख तवरियाजाज्ञामुद॥54 मंगलमालासंयनशाक लागनीको निरमलमाविजमरणशायदवननाजोल
दामदयायाधिश्रीचनलवादापाटनगरासालावा डामध्येबाम्रaiमादज्ञातायामम्बामापासत्तसवानकैनलष्यते पलवला कल्याणमम्॥ बब सिंवतरवक्ष्यविधमामेश्वलपदाऋष्टमाराववासरासर श्रीनएकनाझातीयछत्राक्षकसंपदवदामतवसायो। सुश्राविकावाचूतसुतसंण्वधातायोसपाईकनबा बनावारहताश्रीनूतननगरमध्यावाचामानाचिरतीयान
मानदामासागाMEEAPER
श्राविका सरुपाइनी व्रत ग्रहण टीपर्नु चित्र
आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर
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शक संवत १३० मां प्रतिष्ठित श्री आदिश्वर भगवाननी प्रतिमा
शिदूरसह
साडी
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आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर का गुखपत्र
श्रुतसागर
२९
* आशीर्वाद
राष्ट्रसंत प. पू. आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा.
* संपादक मंडल *
मुकेशभाई एन. शाह
कनुभाई एल. शाह
डॉ. हेमन्त कुमार
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हिरेन दोशी
केतन डी.
शाह
एवं
ज्ञानमंदिर परिवार
१५ जून, २०१३, वि. सं. २०६९, ज्येष्ठ सुद-६
प्रकाशक
आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर
श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र कोबा, गांधीनगर-३८२००७
फोन नं. (०७९) २३२७६२०४, २०५, २५२ फेक्स: ( ०७९) २३२७६२४९
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website : www.kobatirth.org email : gyanmandir@kobatirth.org
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१. संपादकीय
२. बारव्रतनो संक्षिप्त परिचय
६. श्रावक बारव्रत स्वाध्याय
७. भरुचतीर्थना प्रतिमा लेखो
३. सम्यक्त्वमूल द्वादश व्रत सज्झाय
४. सरूपाई बारव्रतोच्चार टीप
५. गोरी श्राविकानी टीप
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प्राप्तिस्थान
अनुक्रम
८. सम्राट संपत्ति संग्रहालयना प्रतिमा लेखो
९. भरतेश्वर बाहुबली रास युद्ध अने उपशमने विषय बनावती रचना
१०. जैन प्रतिमाओं की परंपरा
११. ज्ञानमंदिर संक्षिप्त अहेवाल मे २०१३
१२. समाचार सार
प्रकाशन सौजन्य
३
कनुभाई ल. शाह
५
मुनिश्री सुयशचंद्रविजय १६
हिरेन दोशी
२७
मुनिश्री सुयशचंद्रविजय ४०
हिरेन दोशी
४७
५३
आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर तीन बंगला, टोलकनगर
परिवार डाइनिंग होल की गली में
पालडी, अहमदाबाद - ३८०००७ फोन नं. (०७९) २६५८२३५५
·
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आचार्यश्री विजय
सोमचंद्रसूरिजी
संपादक
डॉ. श्री अभय दोशी
डॉ. सत्येन्द्र कुमार
कनुभाई ल. शाह
डॉ. हेमन्त कुमार
कटारिया संघवी श्री मिश्रीमलजी नथमलजी परिवार (नैनावा निवासी ) रत्नमणी मेटल्स एन्ड ट्युब्स लि. अहमदाबाद
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६५
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७७
७९
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संपादकीय
ज्ञानमंदिरनी एक विशिष्ट फलश्रुति रूपे श्रुतसागर पत्रिका दर मासे प्रकाशित थई रही छे. केटलाक समयथी आ ज पत्रिकानो दर त्रीजो अंक विशिष्ट विषयना समुच्चय रूपे प्रकाशित थई रह्यो छे. आ ज उपक्रमनो पहेलो अंक मार्च-२०१३मां प्रकाशित थयो, जेमां सागरचंद्र रास, अरणिक रास, तेमज अन्य विशिष्ट लेखोनुं प्रकाशन थयु. आ अंक पण ए ज कुळनो बीजो अंक छे. आ अंकमां एक विषयानुसारी कृतिओनुं प्रकाशन करवामां आव्युं छे. पूर्वकालीन महापुरुषोए स्वीकारेल बार व्रत टीपनी कृतिओना समुच्चय रूपे आ अंक प्रकाशित कर्यो छे.
आ अंक आपना हाथमां विशिष्ट श्रावक-श्राविकानी जीवन चेतनाने लईने आव्यो छे, तो श्रावकोए गुरुभगवंतनी प्रेरणाथी दृढप्रतिज्ञ थई ग्रहण करेल व्रत स्वीकारनो रोमांच अहीं जोवा मळे छे. श्रावकोना परिणाम अने एमनी व्रत पालननी निष्ठानो परिचय आ व्रतग्रहणनी कृतिओमांथी मळे छे. मापवानी वृत्तिथी सदंतर पर थई, पामवानी वृत्तिमां ज चित्तने परोवनार भव्यात्माओना परिणाम अने पुरूषार्थनी आ यशोगाथा छे.
पूर्वकाळमां श्रावकोए स्वीकारेल व्रतोनी टीप ए आ अंकनो मुख्य विषय रह्यो छे, तो व्यवहार प्रधान जीवनमां व्रत ग्रहण द्वारा केंद्र स्थाने धर्म स्थापनानी वात ए आ व्रत टीपोनो मुख्य विषय रह्यो छे. व्रत ग्रहणना विषयनी साथे साथे प्राचीन परंपरागत जीवन प्रणालीनो मळतो बोध आ टीप कृतिओनुं महत्त्व- पासुं छे.
व्रत टीपनी कुल ४ कृतिओ आ अंकमां प्रकाशित करी छे. आ व्रत टीपोनी विशेषता ए छे, के' आवा प्रकारनी कृतिओनी बीजी नकल मळवी मुश्केल होय छे, तेमज आ कृतिओ व्रत ग्रहण करनारनी हयातीना समयनी ज होवानी संभावना वधु छे, तेथी कृतिकार अने व्रत ग्रहण करनार श्रावक के श्राविकाना समयनी केटलीक विशेषतानो स्पष्ट परिचय पण मळी रहे छे. आ कृतिओनी रचना सामान्यथी व्रत ग्रहण करनार पोतानी स्मृत्ति माटे करता होय छे, के कोई गुरुभगवंत पासे आ प्रकारनी पद्यात्मक के गद्यात्मक नोंध बनावता होय छे. मूळमां आ कृतिनी रचना पाछळनो उद्देश तो एटलो ज होय छे, के व्रत ग्रहण करनार व्रत प्रत्येनी पोतानी जागृति अकबंध राखे अने बने एटली व्रतनी आराधना वधु सारी
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४
जून २०१३
ते करे. आज उद्देशथी व्रत ग्रहण करनार पण पर्वतिथिए के विशेष अवसरे व्रत टीपनुं वांचन करता होय छे. केटलीक व्रत टीपोमां आवा प्रकारना उल्लेखो पण जोवा मळे छे. आवी केटलीक व्रत टीप कृतिओ अहीं प्रकाशित करी छे.
-
आकृतिओना प्रकाशनथी तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था अने व्रतनी विशेषताओ उजागर थशे, तो पूर्वकालीन महापुरुषोना अभ्यंतर जीवन दर्शननुं चित्र वधारे स्पष्ट थशे. व्रत विषयक आवा प्रकारनी कृतिओना प्रकाशनथी साहित्यना एक नवा प्रकारनो अने नवा आयामनो लाभ विद्वद् समाजने मळ्या वगर नही रहे.
अत्रे प्रकाशित चारेय टीप कृतिमां बधु ज समजाई गयुं छे, तेवुं नथी ते कारणे पदच्छेद योग्य शब्दार्थ आदिमां भूल थई गई के रही गई होय ते बनवा जोग छे. जाणकारो तेने सुधारे अने ध्यान दोरे एज विनंती.
विशेषमां आ अंकमा पू. आचार्य श्री सोमचंद्रसूरिजी म. सा. पासेथी भरूचतीर्थनी प्रतिमाओना अप्रगट ९१ जेटला लेखो प्राप्त थया छे. जेमां शक संवत ९३० वर्षनी नागेंद्रकुलना विजयतुंगाचार्य गच्छना कोईक आचार्य भगवंत द्वारा प्रतिष्ठित प्रतिमानो लेख पण अहीं विशेष ध्यानार्ह छे. आ लेख अने प्रतिमाजीनो फोटो आ अंकना टाईटल पेज नं. २ उपर मूकवामां आव्यो छे. तो सम्राट् संप्रति संग्रहालयमां संग्रहित प्रतिमाना १८ लेखो अत्रे प्रकाशित कर्या छे. संग्रहालय प्रतिमा लेखोमां वि. सं. १२१५मां हीमक गामे थारा गच्छना कोईक आचार्य भगवंत द्वारा प्रतिष्ठित पार्श्वनाथ भगवाननी प्रतिमानो लेख पण ऐतिहासिक द्रष्टिए महत्त्व धरावे छे. आ प्रतिभा अने लेखनो फोटो टाईटल पेज नं. ३ उपर मूकवामां आव्यो छे.
वाचको पण पत्रिकाना एक अंग होय छे, वांचन द्वारा के विचार द्वारा. अभिप्राय अने लेखन द्वारा आपश्री पण आ पत्रिकामा लेख मोकलावी शको छो, योग्य अवसरे नामोल्लेख साथे आपश्रीनो लेख छपाशे.
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आ अंक सिवाय आवतो त्रीजो अंक (३२मो) पण आ व्रत विषयक कृतिओना समुच्चय रूपे प्रकाशित करवानी भावना छे. आपश्री पासे आवी व्रत टीप संबंधी कृति होय तो अवश्य अमने पाठवशो ए ज अभ्यर्थना सह...
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बारव्रतनो संक्षिप्त परिचय
कनुभाई ल. शाह
'धर्मथी सुख अने पापथी दुःख' आ एक सनातन सत्य छे. जे आत्मा मन, वचन अने कायाथी पापनुं सेवन करे छे ते अवश्य दुःखने पामे छे. अने जे जीवो मन, वचन अने कायाथी पापोनो त्याग करी, धर्मनुं आचरण करे छे. ते अवश्य सुखने पामे छे. जेना हैये दोषथी बचवानी ने सुखने मेळववानी ईच्छा छे ते दरेक आत्माए पापने छोडवानो अने धर्मनुं आचरण करवानो प्रयत्न करवो जोईए.
चार गतिमां मात्र मानवगति ज एवी छे, के तेने प्राप्त करी जीव धर्माचरण करी शके छे. एटलुं ज नही पण कर्मना बंधनो तोडी मुक्तिपदने पामी शके छे. मानव भवन प्राप्ति थतां जीवने जे शक्तिओ प्राप्त थाय छे. ए अन्य गतिमां सुलभ नथी.
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मानवजीवनना विकास माटे शास्त्रकारोए सामान्यथी बे मार्ग बताव्या छे. - देशविरति धर्म अने सर्वविरति धर्म. सर्वविरति एटले श्रमण मार्ग, देशविरति एटले श्रावक मार्ग.
व्रत.
संपूर्ण पापोनो संपूर्ण अंशे निषेध एटले सर्वविरति संपूर्ण पापोनो यथाशक्य निषेध एटले देशविरति.
सर्वविरतिनो मार्ग सरळ नथी. घरबार, कंचन, कामिनी ईत्यादिनो संपूर्ण त्याग करी, अणगार अवस्था प्राप्त करवी पडे, त्यारे सर्वविरतिनी उपासना अने आराधना शक्य बने.
आ बधुं सामान्य जन माटे शक्य के सरळ नथी. संपूर्ण पापोनो यथाशक्य निषेध करी शकाय छे, देशविरतिना स्वीकारथी.
व्रत ए बंधन नथी, मुक्ति छे. असंख्य पापोमांथी व्रत स्वीकार द्वारा छुटाय छे. सर्वविरतिधरनुं व्रत महाव्रत कहेवाय
कारण के मन वचन अने कायाथी त्रणेय योगथी त्रिविध त्रिविध छे.
ज्यारे देशविरतिधरनुं व्रत अणुव्रत कहेवाय
कारण के वचन अने कायाथी द्विविध द्विविध छे.
श्रावकना बार व्रतोमां प्रथमना पांच अणुव्रतो छे :
(१) अहिंसा (२) सत्य (३) अचौर्य (४) ब्रह्मचर्य अने (५) परिग्रह परिमाण
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जून - २०१३ आ पांच व्रतोना विकास माटे त्रण गुण व्रतो छ :
(६) दिशा परिमाण व्रत (७) भोगोपभोग परिमाण व्रत अने (८) अनर्थ दंड विरमण व्रत.
आ व्रतोना पालनमा दृढता आवे ते माटे चार शिक्षा व्रतो छ : (९) सामायिक (१०) देशावगासिक (११) पौषध अने (१२) अतिथि संविभाग व्रत.
आ बार व्रतो जीवनने उर्ध्वगामी बनाववा माटेनां पगथियां छे, तेना पालनथी आत्मोन्नति निश्चित बने छे.
एक साथे बार व्रतो अंगिकार करवां ए उत्तम छे, छतां कोई एक साथे लेवाना बदले पोतनी शक्ति अनुसार व्रत स्वीकारी, क्रमशः उत्तरोत्तर बार व्रतनो स्वीकार करी शके छे. व्रत धारण करवाथी चारित्रनो विकास तो थाय ज छे, साथे-साथे अविरतिमां होवाथी निरर्थक आश्रवोथी बची शकाय अने एटला अंशे कर्मनो बंध टळे, सम्यक्त्व एटले शुं?
बार व्रतो ग्रहण करतां पहेला सम्यक्त्व एटले श्रद्धा खास जरूरी छे. श्रद्धा न होय तो बाकीना व्रतो एकडा वगरनां मींडां जेवां छे, माटे बार व्रत के कोई पण व्रत साथे सम्यक्त्व उच्चरवानुं छे. सम्यक्त्व एटले श्रावकधर्मरूपी महान ईमारतनो पायर्या छे. सम्यक्त्व वगरनी कोईपण धर्मक्रिया अचिंत्य फल आपवा समर्थ बनती नथी. तेथी ज पू. महोपाध्याय श्री यशोविजयजी महाराजए कह्यु छ के,
'दानादिक किरिया नवि दीए, समकित विण शिवशर्म'
आथी भवभीरू आत्माए सौ प्रथम सम्यकत्व अंगीकार करी, व्रत स्वीकार अने व्रत परिपालनमा जागृत बनवू जोईए.
सम्यक्त्वनुं मूळ : सुदेव,सुगुरू अने सुधर्म उपर श्रद्धा. १. सुदेव : रागद्वेषादि अढार दोषो रहित अने १२ गुणो सहित वीतराग
अरिहंत परमात्मा तेमज आठेय कर्मोनो नाश करनार सिद्ध
भगवंतो सुदेव स्वरूप छे. २. सुगुरू : कंचन अने कामिनीना त्यागी, पंच महाव्रतधारी, षट्काय जीवोना
रक्षक, सत्तावीश गुणोने धारण करनार वीतराग प्रभुनी आज्ञामां
विचरनार साधु ते सुगुरु छे. ३. सुधर्म : सर्वज्ञ भाषित विनय मूलक अहिंसा, संयम अने तप रूप धर्म ते
सत्य सुधर्म छे.
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अतिचारो
१. शंका
२. कांक्षा
३. विचिकित्सा
:
४. मिथ्यादृष्टि प्रशंसा :
५. तत्संस्तव
श्रुतसागर - २९
उपरोक्त सुदेव, सुगुरू तथा सुधर्म-आ त्रण तत्त्वोने श्रद्धाथी जाणवा समजवा अने आराधवा जोईए.
समकितना पांच अतिचारोने पण जाणी लेवा जोईए, जेथी अतिचार न लागे.
अतिचारो
वध
बंध
छविच्छेद
:
अतिभार
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:
(१) स्थूल प्राणातिपात विरमण व्रत
व्याख्या : निरपराधी त्रस (हालता-चालता) जीवोने मारवानी बुद्धिथी मारवा नही. अने स्थावर जीवोनी मर्यादा करवी.
: जिन वचनमां शंका करवी ते.
अन्यमतनी अभिलाषा करवी ते.
धर्मना फळ विषे संदेह करवो ते.
अन्य धर्मीओनी प्रशंसा करवी ते.
अन्य धर्मीओनो तथा कुलिंगीओनो परिचय करवो ते.
पांच अणुव्रतो
गृहस्थ जीवनमां रहेलो श्रावक सूक्ष्म हिंसानो त्याग करी शकतो नथी, केमर्के व्यापार, कुटुंब परिवार वगेरेथी संकळायेलो छे. गृहस्थ जीवनमां संपूर्णपणे अहिंसानुं पालन अशक्य छे. त्यारे वधुमां वधु जयणा अने अहिंसाना पालन पूर्वक जीवनशैलीनुं आयोजन थाय ए आ व्रतनो मूळ उद्देश छे. श्रावके द्रव्य, क्षेत्र, काळ अने भाव आम चारेय निक्षेपाए हिंसाथी जेटलुं दूर रही शकाय तेटलुं रहेवानो प्रयत्न करवो जोइए.
आ व्रतना पांच अतिचार आ प्रमाणे छे :
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:
....
७
: कोइनो वध करवो, कोइना प्राणोनो नाश थाय ते रीते मार ते.
: बाळकादि के पशु वगेरेने गाढ बंधनथी बांधवा ते.
: कोइ प्राणी, दास-दासी आदिनी चामडी के अंगोपांग कापवा
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:. मजूर, पशु के वाहन पर तेना गजा उपरांत भार लादवो, मानसिक दबाण लाववुं ते.
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जून - २०१३ भातपाणी विच्छेद : मनुष्य-पशु वगेरेने भोजन-पाणीनो अंतराय करवो तेना
खावा-पीवाना समय करतां मोडु आपq के अल्प प्रमाणमां
आपq ते. (१) स्थूल मृषावाद विरमण व्रत :
व्याख्या : स्थूल मृषावादना त्यागरूप आ द्वितीय व्रतमां खास पांच मोटा जूठनो त्याग करवामां आवे छे. १. कन्यालीक : छोकरा, छोकरी, नोकर-चाकर वगेरे माटे तेना रूप, गुण,
ऊमर इत्यादि बाबतमां जूढुं बोलवू नहि. कोइने सखत आघात लागे अने हृदय भांगी पडे एटली हदे जूटुं बोलवू नहि. इरादापूर्वक
जाणी जोइने जूटुं बोलवू नही. २. गवालीक : गाय, बळद, घोडा, वगेरे चारपगां जानवरो अंगे दूध, वेतर,
आदत वगेरे बाबतमां जूटुं बोलवू नहि. ३. भूमि अलीक : भूमि, खेतर, फ्लेट, घर, दुकान, ऑफिस संबंधी जूटुं बोलवू
नहि. बीजानी जमीन पचावी पाडवा संबंधी जूटुं बोलवू नहि. ४. थापण मोसोः पारकी थापण ओळववी नहि. ५. कूटसाक्षी : बीजाने नुकसानमा उतारे एवी जूठी साक्षी पूरवी नहि.
आ सत्यव्रत अंगेना पांच अतिचारो त्यजवा जोइए. १. सहसाक्षात्कार : उतावळथी के वगर विचारे बोलवू, कोइने गाळ देवी, के
मार्मिक वचन बोलवू ते. २. रहस्य भाषण : कोइनी गुप्त वातो जाहेर करवी. ३. विश्वस्तमंत्र भेद : पोतानी पत्नी, सगासंबंधी आदि विश्वासुना दुषण कहेवा. ४. मृषा उपदेश : जूठो उपदेश आपवो, खोटी सलाह आपवी. ५. कूटलेख : खोटा दस्तावेज लखवा, अगर तेमांथी अक्षरो काढी नाखवा
वगेरे. (३) स्थूल अदत्तादान विरमण व्रत :
व्याख्या : मालिके नहि आपेली ते ते वस्तुनो देशथी परित्याग करवो...
मालिकने पूछ्या विना तेमनी कोइपण नानी मोटी वस्तु लइ लेवी ते अदत्तादान कहेवाय छे, चोरी न करवी ते त्रीजा व्रतनो भाव छ, आ व्रतना पांच अतिचारो नीचे प्रमाणे छे ते त्यजवा जोइए.
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श्रुतसागर - २९ अतिचार १. स्नेहाहृत ग्रहण : चोरीनी वस्तु जाणी बुझीने लेवी ते. २. तस्कर प्रयोग : चोरी करवामां मददरूप बनवू ते. ३. तत्प्रतिरूपक व्यवहार ! भेळसेळ करी आपq अथवा एक देखाडीने बीजुं आपq. ४. विरूद्ध राज्य गमन : राज्यना कायदाविरुद्ध वर्तवू. करचोरी करवी तथा
राज्ये निषेध करेल स्थाने जq. ५. कूडतोल कूडमापन : तोल, मान, माप ओछा वधारे राखवा ते. (४) स्थूल मैथून विरमण व्रत :
व्याख्या : स्वदारा संतोष, परस्त्री गमननो त्याग.
पुरुषोए पोतानी स्त्री सिवाय परस्त्रीनो कायाथी सर्वथा त्याग करवो जोईए, तेमज स्त्रीओए पोताना पति सिवाय परपुरूषनो कायाथी सर्वथा त्याग करवो अने साथोसाथ मन वचनथी पण शुद्धि जाळववी जोईए
व्रतनो स्वीकार करनार माटे संयम सर्व प्रथम आवश्यक छे. ब्रह्मचर्यरूप संयम राख्या वगर व्रत साधना थइ शके नहीं. व्रतनुं संपूर्णपणे पालन शक्य न होवाथी भोगनी मर्यादा सिमित राखी ब्रह्मचर्यना पालननो लाभ आ व्रतना माध्यमे मळे छे. आ मैथुन व्रत अंगेना अतिचारोनो त्याग करवो जोइए अतिचारो १. अपरिगृहितागमन : कोइए पण जे स्त्रीने ग्रहण करी नथी ते स्त्री साथे
गमन करवू ते. २. इत्तर परिगृहितागमन : स्वस्त्रीना वियोगमां अमुक समय सुधी वेश्या वगेरे
साथे गमन करवू ते. ३. अनंगक्रीडा : स्त्रीओनां अंगोपांग विकार दृष्टिथी जोवा तथा कामचेष्टा
करवी ते. ४. परविवाहकरण : पोताना पुत्र-पुत्री सिवाय पारकां दिकरा-दिकरीओना
नाता जोडवा, विवाह कराववा ते. ५. तीव्रानुराग : कामचेष्टामा अति तीव्र इच्छा करवी ते कामसेवननी
प्रेरणा मळे तेवां चलचित्रो, फोटाओ, जोवां तेमज दवाओगें सेवन करवू ते.
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पांच अतिचार :
१. धनधान्यपरिमाणातिक्रम
१०
(७) स्थूल परिग्रह परिमाण व्रत :
व्याख्या : नवप्रकारना परिग्रहनुं यथायोग्य परिमाण करवुं. संपूर्ण परिग्रहनो त्याग तो निर्ग्रन्थ श्रमणो करी शके, ज्यारे गृहस्थ जीवनमां परिग्रह वगर चाली शके एम न होवाथी आ व्रतना माध्यमे परिग्रहनी मर्यादाने अल्प बनावी शकाय छे.
२.
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क्षेत्रपरिमाणातिक्रम
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जून २०१३
-
: धार्या परिमाणथी धन वधे ते अथवा तो ते वधेला धनने पुत्रना भागे आप ते अथवा तेनाथी घरेणा वगेरे कराववां ते.
: धारेला क्षेत्रना परिमाणमा वधारो करवो अथवा धारेला मकान वगेरेमां धार्या करतां अधिक माळ बंधाववा ते.
: सोनुं-रूपुं वगेरे परिमाणथी अधिक राखवुं ते.
: त्रांबु, कांसु, पित्तळ, स्टील आदि तथा वासणो वगेरे परिमाणथी वधारे राखवां ते. : दास-दासी, गाय-भैंस वगेरे जनावरो परिमाणथी अधिक राखवां ते.
३. रौप्य स्वर्णपरिमाणातिक्रम
४. कुप्यपरिमाणातिक्रम
५. द्विपद- चतुष्पदपरिमाणातिक्रम
उपर प्रमाणे श्रावक जीवननी अति महत्त्वनी छतां पण नानी प्रतिज्ञाओ रूपे पांच अणुव्रतोनुं स्वरूप विचार्य. पांच मोटा पापोने रोकवा माटे पांच अणुव्रतो, श्रावक धर्मनो विचार कर्या बाद हवे त्रण गुणव्रतोनुं स्वरूप विचारीए.
गुणव्रतो
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हवेना त्रण व्रतो श्रावक जीवनने वधु गुणसभर बनावनार होवाथी तेने गुणव्रत कहेवाय छे. आ गुणव्रतोना पालनथी श्रावक जीवनना अणुव्रतो वधु निरतिचार अने पालनमा पूर्ण बने छे.
(६) दिशि परिमाण गुणव्रत :
व्याख्या : चार दिशा - चार विदिशा, उर्ध्व अने अधो मळीने दश दिशामां जवानी हदनो नियम करवो ते....
आहारसंज्ञा, परिग्रहसंज्ञा, मैथुनसंज्ञा अने भयसंज्ञा वश जीवात्मा धनोपार्जन
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श्रुतसागर - २९
११
माटे दशे दिशाओमां फरी रह्यो छे. त्यारे एना परिभ्रमण उपर एक मर्यादा होवी जोईए, आ व्रत स्वीकारना माध्यमे आ मर्यादा प्राप्त थाय छे.
अतिचार
१. उर्ध्व दिक्परिमाणातिक्रम : धारेल मर्यादा करता वधारे ऊंचे जनुं ते. २. अधो दिक्परिमाणातिक्रम : धारेल मर्यादा करतां नीचे जवुं ते.
३. तिर्यग् दिक्परिमाणातिक्रम: चार दिशा, चार विदिशानी धारेल मर्यादा करतां वधारे जवुं ते.
४. क्षेत्रवृद्धि
५. स्मृति अंतर्ध्यान
: बधी दिशाओनी धारेली मर्यादा भेगी करी एक दिशाए वधु दूर जयुं ते.
: केटली मर्यादा धारी छे ते ख्याल न रहेतां, शंका होवा छतां पण मर्यादाथी वधु बहार जवुं ते.
(७) भोगोपभोग परिमाण गुणव्रत :
व्याख्या : एक वखत भोगवी शकाय ते भोग. भोजन विलेपन वगेरे.... अनेक वखत भोगवी शकाय ते उपभोग वस्त्र, अलंकार वगेरे.....आवी भोग, उपभोगनी वस्तुनुं परिमाण करवुं ते सातनुं भोगोपभोग परिमाण व्रत कहेवाय छे.
आ व्रतनी आराधना माटे अनेक विषयो नजर समक्ष राखवा जरूरी छे. (१) १४ नियमो धारवा (२) १५ कर्मादाननो त्याग (३) २२ अभक्ष्य त्याग (४) ३२ अनंतकाय त्याग.
आ व्रतमां भोगोपभोगना २६ प्रकारना बोलोनी मर्यादा बांधवानुं अने पंदर प्रकारना कर्मादाननो त्याग करवानुं विधान छे ईच्छाओ अने लालसाओ उपर विवेकपूर्वकनो अंकुश आ व्रत स्वीकारना माध्यमे मूकी शकाय छे.
अतिधारो
सचित्त आहार
: सचित्त वस्तु खावी - पीवी, ते...
सचित्त प्रतिबद्ध आहार : सचित्तनी साथ संबंधित वस्तु वापरवी ते....
अपक्वाहार
: बराबर पकावेली न होय तेवी वस्तु वापरवी ते....
: अधकचरी पकावेली (मिश्र) वस्तु वापरवी ते...
दुष्पक्वाहार तुच्छौषधिभक्षण
: खावानुं थोडु, फेंकवानुं घणु एवी वस्तुओ जेम के बोर, शेरडी, सीताफळ, दाडम वगेरे खावुं ते.
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१२
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जून २०१३
सातमा व्रतना २० अतिचार छे एमांथी पहेला पांच अतिचार भोजन संबंधी छे अने शेष १५ अतिचार व्यापार संबंधी छे.
(८) अनर्थदंड विरमण गुणव्रत :
व्याख्या : पापोथी खदबंदता आ संसारमां बीनजरूरी पापो करवा ते कहेवाय अनर्थदंड! आ अनर्थदंडथी यथाशक्ति पाछा फरवुं ते आ व्रतनुं फळ स्वरूप परिणाम छे.
गृहस्थने केटलाक कामो तो आवश्यकतानुसार करवा पडे छे अने ते संबंधी आश्रवो पण एणे सेववा पडे छे, परंतु केटलाक कारणो एवां पण छे के जेने लइने एने निरर्थक ज कर्मदंडना भागी बनवुं पडे छे.
अतिचार
कंदर्प
कौकुच्य
मौर्य
: विकार वधे तेवी कुचेष्टा करवी ते.
:
काम उत्पन्न करनारी वातो करवी ते.
: मुख वडे हास्यादिकथी जेम तेम बोलवु अथवा कोइनी गुप्तवात खुल्ली करवी.
संयुक्ताधिकरण : जरूर करतां वधु अधिकरणो / हथियारो राखवा ते. अथवा अधिकरणो तैयार करीने राखवा ते.
भोगातिरिकता : भोग-उपभोगना साधनो खप करता वधु तैयार राखवा ते.
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अनादिकाळी संसारमां भटकता जीवात्मामा काम, क्रोध, इर्ष्या, अदेखाइ इत्यादिना संस्कारो धरबायेला पड्यां छे. आ संस्कारोथी आत्मा दोषो अने कषायोथी वासित बने छे. संस्कारोने कारणे एने अवळी शिक्षा प्राप्त थाय छे. व्रत पालनमां उद्यमी बनेल आत्माने शुभनुं शिक्षण अने सेवन मळे ए हेतुथी आ चार शिक्षाव्रतोनी संयोजना छे.
चार शिक्षाव्रतो :
चार
चार व्रतो संयमधर्मनी तालिम - शिक्षारूप होवाथी शिक्षाव्रत कहेवाय छे. व्रतोना पालनथी श्रमण धर्मनो अभ्यंतर परिचय मळी रहे छे.
(९) सामायिक शिक्षाव्रत :
राग-द्वेषमां समभाव राखवो ते सामायिकनुं चरम फळ छे. आवी समभावनी साधनारूप ४८ मिनिटनी विरति तेनुं नाम छे सामायिक
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श्रुतसागर - २९
१३
आ नवमं व्रत स्वीकारनार वर्ष दरमियान सामायिक (सामायिकनी संख्या) धारी शकाय छे. गृहस्थ जीवनमा मुख्यत्वे २४ कलाकमांथी थोडोक समय सावध क्रियाओथी दूर रही, पापमय प्रवृत्तिओथी बे घडी अलग थई, परिणाममां समत्त्वभाव प्रगटे ए आ शिक्षाव्रतनो मूळ उद्देश छे. सामायिकना नीचे प्रमाणेना पांच अतिचारो जाणीने त्यजवा योग्य छे.
अतिचार
अनवस्था दोष
स्मृति विहीन
मन दुष्प्रणिधान : मनमां कुविकल्प चिंतवी मनने दुष्ट करी प्रवर्ताववुं ते... वचन दुष्प्रणिधान : सावद्य वचन बोलवु तेमज वचनने दुष्ट प्रवर्तावयुं ते..... काय दुष्प्रणिधान : सामायिकमां काया गमे तेम प्रवर्ताववी के भींते टेको दइने बेस के निद्रा लेवी ते.
: जे टाईमे सामायिक लीधुं ते पूरे टाइमे न पारे-वहेलुं पारे ते....
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: सामायिक लइने टाईम भूली जाय ते अथवा सामायिक पारवुं भूली जाय ते.
(१०) देशावगासिक शिक्षाव्रत :
व्याख्या : दिवसमा ८ सामायिक अने उभयकाळ प्रतिक्रमण करवुं ते... देसावगासिक व्रत स्वीकारना दिवसे ओछामां ओछु एकासणानुं पच्चक्खाण कर जोईए. आ देशावगासिक व्रत वर्षमां अमुक दिवसनी संख्यामां धारी शकाय छे. छट्टा अने सातमा गुणव्रतमां जे दिशाओनी अने उपभोग- परिभोग वस्तुओनी मर्यादा बांधी छे, तेनुं संयुक्तरूपे देशावगासिक व्रतमां संक्षेपीकरण करवामां आव्युं छे.
अहीं पण पांच आश्रवने मर्यादित भूमिमां सेवन करवानुं विधान छे. आ व्रतनी विशेषता एछे के पहेलां पांच अणुव्रतो अने ऋण गुणव्रतोमां जे मर्यादा बतावी छे ते जीवन-निर्वाह माटे छे. ए ज मर्यादाओने अहीं अतिसंक्षिप्त करी, समभावपूर्वक विशेषे करीने धर्माराधन करवा माटे आ व्रतनी विशेष आवश्यकता छे.
अतिचार
आनयन प्रयोग : धारेल उपरांत भूमिमांथी वस्तु मंगाववी ते. : धारेली हद बहार वस्तु मोकलवी ते.
प्रेष्यप्रयोग
शब्दानुपाद : शब्द करीने धारेली हद बहारथी वस्तु मंगाववी ते रूपानुपात : रूप देखाडीने घारेली हदनी बहारनी वस्तु मंगाववी ते.
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जून २०१३
पुद्गलप्रक्षेप : कांकरो वगेरे नांखी धारेल हद बहार रहेलाओने पोते अहीं छे वगेरे जणाववुं ते.
(99) पौषध शिक्षाव्रत :
व्याख्या : धर्मने पुष्ट करे ते पौषध कहेवाय
आठ प्रहर अथवा चार प्रहरनी विरतिनी साधना एटले पौषध !
एक दिवस संपूर्णरूपे सांसारिक इच्छाओं, सर्व प्रकारनो आहार, अब्रह्म सेवन विगेरेनो त्याग करवानुं सूचववामां आव्युं छे. बीजी बाजु आत्मसाधनानुं लक्ष्य पूर्वक विरतिनी आराधनामां होवु ए पौषध कहेवाय छे. पौषधना मुख्य चार प्रकारो छे. १. आहार पौषध, २. शरीर सत्कार पौषध, ३. अव्यापार पौषध, ४. ब्रह्मचर्य पौषध.
पौषधना छ अतिचारो जाणी दूर करवा जेवा छे.
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अतिचार
अप्रतिलेखित शय्यासंथार
अप्रमार्जित - दुष्प्रमार्जित
अप्रति- दुष्प्रति उच्चार
अप्रमा- दुष्प्रमा-उच्चार पासवण भूमि
पौषधविधि विपरीतता
: शय्या =
बेसवा - उठवा - सूवानी भूमिनी बराबर पडिलेहणा न करवी ते...
: संथारो पूंजवो, प्रमार्जवो नहि अथवा संथारो बराबर पूंजवो, प्रमार्जवो नहि ते,
: स्थंडिल मात्रानी जग्या बराबर पडिलेहवी नहि ते...
स्थंडिल मात्रानी जग्या प्रमार्जवी नहि अथाव तो बराबर प्रमार्जवी नहि ते... : पौषध समयसर न लेवो अने समय करतां वहेलो पाळवो ते.
(१२) अतिथिसंविभाग शिक्षाव्रत :
विधि : आठ प्रहरनो पौषध चोविहार उपवास साथे करवो, पारणे ठाम चोविहार एकासणुं करवुं अने एकासणामां पू. साधु-साध्वीजी भगवंतने वहोरावी तेमणे वहोरेला होय ते ज द्रव्य एकासणामां वापरवां. क्वचित पू. साधु-साध्वीजी मनी प्राप्ति न थाय तो साधर्मिक भाई बहेननी भक्ति करी तेमणे वापरेला द्रव्य वापरीने एकासणुं करवु
पंच महाव्रतधारी मुनिराज, पौषध व्रतधारी, देश विरतिधर तथा मार्गानुसारी
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श्रुतसागर • २९ गुणोनो पालक श्रावक पण अतिथि कहेवाय छे. आवा गुण-विशिष्ट अतिथिओनुं सन्मान करवू ए अतिथिसंविभाग शिक्षाव्रत कहेवाय छे.
मुनिभगवंतोनी आहार, पाणी अने उपकरण विशेषथी भक्ति करी, तेमनां दर्शन, ज्ञान अने चारित्रनी आराधनामां सहायक बनवू ए आ व्रतनुं आराधन छे. पांच अतिचारो सचित्त निक्षेप : सचित्त वस्तु अचित्त वस्तुमां नांखी वहोराववी ते... सचित्त पिधान : सचित्त वस्तु वडे ढांकेली अचित्त वस्तु वहोराववी ते. अन्यव्यपदेश : पोतानी वस्तु बीजानी छे तेम कही न वहोराववी. तेमज बीजानी
वस्तु पोतानी छे. तेम कही वहोराववी. समत्सर दान : मत्सर करी मुनिराजने दान आपq ते. कालातिक्रम : वहोरवानो समय वीत्या पछी दान वहोराववानो आग्रह करवो ते. __आ बारेय व्रत कह्या छे ते जे जीव आ व्रतोने सम्यक्त्व साथे निश्चय अने व्यवहारथी धारण करे, ते जीवने पांचमा गुणस्थाननो अधिकारी अथवा देशविरति श्रावक कहे छे. देश अर्थात् अंशथी विरति एटले त्याग, ए देशविरतिनो अर्थ छे. सर्व प्रकारना त्यागने सर्व-विरति कहे छे, आ सर्वविरति साधुने होय छे. साधुना पांच महाव्रतोमां आ बारेय व्रतोनो समावेश थइ जाय छे.
संदर्भ साहित्य १. गृहस्थ दिक्षा याने देशविरति धर्म., सं. - जिनाज्ञाश्रीजी २. १२ व्रतनी संक्षिप्त समज., सं - आ. श्री कीर्तियशसूरि ३. मुक्तिना मंगल प्रभाते., आ. श्री वर्धमानसागरसूरि ४. बारव्रत अने सिद्धशिला सोपान., सं. - पं. पूर्णानंद वि. ५. श्रावकना बार व्रतो., सं. - लाभचंद्रजी स्वामी. ६. आवश्यक मुक्तावली., सं. - महिमाविजय. ७. नेमि-विज्ञान-कस्तूरसूरि स्मृति श्रेणी पुस्तिका ८. आत्मानंद प्रकाश, अंक नं. - १,२,३,४, वि. सं. १९६७-६८
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सम्यक्त्वमूल द्वादश व्रत सज्झाय
मुनिश्री सुयशचंद्रवि. वि. सं. १६८३ना महा सुद १३ना शुक्रवारे आ व्रत टीपनी रचना थई छे. बाइया श्राविकानी आ टीप छे. आ टीप कृतिनी रचना मुक्तिसागर उपाध्याय (राजसागरसूरि)ना शिष्य साधुकवि गुणसागरना शिष्यए करी छे. व्रत ग्रहणना स्थळ विशे कोई चोक्कस माहिती मळी नथी.
बार व्रत टीपमां कविए बाइया श्राविकानी वात करता नोंध्यु छे के' व्रतनुं पालन करतां मननी आशा फळी, व्रत पालननो मनोरथ पूर्ण थयो छे. त्रोटक, दुहा अने देशीना छंदोबंधमां रचायेली आ कृति पोतानी जुदी छाप उभी करे छे. कुल ७२ कडीमां रचायेली आ कृति बाइया श्राविकानी व्रताराधनानी वात विस्तारथी करे छे. कृतिनी छेल्ली केटलीक कडीओमां रचनाकारे उतावळ दाखवी होय एवू अनुभवाय छे. प्रतनुं प्रथम पत्र न होवाथी सातमी कडीना चोथा चरणथी ज कृति प्रकाशित थई छे. कृतिनी कुल ६५ कडीओ अत्रे प्रकाशित करी छे. आम तो सामान्यथी आ प्रकारनी कृतिओमां मळती नोंध अनुसार प्रारंभनी कडीओमा मंगलाचरण, बार व्रत आपनार गुरुभगवंतनुं नाम, अने श्राविकानुं नाम विगेरे होवानी शक्यता कल्पी शकाय.
बाइया श्राविकाए उच्चरेला व्रत ग्रहणंनी नोंध ए ज कृति रचनानो उद्देश होवा छतांय धर्मोपदेशना तत्त्वने पण कविए कृतिना माध्यमे वणी आप्युं छे. पोतानी शक्ति, स्थिति अने परिणाममुं संतुलन जाळवी श्राविकाए संवत्सरी, चौमासी चौदश, अने चौदशना उपवास करवानुं धार्यु छ. तो चोथा व्रत ग्रहण अवसरे ब्रह्मचर्यपालनना आदर्श पात्र सती सीता अने शेठ सुदर्शन, ब्राह्मीसुंदरी अने चंदनबाळाने पण मानसपटलमा उपस्थित करीने धन्यता अनुभवी छे.
पांचमा व्रत ग्रहण समये कवि एक सरस वात रजू करे छे, व्रत स्खलनमां सौथी मोटु व्यवधान छे चंचलपणुं, मननी चंचळता. एटले कवि कहे छे के' मननी चंचळता दूर करी, व्रतनुं पालन करवू जेथी व्रत अखंडित रहे. त्रीजा व्रत ग्रहण दरम्यान वरस दरम्यान सो महोर प्रमाण करवेरानी छुट राखी व्यवहार प्रधान जीवनमां पण धर्मने अविस्मरणीय भावे राखबानी दृढता छती थाय छे. तो साथे. साथे व्रतपालनमां पण आवश्यक अपवाद अने कारण प्रसंगनी जयणा राखी व्रतने अखंड रीते साचवी शकाय छे.
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श्रुतसागर - २९
१७ श्राविकाए ग्रहण करेल आठमा अनर्थदंडना परिहारमा कृति उल्लेखानुसार पोतानी पासे अनाज दळवानी घंटी, खांडणीयुं, सांबेलु, छरी विगेरेनो पोताना उपयोग हेतुं ज वपराश करवो, परंतु अन्य कोईने आपवा नही, कारण प्रसंगे लेवा आवे तो अन्य कुटुंबी लई गया छे. एम कहेवू. आ प्रकारना कथनथी व्रत पालननी तत्परता साथे व्यवहारीक सूझ पण जणाइ आवे छे.
केटलाक विशेष नियमो कृतिमां जणाव्या छे. रोज एक नवकार- स्मरण करीने भोजन करवू, भोजन करतां पहेलां दिशावलोकन एटले नजरनी मर्यादामां कोई महात्मादि देखाय अने योग मळे तो एमने वहोरावी भोजन लेवु. व्रत पालन करता अनाभोगथी व्रत तूटे तो बीजा दिवसे लीलोतरीनो त्याग करवो. कृतिमा आवता केटलाक विशेष शब्दो :
पारका अर्थमां वपरायेलो पीआरी शब्द ध्यान खेंचे छे, तो खेतरमां बंधाता मांचडाना अर्थमां माला शब्दनो प्रयोग बहु अर्थपूर्ण रीते लखायो छे.
भूकी अर्थमां वपरातो शब्द बूकी पोतानुं मूळ स्वरूप जणावे छे, तो क्वाथ अने गोळी अर्थमा प्रयोजाता काथ, गोली शब्दमां सामान्य फेरफारो जणाय छे.
उदीरणा करवू, हाथे करीने उभं करवू आ अर्थमां वपरातो शब्द उदेरी कृतिनी विशेषतामां वधारो करे छे, तो घर-वाखरो शब्द धरवखरीना अर्थने उजागर करे छे.
घउंना छोडमां उपरना भाग माटे वपरातो शब्द उंबी एनी प्राचीनता सिद्ध करे छे. उंबी शब्द आजे पण घउंना डोडा माटे वपराय छे.* प्रत परिचय: ___ आ प्रत डभोई श्रीसंघना ज्ञानभंडारमाथी प्राप्त थई छे. श्रुतकार्य माटे आ रीते प्रत आपवा बदल आभार सह धन्यवाद. प्रतनुं प्रथम पत्र नथी. कुल ७ पेजनी प्रत छे. अक्षरो प्रमाणमां मोटा अने सुधड छे. प्रतमा हांसियामां अने टीप्पणमां खंडित पाठ आपवामां आव्यो छे. आ प्रत वि. सं. १७२९मां लखायेल छे. आ कृतिनी रचना वि.सं. १६८३ दर्शावी छे. ज्यारे प्रत लेखन संवत् १७२९ दर्शावेल छे. एटले आ कृति कोई अन्य आधारे उतारी होवानुं संभवे छे.
*आ अर्थ अमारा कोम्प्युटर विभागमा कार्यरत मित्र संजयभाई गूर्जरे जणाव्यो छे.
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श्री सम्यक्त्वमूल द्वादश व्रत सज्झाय
पईसा' आपुं मनि रुली । *
थूल दस आसायण कही, मूल गभारइं टालुं सही ||७||
7
खादिम भोजन पाणी जाणि वाहणी मिहुणनुं पचखांण । थूक सलेम सुवुं नही, लघुनीति जुवटू' ते सही ||८||
राय गण बलाभिओग, देव गुरुनिग्रहनो योग । वित्तीकंतार' छ आगारइं करी, समकित व्रत पालुं मनि धरी । ९ ।
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संवत्सर चउदसि चउमास, देहशक्तिं करवो उपवास । समकितनुं कारणी होइ, हवई भणसुं व्रत दस- दोई ||१०||
|| मेहं सेवीजी देवी सरसति तणा पाय-ए ढाल //
व्रत पहिलइंजी थूल, जीव सवि पालवा
कृमि वालादिकजी' विण, अपराधई टालवा ! व्रत बीजुंजी थूल, मृषा हुं परिहरु । कन्या गो भूमिजी थापणि, मोसो नवि करुं । ।
नवि भरुं कूडी साखि केहनी" न भाखुं ते हुं भली । ए मोटा पांच जूठां जांणीनई टालुं वली !
अवर असत्य जे सूखिम" तेहनी जयणा वरुं ।
बीजुं अणुव्रत सच्चर पालुं दोष टालुं सुख करुं ||११||
व्रत त्रीजइंजी राजदंड चोरी नवि करुं । अणदीधाजी वस्तु पीआरी नवि हरु । पडी - वस्तुजी लाभई मुझनई जे वली । धणी" मिलइंजी पाछी आपुं ते भली
ते आपुं अरध धरम थानकि, निधान इम जाणी सही ।
वाट गांठिनइ खात्र* चोरी, पाप तोल कूडां नही ।
प्रथम पत्र नथी.
चोरी करवा माटे घरमा प्रवेशवा मीतमां पाडवामां आवतुं कांणुं.
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श्रुतसागर - २९
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दांणचोरी* वरस एकिं सो महुर ते उपर नही ।
सहि* गुरु केरां वचन पालुं वांछित सुख पामुं सही ||१२||
व्रत चउथईजी, सीलव्रत काईं पालीइं ।
मन वचनइंजी, जयणा विशेष भालीइं । कर्म सवेमांजी, मोहिनी " दोहिलुं" जीपतां । तिम व्रतमांजी, दोहिलुं ए व्रत राखतां,
राखता दोहिलं नहीअ सोहिलुं" ए व्रत पालो खरुं । सतीय सीता शेठ सुदर्शन, ब्राह्मी चंदन मन धरुं । धन धन जे जगि सील पालई, नांम तेहनइं रंजीइं" जसुं जाणो सील पालो, मानवभवफल लीजीइ ||१३|| ||ढाल || //फागनी ।।
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पांच अणुव्रत मनि धरुं, इच्छापरिमाणनुं माण |
एक हजार वली पांचसई, महिमुंदी" रोकडी जाण ||१४||
धन धन भविजन सांभलो पालो ए व्रतनीम । चंचलपणुं सवि मुंकीइं, न चूकीइं" सकल व्रतसीम" ।।१५।।
सोनुं मोती जडित वली, सेर पांच मुझ तेह | पांच सेर रूपुं भलुं, कुटि मण पांच ज एह ||१६||
*
वर्ष दरम्यान सो महोर प्रमाण करनी जयणा.
द्विपद दास-दासी मिली, बि राखिवा मुझ खंति । जाति चतुःपद च्यार भलां, ते पणि वेला समेत ।।१७।।
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१९
धन धन भविजन...
धन धन भविजन...
धन धन भविजन...
खेत्र वाडी माला * नवि करूं, वहिल तथा गाडूं एक । खडक त्रिण सहित घर हाट मुझ मोकलां, जिहां रहुं तिहां धरीअ विवेक ||१८ ! |
धन धन भविजन...
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जून - २०१३ भाडां गरहणानी जयणा सही, वरसई वली लुंगडांगें मांन। मोहर पंचास उपर नही, देह काजि आखडी जाण ।।१९।।
धन धन भविजन... धान जाति मण त्रिणसई वली, घी मण पनर दस वली तेल। गोल खांड साकर मिली, वीस वीस मणनु मेल ।।२०।।
धन धन भविजन... अवर क्रियाj९ गांधी तणुं, ते सघलु मण पांच। इंधण° सो मण आण्या, मीठं मण पांच ज संघ[च] ||२१।।
धन धन भविजन... ए मांन एक वरसनु, वली कुंभारनो घाट। मोहर वीसनो आणवो, खारा-शाकनी एहज वाट ।।२२।।
धन धन भविजन... केरी निंबु करमदां, खारां२ करुं वरस प्रमाण । अवर सघलो घर-वाखरो३, शत एक मोहरनो जाण ।।२३।।
धन धन भविजन... वियरसेन राय व्रत लीए - ए ढाल।। हवई छटुं व्रत वखांणीइ ए| ते पहिलूं गुणव्रत जाणीइं ए । जोअण४ च्यारसइं मुझ दिसि दिसिइं ए। जोअण बि वली उड्ढ-अहो दिसिई ए ||२४।। वड शफरी' हु नवि चडु ए, नावादिकनी जयणा करुं ए| लेख संदेसो मोकला ए, अवर आरंभ मुझ नही भला ए ||२५।। सातमुं भोगपभोग जाणवू ए, तिहां चउद नि(य)मनुं आणq ए। दिन प्रति सचित सात धरूं ए, द्रव्य पंचासनी संख्या भरूं ए ।।२६।। विगय पांच मुझ मोकली ए, वाणही६ जोडां ते बि मिली ए। पांन पंचास ते अति भला ए, अवर नही मुझ मोकलां ए ।।२७।।
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श्रुतसागर - २९
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सोपारी लविंग एलची ए, काथो चूनो ते सर्व मिली ए ।
दिन प्रति अध सेर वावरुं ए, वस्त्र वेस आठ ते नित धरूं ए ।। २८ ।।
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भोग काजि कुसुम नही ए, कारण परकाजि जयणा सही ए । गाडलां च्यार नित नवां ए, पोठिया त्रिण ते बइसवा
।।२९।।
घोडो एक उंट हाथी चली ए, कारणि ते पणि जयणा करी ए । सुखासण सुंदर पालखी ए, कारणि ते पणि मइं लिखी ए ।। ३० ।।
आसण बेसण त्री सत" लीए *, च्यार सय्या दिन प्रति भली ए । विलेपन तेल ते वावरुं ए, दिन प्रति अध सेर आवरुं ए ।। ३२ ।।
शीलव्रत कायाए धरूं ए, मन वचन स्वप्न जयणा करुं ए। दस दिस जायवं आववुं ए, नित उठी संख्या ते हुं करूं ए ||३२||
नाहण** मासमां चार वली ए, अंघोल " पनर से सवि मिली ए । पूजा कारण जयणा सही ए, गागरि बि पीवा कहीं ए ।। ३३ ।।
दही- छासि भलुं सालणूं ए, सुखडीजातिसुं सोहामणू ए । धानजाति सघली सही ए दिन प्रति दस सेर मई कही ए १ । ३४ ।।
अणगल** नीर नही वावरुं ए, लुगडां कारणि जयणा करुं ए । अभक्ष्य अनंतकाय नही भली ए, ओषध कारणि जयणा वली ए ||३५||
छासि घी कांजि वली ए. अण गलेवा मुझ मनि रुली ए । तिल काचा खसखस नही ए, ओलानी*६ वली जयणा कही ए ।। ३६ ।।
धान सुल्यां आरंभनी ए. वली ए जयणा मई आदरी ए, सज्जनसु आडि वरसई वरी ए ।। ३७।१
असुद्ध पकवाननी ए ।
सुखडीजाति मेवो सही ए ते मांहि एक मुरकी नही ए ।
सेर पांच दिन प्रति जांणीइं ए, हवइं धान संख्या आंणीई ए ।। ३८ ।।
चोखा गहुं जारि बाजरी ए, रालो" चीणो कांग तूअरी ए । अडद चोखा कलथ मग चीणा ए, जव मेथी बरटी कोदरा ए ।। ३९ ।।
* आसण बेसण त्रीस ते लीए आ पाठ वघु सारो लागे छे.
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जून २०१३
मठ मसूर वटाणा वली ए, लांग झालर" अलशी भली ए । राई तिल ग्यार बावटों* ए, हवई नीलवरण संख्या भणुं ए ।।४० ।।
श्रीफल आंबां आंणीइं ए, खडबूजां केलां जाणीइं ए । झाल" चणा चोलाफली ए, गोआ " अगथीआ" सरसी
मिली ए ।। ४५ ।।
द्राख दाडिम पान तुरीआं ए, कालिंगडां" चीभडांसु मिल्यां ए। सघलां वली जातिसुं ए, पूगी वाल्होल" खांसु खांतिसुं ए || ४२ ॥
फणस अन्ननास आंमला ए, काकड करमंदा अति भला ए । कर" खेजड६ बीली" आंबिली ए, लिंबू कारेला जातसुं ए ।। ४३ ।।
उंबी" पुहुंक" सेलडी सरसु ए, डोडी लिंबडो वली आदरसुं ए । मेथी सुआनी [भाजी भली ए, भरुची तांदलजा सरसी मिली ए ।। ४४ ।।
टींडुरां कंकोडा भला ए, बाउलीआ बीजोरांसुं मिल्या ए। दांतल" आउल तणुं वरुं ए, अवर नीलवणि आखडी धरूं ए ।। ४५ ।।
ओषधइं अवर मुझ मोकली ए, सुकवणी जयगा वली ए गोली३ काथ* बुकी सही ए, अणाहारनी जयणा कही ए ||४६ ||
पनर करमादांन नही करूं ए, घर आरंभई ज[य]णावरुं ए । आजिविका काजि नही आदरुं ए, कारणि ते पणि जयणा धरुं ए ।। ४७ ।।
व्याज डोढ सवाइ आदरुं ए, कारणि वीस गागरि भरुं ए । माटी टोपला वीसए, घर काजि आणवा जगीस ए ।।४८ ।।
वरस प्रति मण वीसनी ए, दालि करवा कारणि कही ए । पंच परवी विना मइं कह्या ए, माथां दस ग्रथवां" लह्या ए ।। ४९ । मासमां पांच घोणी सही ए, करवी कराववा जयणा कही ए । वरसमां रंगावयुं ए, मोहर पनरनुं वली जाणवु ए ।। ५० ।।
आटो अधमण पोत करूं ए, खांडवूं बिमण जयणा धरुं ए । उखणवानो" नियम नही ए, काम-काजि अधिकुं सही ए ।। ५१ ।।
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दिन प्रति चूल्हा च्यार सिंधुखवार ए, काम-काजि अधिक आदरवां ए । इणिपरि सकल व्रत पालवा ए, वली लागतां दूषण टालवा ए ।। ५२ ।।
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२3
श्रुतसागर • २९
ढाल।। अढीआनी।। आठमुं व्रत अति सार, अनरथदंड परिहार। सतीय न[ने] जोइए, पाप ननि] धोइ ए ||५३ ।। रोद्रध्याननी वात, नगर दाह गाम घात। किमई न कीजीइ ए, वयर न लीजीइं ए ||५४।। बलद समारी पाप, नाक फोडी संताप! ते हुं नवि करूं ए, बिलाइं नवि धरूं ए ||५६ ।। यंत्र हल हथीआर, मूसल छरी तरवार । किहनई नापीइं ए, पाप न थापीई ए ।।५७।। उखल घरटी जेह, आगि प्रमुख वली तेह। न आपुं इम कहुं ए, कुटंबजि लहुं ए 11५८ ।।* पापतणो उपदेश, ते टालुं लवलेश। घरकाजि सही ए, जयणा कही ए । ५९।। नाटिक भवाईआ मोर, बाजीगर करई बरइ बकोर६ | उदेरी न जोइए, सरोवर न झीलीए 11६०।। राजकथादिक च्यार, ते जयणा निरधार | पातिक मोटां नहीं ए, नानानी जयणा सही ए ||६१।। अंघोलनहा नही पच्चखाण, वली पगधोअ जाण । नीलोतरी मण वीस सही ए. मोकली दिनइ सही ए ||६२।। सजन-विवाह मनरंग, वली छ पर पलंग। हीडोला खाटनी ए, जयणा वली सही ए ६३|| देव-गुरुतणी तेह, आसातणा वली तेह। जांणी न कीजीइ ए, सारंग गीत लीजीइं ए ||६४।। एणि व्रति भेद अनेक, पालो धरीय विवेक।
जिनजी भाखई सदा ए, पामो सुखसंपदा ए |६५।। * आदा प्रकारनी यंत्र सामग्री कोइ मांगवा आवे त्यारे कोइ कुटुंबी लइ गया छे एम कहुं.
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२४
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// ढाल || || मल्हार ||
व्रत नुमइंजी सामाइक सुधां करूं, मासमांहिजी दस मनमां धरुं । वरसमांहिनी सामाइक संख्या भरुं, यात्रादिकजी कारण विण सघलां करुं ||६६ ||
जिम सामाइकजी ते रीति इहां राखीइं, व्रत बारमुंजी संविभाग नामई भाखीइ । बि सं[[व] भागजी वरसइ वारू कीजीइ, छति योगिजी मानवभवफल लीजीइं ।। ६८ ।।
व्रत दसमुंजी सिख्या मनमां आंणीइं. चउद नियमनुंजी संभारखं वखांणीइं । इग्यारमुंजी पोषधव्रत आराधीइं, पोसा पांच जीव रसई वारुं साधीइं ॥ ६७ ॥
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रोगादिक कारण विना,
राजक दैवकइजी व्रत पालोजी सुधां सघलां एक मनां । इम करतांजी व्रतभंग हुइ कदा, दिवस बीजइंजी नीलवण न लेउं सदा । ।७० ।।
जून २०१३
तदभाविजी भगति करूं साहमी तणी, दिसालोकनजी कीजई अथाव ते भणी । एक नुकारजी" समरी भोजन हुं करूं, श्रावकतणोजी सुधु मारग हुं आदरुं ॥ ६९ ।।
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संवतसोलजी १६८३ वरस त्रासीओ जाणीइं, माहा सुदजी तेरस शुक्रवार आंणीइं ।
व्रत बारनीजी टीप लिखावी अति भली,
ए पालतांजी बाइयानी शुभ आस्या फली ।।७१||
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श्रुतसागर - २९
।।कलश ।।
तपगछतारइ, विजयसेनसूरि धारइ, टीप लिखावी सोहामणी इम व्रत पालो, कुल अजूआलो, पाप पखालो हित भणी । सकलवाचक सोहइं, भविजन मोहइ, मुक्तिसागर सिरताज | कवि गुणसागर सीस पभणइं पामो अविचलराज ।।७२ ।।
=
१. पईसा = पैसा
२. आसायण = आसातना
३. वाहणी = मोजडी
४. सलेखम
श्लेष्म
५. जुवटूं = जुगार
६. वित्तीकंतार आजीविका हेतु ७. थूल स्थूल ८. वालादिक वाळो आदि ९. मोसो = चोरी ? (मुसइ = चोरी ले) १०. केहनी = कोइनी
११. सूखिम
= सूक्ष्म
१२. सच्च - सत्य १३. धणी
१४. सहि
शुभ
१५. मोहिनी = मोह
।। इति श्री सम्यक्त्वमूलद्वादशव्रतसज्झाय सम्पूर्णम् ।। ।। संवत् १७२९ वर्षे लिखितं शांतिनाथप्रासादात् ।। || शुभं भवतुं || || श्रीरस्तु ।।
शब्दार्थ
=
1
=
=
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=
मालिक
१६. दोहिलुं = मुश्केल, दुर्लभ
१७. सोहिलुं = सहेलुं
१८. रंजीइं = खुश थवुं
१९. महिदी = एक प्रकारनुं नाणुं
२०. चूकीइं = चूकवुं
२१. व्रतसीम मर्यादा
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२२. द्विपद बे पग़वाळा
=
२३. माला = मांचडो
२४. वहिल = शणगारेलुं गाडुं
२५. खडक =
खडकी
२६. गरहणानी
२७. आखडी
२८. धान = धान्य
२९. क्रियाणुं = करियाणुं
३०. इंधण = बळतण
३१. कुंभारनो घाट = घटादि सामग्री ?
=
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=
=
लेवानी
नियम
३२. खारां = मीठांना पाणीमां पलाळवा.
३३. वाखरो = घरवखरी
३४. जोअण
योजन
मोटुं जहाज
३५. शफरी ३६. वाणही
मोजडी
२५
कुंभारने त्यां मळती
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२६
जून - २०१३ ३७. गाडलां = गाडु
| ६४, करमंदा = करमदा (खटाशवाळु फळ) ३८. पोठिया = बळद?
६५. कयर = केर ३९. सत = सात
६६. खेजड = खीजडो ४०. नाहण = संपूर्ण स्नान -
६७. बीली = बीली ४१. अंघोल = माथु पलाव्या
६८. उंबी = घउंनो डोडो ४२. गागरि - माटली
६९. पुंहुंक = पोख ४३. सालणूं = कचूंबर
७०. डोडी = एक वनस्पति ४४. अणगल = गाळ्या वगरनुं
७१. दांतल = दांतण ४५. नीर = पाणी
७२. आउल = बावळ (आवोळ नामनी
___एक वनस्पति) ४६. ओलानी = ओसामण?
७३. गोली = गोळी ४७. सुल्या = सडेलां
७४. काथ = क्वाथ ४८. मुरकी = जलेबीना आकारनी मीठाइ
७५. बुकी = चूर्ण = भूकी ४९. जारि = जुवार
७६. गागरि = गागर ५०. रालो =
७७. परवी = तीथी ५१. झालर = चालोर
७८. ग्रंथवां = गुंथ ५२. अलशी = अळशी
७९. घोणी = हाथपग प्रमुख अंगो धोवा ते ५३. ग्यार = जार?
८०. आटो = लोट ५४. बावटो = एक प्रकारनुं धान ८१. उखणवा = धान्य उपण, ते ५५. झाल = वालोर
८२. सिंधुखवा = प्रगटाववा ५६. चोलाफली = चोळी
८३. मूसल = सांबेलु ५७. गोआर = गुवार
८४. उखल = खांडणीयु ५८. अगथीआ = अगथीओ
८५. घरटी = घंटी ५९. सरसी = सरसव
८६. बकोर = शोर ६०. कालिंगडा - कलिंगर
८७. उदेरी = उदीरणा करी-उभु करी ६१. वाल्होल = वालोर
८८. नीलोतरी = लीलोतरी ६२. अन्ननास = अनानस
८९. नुकार = नवकार ६३. काकड = काकडी
९०. राजक दैवकइजी - राजादिना ___ आग्रहथी देवादिना कारणे
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सरूपाइ श्राविकानी बार व्रत टीप
हिरेन दोशी वि. सं. १६४६ना चैत्र शुद ८ना रविवारे नवानगर(जामनगर) निवासी उपकेश ज्ञातीय संधवी देवदास अने पत्नी वानूना पुत्र संधवी वधाना पत्नी सरूपाइए अंचलगच्छीय आचार्य श्री धर्ममूर्तिसूरि महाराज पासे ग्रहण करेला बारव्रतनी आ टीप छे. कृतिनी शरूआतमां वीर परमात्माने नमस्कार करी, आचार्य श्री धर्ममूर्तिसूरि महाराज अने अंचलगच्छर्नु स्मरण करे छ, आचार्य श्री धर्ममूर्तिसूरि महाराजना उपदेशथी वीतराग भगवाननी साक्षिए बारव्रतना उच्चारनी वात करे छे.
देशी चोपाई अने त्रोटक छंदमां रचायेल आ कृति एक प्रवाहमा पूर्ण थाय छे. क्यांक क्यांक वर्ण अने प्रासनी द्रष्टिए कृतिमां चमत्कृति अनुभवाय छे. पण एवा स्थान ओछा छे. त्रोटक छंदनी रचनामां गान वधु सारी रीते खीले छे. कृति कुल ८६ कडीमां विस्तार पामी छे. कर्ता- नाम अज्ञात छे. कृतिना निर्देशानुसार श्राविका सरूपाइए धर्ममूर्तिसूरि पासे बार व्रत उच्चर्या हता. प्रतिलेखन पुष्पिका अनुसार बार व्रत ग्रहण स्थान जामनगर होवानी संभावना वधु छे.
व्रत ग्रहण दरम्यान स्वीकारेला नियमो जणावता कहे छे. के’ रोज नवकारशीनु पच्चक्खाण अने पूजा करीश. भावथी २५ नवकारनुं स्मरण करीश अने दर वर्षे एक अंगलूंछणुं आपीश. चंदरवो अने घरेणुं वर्षे एकवार करावीश तो वहोरावधानो योग मळे तो एक मुहपत्ती वहोरावीश अने पांच दोकडा धर्मस्थानके वापरीश ईत्यादि जणावी बार व्रतनी वात विगते करे छे.
कृति निर्देशानुसार स्थूल प्राणातिपात विरमण व्रत स्वीकार प्रसंगे घरना माप प्रमाणे पृथ्वीनुं खनन करीश, तो वृक्ष वावेतर के खेतीवाडी नहीं करु. ईत्यादि नियमोना स्वीकारनी वात करी छे.
चतुर्थ व्रतना स्वीकार प्रसंगे सीता, सुलसा, चंदनबाळा ईत्यादि महासतीओनो नामोल्लेख कर्यो छे. तो शील पालनना फळ कथन रूपे नारद मुक्तिगामी थयानी वात कथा अंशने उजागर करे छे. शीलना पालनथी वाघ-सिंह अने भूत-प्रेतना उपद्रवो पण दूर थाय छे, इत्यादि जणावी शीलनो महिमा गायो छे. शीलने सूर्यनी उपमा आपता कवि कहे छे. के रात्रीना तिमिरने जेम सूरज दूर करे छे. तेम शील रूपी सूर्य भवना तिमिरने दूर करे छे. शील ए व्रतोमा सौथी कठिन छे. एटले ज शिरमोर छे. कविए आ प्रकारनी शीलनी विभावना द्वारा शील पालननी महत्ता अने अनिवार्यता व्यक्त करी छे. आठमा अनर्थदंड विरमण गुणव्रतना प्रसंगने अनुसरी
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जून • २०१३ कृतिकार जणावे छे के' बस्सो केरडाथी वधारे द्रव्योनुं व्याज लेवू नहीं. वहाण संबंधी व्यापारनी जयणा, बधुं मळीने बे लाख रूपिया सुधीनो वहाण संबंधी व्यापार करवो, बाकीनो त्याग जाणवो. तेमज गाडाओर्नु भाडु विगेरे पण लेवा नहीं. व्रत पालनमां भंग थाय तो बीजा दिवसे नीवी, तप करवू. कृतिमा आवता केटलांक विशेष शब्दो :
प्रधान अर्थमां वपराता शिरोमणी शब्दनुं अहीं प्राच्य रूप जोवा मळे छे. शिरमणी.
सदा अर्थमां वपरातो सदैव शब्द सदीय रूपे कृतिमां वपरायो छे, तो बहु अर्थमां वपरातो बहु शब्द अहीं बोहुली रूपे लखायो छे...
वासणना अर्थमां वपरायेल हांडला शब्द विशेष ध्यान खेंचे छे. तो बहु प्रसिद्ध चणानुं अहीं चीणो रूप जोवा मळे छे. प्रत परिचय:
आ टीपणानुं लेखन पाटणना सालवीवाडामा रहेता मोढज्ञातीय पंड्या सीपाना दिकरा भवानजीए कर्यु छे. आ टीपणुं अमारा संग्रहालयना स्क्रोल विभागमा संकलित अने संगृहित छे. टीपणानी बन्ने बाजुए आपेल रंगीन बोर्डरमा फुलवेलर्नु चित्रण जोवा मळे छे. टीपणानुं परिमाण २०१x१९.५ छे. आ टीपणुं सचित्र छे. कुल चार चित्रो आपवामां आव्या छे. प्रथम चित्र ४४१८'ना परिमाणमां अष्टमंगलनुं चित्र आपेल छे. (जे आ ज अंकना टाईटल पेज नं. ४ उपर प्रकाशित करेल छे)
द्वितीय चित्र २२४१४.५ ना परिमाणमां लक्ष्मीजीचें चित्र तेमज १३४१५'ना परिमाणमां सिंहनुं चित्र आपेल छे. टीपणाना अंतभागे आपेला चित्रमा १२४१९.५ ना परिमाणमां व्याख्यान आपता गुरुभगवंत पासे व्रत ग्रहण करता श्रावक अने श्राविका जणाय छे. चित्रमा मध्यभागे गुरुभगवंत सन्मुख स्थापनाचार्यजी अने ठवणीमा परोवेली नवकारवाळी चित्रनी सुंदरतामां वधारो करे छे. तो गुरुभगवंतनी उपरना भागे धरायेल छत्रनी आकृति खूब सुंदर छे. (आ चित्र आ ज अंकना टाईटल पेज नं. १ उपर प्रकाशित करेल छे.)
टीपणाना अंते करेल 'मुनि क्षमासागरेण चित्रित श्रीरस्तुः' उल्लेखानुसार आ चित्रो आचार्य श्री धर्ममूर्तिसूरि महाराजनी परंपराना मुनिश्री क्षमासागरजी महाराजे आलेख्या छे. चित्रकलामां आ रीतनुं साधुपुरुषनुं योगदान एक विशिष्ट कला साधनानी प्रतीति करावी जाय छे. त्रणेय चित्रो क्षमासागरजी महाराज द्वारा चित्रित होवानी संभावना वधु छे.
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सरूपाइ बार व्रतोच्चार टीप
सारद सार दया करी देवी-ए ढाल।। श्री सिद्धारथभूपतिनंदन, त्रिसलादेवि मल्हारजी। तास पाय प्रणमी मनरंगिइ, आणी हरख अपारजी ।।१।। सहीय समाणी सुंदर प्राणी, जे मनि समकित राखइंजी। इहभवि-परभवि वंछित सिवसुख, ते भविजन सही दाखइजी ।।२।। वीर जिणेसर श्रीमुखि भाखइ, श्रावकना व्रत बारजी। जे भवियण मनसुद्धिइ पालइ, ते लहइ सुख उदारजी ।।३।। सोलछइतालीस चैत्रमासे, अष्टमि तिथि रविवारजी। श्रीधर्ममूरतिसूरि सिरमणि', श्रीविधिपखि गणधारजी ।।४।। तास तणा उपदेस सुणी मनि, आणी भाव विसालजी। श्रीवीतराग पाईई ऊचरीयां, बारइ व्रत रसालजी ।।५।। समकित सुद्ध धरो निज मनमा, जेम लहो भवपारजी। छतइ जोगि देव-गुरु वांदीसुं. कायासकति उदारजी ।।६।।
समकित सुद्ध धरो... दोष अढार रहित जे जिनवर, आठ प्रतीहार जुत्ताजी। पणतीस वाणीना गुण चोतीस अतिसे करि संपत्तांजी ।७।।
समकित सुद्ध धरो... एहवा अरिहंत चिहुं निखेखिई, भाव धरी वंदीजइजी। नाम-द्रव्य-ठवणानई भाव, जिन आरी(रा)धी सुख लहीजइजी ।।८।।
समकित सुद्ध धरो... जिनप्रतिमा जो नहीं मिलइ तु, दिसि जोईनइं स्तवसिउंजी। धर्ममूर्तिसूरि आण धरइ जे, ते मुनि पाइ नमस्युंजी ।।९।।
समकित सुद्ध धरो... केवली भाखिउ जिन धरम साचु, हीयडामांहिइं धरस्युंजी। हरिहर ब्रह्मा देव न मानु, कुगुरु सदा परिहरस्युंजी ।।१०।।
समकित सुद्ध धरो...
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अतीचार पांचइ परिहरीइ, भूषण पांच धरीइजी ।
सुधुं समकित निज मनि राखो, जिम भवसायर तरीइजी ||११||
पचखाण नुकारसी करुं नित वरसिहं पूजा एकजी । सिज्झायनइ नवकार सभाविइं, पणवीस गणुं सुविवेकजी ||१२||
समकित सुद्ध धरो....
वरसिइं एक अंगलूहणुं देहरइ, साहामी एकभगतावुंजी । जावजीव चंद्रूउ” आभरण", वरसिहं एक करावुंजी ||१३||
जून २०१३
समकित सुद्ध धरो....
छत जोगि मुहपती वोहरावं, दोकडा पांच धर्मठाणजी। इणि परि समकित सूधुं पालुं, आणी भाव विनाणजी ||१४||
समकित सुद्ध धरो....
||ढाल ||
पहिलं अणुव्रत कहीइ रे, सखि जीवदया मनि वहीइ । ऊदेरी” संकल्प आणी रे, नवि दूहवई त्रस प्राणी ||१५||
अपराध विना जे हणीइ रे, आरंभिदं वयणा भणीइ । पुढवी पाणी तेऊवाय रे, अनइं वली वनस्पतीकाय || १६ |
समकित सुद्ध धरो...
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तेह दिन जेहनो आरंभ रे, तेह दिन तेहनो आरंभ | मुज आण रहइ जे जीव रे, सीख दिउ तेहनइं सदीव ।।१७।।
१७
-
हिव पढवीधर परमाण रे, खणवी मिदं सहीय सुजाण । ऊंडी पिहुली" वली तिम रे, हुइ घरनो माझेंनो जिम्म ||१८||
हिव समुद्रवारि नवि पीजइ रे, निज हाथि अगनि न खीजइ । वृक्ष वावेवा परिहार रे, मनि सूधो धरीअ विचार ||१९||
एह व्रत * सवाविसु पालुं रे, वली पांच अतीचार टालु । थूलमृषावाद हिव भणीइ, पांच मोटां कूडा सुणीइ ||२०||
२० वसा एटले एक रूपियो. महाव्रतनुं पालन २० वसा समान छे. महाव्रतना २० वसानी अपेक्षाए अणुव्रतां सवा वसा (रूपियामा एक आनी जेटलुं) अहिंसानुं पालन श्रावकजीवनमां थाय छे.
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श्रुतसागर - २९
कन्या गो भूमी अलीक रे, नासावि हार कूडसाखीक। आप काजिइं सजन काजि रे, बोलीसइ ए धर्मकाजि ।।२१।। पर काजिइं कहइवा नीम" रे, ए पालुं जीवित सीम। एह व्रत सवाविसु राखुं रे, निज मनि संवेगिई दाखु रे ।।२२।। हिवइ त्रीजइ व्रति परिहार रे, जेणइ राजविरोध विचार । ते मुजइं नीम लेवा रे, जो धणी अमिलइ तु देवा ।।२३।। जु न मिलइ तु ते वस्त रे, दीजइ धर्मठामि समस्त। एह व्रत सवावसु पालुं रे, एहना पांच अतीचार टालूं ||२४ ।।
सेत्तुंज केरी वाटडी-ए ढाल।। हिवइ चोथं व्रत बोलीइ, ब्रह्मचर्य व्रत उदार सखीजी। दुःकृत सवि पूरिइं करई, सिद्धिवधू उरि हार सखीजी ।।२५।। सील सदा भवीयण धरो, जेहथी सिवसुख ठाण सखीजी। मनवंछित फल पामीइ, आणो भाव विनाण सखीजी. (आंचली) देव-पसू(शु) मेहुण" नही, दुविध त्रिविध पचखाण सखीजी। माणसनो वेरु" कहुं, स्वपुरुषसंतोष जाणि(ण) सखीजी ।।२६ ।।
सील सदा भवीयण... मासे च्छ दिन आखडी" ए, मनमांहिइ राखि सखीजी! अवर पुरुष सवि परिहरु, एकविध एकविह दाखी सखीजी ।।२७।।
सील सदा भवीयण... सेठ सुदरसण जाणीइं, ब्राह्मी-सुंदरी होइ सखीजी। सीता-सुलसा-द्रुपदी, चंदनबाला जोइ सखीजी ।।२८ ।।
. सील सदा भवीयण... पुफ्फचूलानइं चिल्लणा, सुभद्रादेवी सार सखीजी। जिठ्ठ-सुजिठ्ठा मृगावती, पउमावइ देवि उदार सखीजी ।।२९ ।।
सील सदा भवीयण...
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जिण जणणी जे ती हुई, ते सवि सील विसाल सखीजी । दवदंतीअ प्रभावती, चंपकमाल दयाल सखीजी ||३०||
भूत-प्रतनई साकिणी, वाघ सिंघलय" दूरि सखीजी । विषधर तु भय तस नहीं, हुइ आणंदपूर सखीजी ||३१||
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सवि हुइ व्रतमांहि मूलगुं, सील समु नहीं कोइ सखीजी । सुजस घणो जगि पामीइ, बहु सोभागी सोइ सखीजी ।। ३२ । ।
हिवइ पंचभइ व्रति, परिग्रहनो परिमाण | क्षेत्र दोइ अनिइ, पराजीयां बार वखाणि । घर खडकी वाडा, सहित छइ ते होइय | हाट बेहु ए सारु, भाडइ पोतिसुइ ||३५
३४
३५
सांभलि रे प्राणी, साचो धर्म (म) विचार । मनवंछत सिब(व) सुख, पामो जिम उदार. कुट मण दस ज धारूं, रूप्प मुद्रा दोइ सत । वली सोनू रूपू तोला, त्रणसहिहुत्ततरूउं" । शीसूत्राबू पीतल, मली प्रत्येकिइ बे सेर ज राखु, साचो धरि विवेक || ३६ ||
जून २०१३
सील सदा भवीयण...
हिवइ गायस वेली, वारू च्यार उदार । अस्व ऊंट कुं धरीइ, महिषी च्यार सफार ।
३७
नारद जे मुगतिइं गया, ते तु सील प्रमाण सखीजी । दुरिततिमिर दुरिइ करइ, उदयो जिम जगि भाण" सखीजी ।। ३३ ।।
३१
सील सदा भवीयण...
वाड नवइ संभारीइ, आणी हियडइ न्यान सखीजी । इणी परि ए व्रत पालता, लहीइ अति घण मान सखीजी ||३४||
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सील सदा भवीयण...
|| माई धिन सपन तु ध. - ए ढाल //
-
सील सदा भवीयण...
सील सदा भवीयण...
सांभलि रे प्राणी...
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३३
श्रुतसागर - २९
बे वली धारू, वृषभ जोडि अतिसार | बे छाली सवेला, धरीइ हिविं विस्तार ।।३७।। सांभलि रे प्राणी... जठहर दोसे रज, घरस प्रतिइं वीस वेस। सूत्र हीर सणीया, कांचली वीस धारसि। वस्त्र पंच वर्ग गज, शत पंचमिइ राखि । कण" सूडा पंच ज, दास-दासी दस दाखि ||३८ ।। सांभलि रे प्राणी... धृत तेल अनइ गुल, साकर खांड वशेस। ए सवि प्रत्येकइ, वीस मण राखेस। . दोइ विहल ज गाडा, धरीइं अति हि विशाल | बे लाख तणां, करीयाणा अधिक रसाल 1|३९। सांभलि रे प्राणी... वली रू मण च्यालीस राखी जइ सविचार | धणी पुत्र परिग्रह तेहनो नही परिहार। व्रत पंचम ए हुं सवाविसो राखीसि। हिवइ सुंदर छठउं दिसि व्रत सुभ भाखीसि ।।४०।। सांभलि रे प्राणी... थलवटि चिहु दसि गाऊ सित पंच हुइ । ऊचू अट” जोयण नीचूं अध कोस जोय। हिवइ सफर चडेवा नीम मुझसुं रंग। देव-गुरनी यात्रा जाता नही मुझ भंग ||४१11 सांभलि रे प्राणी...
आव्यु आत्यु रे आत्यु नलहर चिहुं परिख । ढाल।। सत्तमव्रत रे भोगपभोग विचारीइ। प्रतिदिवसिई रे सचित जाति दस सारीइ। द्रव्य च्यालीस रे दिवस प्रति वली कीजीइ। हिवइ वारू रे विगइ पंच ते लीजीइ ।।४२।।
टक। पिहरीइ पगरखां च्यार जोडा, तंबोल मुखवास सेर ए। दिन प्रतिइं वेस ज च्यार पहिरू, पंचवन फूल एकसेर ए। दिन प्रतिइं बेसवा त्रीस आसन, दससियन वलेपन अति भला। प्रतिदिवसव गह(म)नं छ दिसि ए, गाऊ वीस मोकलां ।।४३||
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नाहण मासे रे च्यार करीनइ सारीइ | अंघोलज रे पनर विना नवि कारी ए ।
पाणीना रे कुंभ बे सेर पंच भात ए । सेर पंचज रे सूखडीनी ल्यूं जाति ए ||४४॥
५१
सालणा" पनर ल्यूं दिनप्रति अभक्ष वीस परिही ए ! कारण विशेषइ करू जयणा, अनंतकाय निवार ए । चलित रसनी करूं जयणा, दंतचूडो एक वसर रे ए । कचकडा" केरु एक चूडो, जाव-जीव सविवेक ए ।। ४५ ।।
५२
प्रति वरसइ रे वार त्रणि ते रंगवा ।
५३
कसुभां रे घाटडी" च्यार ज उढवा । रेसमीनी रे घाटडी वरसइ एक ए । वली पंचसेर रे कुंकम केसरोल ए ||४६ ||
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सीदूर एक सेर हीगलो, रातु रंग त्रिणि सेर ए । पाथीय मीण ऋणि सेर काजल, सारीए अधसेर ए । चादला कोडी वीस वरसए केसूडी" त्रणि सेर ए ।
५५
कसु कसु सुकडि" सेर पंच, वली धूपणुं एक सेर ए ।। ४७ ।।
जून २०१३
कपूर जरे निबचूउ, कालो बाबरु गुलाल ज रे । कालूवरी" (रि) मलीयागरु ए।
सघला रे वरस प्रति अधसेर ए ।
वली अबीर ज रे, लोबान ए बिहु सेर ए ।।४८ ।। केसर बसेर वली धरुं, मीती" वली सेर सात ए । दस सेर सुंदर अति सुगंधिई, तेल केरी जाति ए । कुसुम जाति सुगंध वारू, कीजीइ अति घणू रसिदं । हिवइ धान केरी जाति बहुली, बोलीइ मननइ रसिदं ।। ४९ ।। 1 /गगनि वादल अति गिहि गया-ए ढाल ||
चोखा गहुं जारि जातिस्युं, अडद चोला मग जाति रे । मठ चिणे बरी
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बाजरी, जव भरट कुलथीअ" भाति रे || ५० ॥
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३५
श्रुतसागर . २९
धन धन ते भवीयण सही, श्रावकी व(वि)रति उदार रे। मनसुद्धिई जे पालसिइ ते, लहइसिइ भवपार रे ||५१।। वेकरीउ बल नागली, चीणो मरटप्रधान रे। वाल मसूरिनई नानूई, कांग तिल तू अरिधान रे ।।५२ ।। मेथी वेसणनई सूआ, राईअ गोखरु भाति रे। चिरहालीनई आसेलीउ, अजमो जीरुं जाति रे ।।५३ ।। एतलां धान उवरिइं जि के, मुझ रहइ सवि पचखाण रे। युध दुरभिख्य मूंकी करी, मिइं कीधा पचखाण रे ।।५४ ।। नीलवणिनी व्रति कीजीइ, सांगरी कइर उदार रे । कालींग जाति नीलाविणा, चीभडां चीभडी सार रे ।।५५।। आंबा मतीरां" त्तुसडी, खडबूजा लीबूंआ चंग रे।। केला पुंहुक गहुं झारि तो, नालीअर मनरंगि रे ।।५६ ।। चोला मुंग गोआरनी, वाल तणी फली सार रे। भाजी सरिसव अनि सूआ, तांजलजु उदार रे ।।५७।। टीडसां डोडी सही कही, परबती राई अपार रे | लीजीइ वली कोठीबडां, नीलां मीरी सफार रे 11५८।। दाडिम बोर बीजोरडां, नीलां करमदां जाति रे। लीजीइ नीलां आमला, टीडूरां तणी भाति रे ।।५९ ।। ए मोकलां करणां मुंहनि, नीली सोपारी द्राख रे। कोहला फालसा सेलडी, वरसोलां सीघोडा राखि रे ||६०।। डांडां जाति मुज मोकली, उलीया गल्लकां पान रे। दांतण आउलि बोरडी, गोरडी खइर तुं मान रे ।।६१|| नीलां ते सूका वली मुज, रहइ मोकला होइ रे। उसह काजि नीलवणि जि के, नीम नहीं मुझ सोइ रे । ६२ ।।
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// चोपाई ।।
गंध आणाना कहइस्युं बोल, सूंठि मिरी हरडइ अमोल ।
हींग पीपिर किरीयातुं सार, खारकि टोपरां अतिहि सफार ||६३।।
रतब खलहलां कहियां भूर, गोल खांड साकर खजूर । आसंधि केरु नहीं परिहार, पीपलीमूल हलद जव खार ||६४ ।।
जून २०१३
गंध आणइ एतई सारीइ, करि नामनइ आप तरीइ । गोली उसड काजिइं करी, आसव" काढउ" बूकी खरी ||६५||
गोली बूकी दिनि पा सेर, काथकि” द्वारिइं तु इक सेर । आहार ऋणि वार दिन प्रति करूं, सूखडी वली वली आचरुं ||६६ ||
द्राख तथा सूकी आबिली, कडा वीगइनी सख्य भली । मांडी मुरकी अति हिं गली, खाजा फीणानई सांकली ॥ ६७ ॥ ॥
खरं मांहे रे समी गुलपापडी, तिलवटपूडा तली पापडी । जलेबीनइं तिलपापडी, वडां लापेसीनई तली वडी || ६८ ॥
ॐ४
सूंहाली फाफडा दहीथरा, गांठीआ मोतीचूर घेवरां । खांड साकरना हुइ तेह, तलिउ गूंदनइं ठामणा जेह ।। ६९ ।।
||ढाल ||
गुंदवडां लाडूंनी जाति, इम अनेक तल्यानी भाति ।
मुझ कहइता वीसरीआं जेह, पांच अधिका लेस्युंजी तेह ||७० ||
कर्मादान रे बोलुं भावस्युं, अनरथ तु परिहार ।
अरथिई जयणा बोहुली कीजीइ, आगमि अधिक विचार ||७१ ।। भवीण लाघो नरभव दोहिलो, नही लाभइ बार वारि ।
एहवुं जाणी मनसघि आदरु, जिनधर्म एकज सार ।।७२।। (आंचली) भवीयण लाघो नरभव...
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अंगालकरम रे जे छइ मोकलुं, सोनुं रुपुं सहु धात | वरसिंह एक मण अधिक न गालीइं, कुंभकारनी कहुं वात 1|७३ ।।
भवीयण लाधो नरभव...
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श्रुतसागर - २९
हांडल-कुंडल सघलां मली, करी कारी त्रणि ना लेसि। वरसिई छ सहिस नलीआ लीजीइ, दिनि चूल्हा च्यार कहसि ए |७४।।
भवीयण लाधो नरभव... तापणी सगडी रे कारणि करूं, लाहाला पाडावा आणि ए। कामण खांडण पीसण भरडणइ, सेर त्रीससे कण जाणि ||७५।।
भवीयण लाधो नरभव... मुलq बोलवू रे मीठु देउ, तां दिन प्रति माणा दोइ। वीवाह कारणि मांडी सम, नही माथा गूथण छ होइ ।७६ ।।
भवीयण लाधो नरभव... साबू कंकोडी रे साजीखारस्युं, एक मण वरसिक रे। सिकेई छ मीटु एक वरस प्रतिइं, घर काजि तेह धारसिं । ७७।।
भवीयण लाधो नरभव... व्याज वोहोरुं रे दोसो केरडो, वाहणनो व्यापार। बे लाख केरु ए सब कीजीइ, सकट भाडु परिहार |७८ ।।
भवीयण लाधो नरभव... गाडूं वहइल रे पोठी नावडु, डोली पालखी सार। ऊंट ते मुंकी बा(बी)जां छांडीइ, करमादान परिहार ||७९।।
भवीयण लाधो नरभव... आठमइ क्रोध धणो नवि आणीइ, नवि करीइ मुनि रोस। परनइं सावध वचन न बोलीइ, आरति रुद्रध्यन न सोस ।।८।।
भवीयण लाधो नरभव... ढाल दिलानी।। नोमिइ सामायक कीजीइ, आणी मनि उल्हासि । मासिइं पांच सही सदा, शकतिइं अधिकी आस ।।८१।। सुंदर भाविइं पालीइ, लही वेलासी च्यार। शिख्याव्रत सेवतां लहीइ भव पार. दसमुं देसावीगासिक वरसिइ पंच करेसि। पोसहव्रत इग्यारमु, वरसिंइं एक धरेसि 11८२|| सुंदर भाविई पालीइ...
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जून - २०१३ पोसह पारणि दीजीइ, मुनिनइ सूजतो आहार | अतिसंविभागवत बारमुं, वरसिंइं एकवार ।।८२।।
- सुंदर भाविइं पालीइ... मुंज संलेखणानी भावना, भावु मन सुद्धि। दसे आगार पालतां, लहीइ सिवरिद्धि ।।८३।।
सुंदर भाविइं पालीइ... नीम भंगि नीवी करूं, परमादिइं जोइ। दस बोल अधिका मुंकस्यु, जिम भंग न होइ ||८४।।
सुंदर भाविइं पालीइ... सोलछइतालइ रवि दनि, चैत्र शुदि अष्टमी होइ। श्रीधर्ममूर्तिसूरि कन्हइ, बारव्रत ऊचरियां जोइ ।।८५।।
सुंदर भाविइं पालीइ... मंगलमाला संपजइ, कल्याणनी कोडि। निरमल भाविइं जे भणइ, एह व्रतनी जोडि ८६ ।।
सुंदर भाविइं पालीइ... आधि श्रीअनलवाडा पाटणनगरे सालीवाडामध्ये वास्तवं मोढज्ञातीय: __ पंड्या सीपा सुत भवानकेन लख्यंत।शुभं भवतु।।
किल्याणमस्तु ।। ।।छ छ छ। ।। संवत् १६४६ वर्षे चैत्रमासे शुक्लपक्षे अष्टमी रविवासरे श्री उपकेशज्ञातीय शुश्रावक सं. देवदास तत्भार्या सुश्राविका वानू तत्सुत
सं.वधा तत्भार्या सरूपाईकेन बार व्रतोचार कृतः।। ।। श्रीनूतननगर मध्ये।। वाच्यमानो चिरंजीयात्।। मुनिक्षमासागरेण चित्रित श्रीरस्तुः।।
शब्दार्थ
१. मल्हार = आनंद आपनार २. सिरमणि = शिरमणि ३. पाईई = चरणे ४. रसाला = रसपूर्वक ५. अतिसे = अतिशय ६. निखिइं = निक्षेप ७. दिसि = दिशा
८. पाइ = चरण ९. नुकारसी = नवकारशी १०. सिज्झाय = स्वाध्याय ११. अंगलूह' = अंगलूंछणा १२. चंद्रूउ = चंदरवो १३. आभरण = घरेणुं १४. दोकडा = चलण
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श्रुतसागर - २९ १५. ऊदेरी - उदीरणा करीने
४७. जाति = प्रकार १६. संकलप = निश्चय
४८. वारु = भेद १७. सदीव = सदा
४९. पगरखां = चंपल १८. पिहुली = पहोळी
५०. तंबोल = नागरवेलनुं पान १९. माझनो = माप
५१. सालणा = कचुंबर, अथाणा २०. खीजइ - पेटाव
५२. कचकडा = वस्तु विशेष २१. सवाविसु = रूपियानी एक आनी ५३. घाटडी = लाल बांधणीनी ओढणी २२. अलीक = खोटुं
५४. केसूडी = केसूडाना फूल २३. सजन = स्वजन
५५. सुकडि = चंदन २४. नीम = नियम
५६. कालूबरी = काळो उंबर २५. रोध = अवरोध, अंतराय ५५७. मलीयागरु = एक प्रकार- चंदन २६. दुम्कृत = दुष्कृत
५८. लोबान = एक प्रकारनो धूप २७. मेहुण = मैथुन
५९. मीती = माटी २८. वेरु = भेद (वारो)
६०. बरटीअ = एक प्रकारनु हलकुं धान्य२९. आखडी = व्रत
बंटी ३०. सिंघलय = सिंह
६१. कुलथीअ = कळथी ३१. भाण = सूर्य
६२. मसूरि = मसूर ३२. न्यान = ज्ञान
६३. चिरहाली = चारोळी ३३. पराजीयां = अलंकार विशेष ६४. नीलवणि = लीलोतरी ३४. खडकी = घर आगनी बारणावाळी ६५. मतीरा = फळ विशेष छूटी जग्या
६६. झारि = जार ३५. मुद्रा = महोर
६७. डोडी = एक प्रकारनी वनस्पति ३६. रणसहिंहुत्ततरूउं = ३७३
६८. आउलि = (बाउलि) बावळनुं दांतण ३७. सफार = घणो
६९. आसव = आसव ३८. छाली = बकरी
७०. काढउ = उकाळी ३९. हीर = मूल्यवान
७१. बूकी = चूर्ण ४०. कांचली = स्त्रीओर्नु उपरनुं वस्त्र | ७२. काथकि = क्वाथ ४१. कण = अनाजना दाणा जेवू ७३. मुरकी = जलेबीना आकारनी एक ४२. धृत = घी
मीठाई ४३. थलवटि = रणप्रदेश
७४. लापेसी = लापसी ४४. सित = सो, शत
७५. हांडल = वासण ४५. अत = आठ
७६. कारी = करावीने ४६. सफर = खूब
७७. गूंथण = गुंथवू ७८. सकट = गाड़े
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श्राविका गोरी बारव्रत इच्छा परिमाण टीप
मुनिश्री सुयशचंद्रवि. प्रतना प्रारंभे श्री गुणविजयगुरुभ्यो नमः आ प्रकारना मळता उल्लेख अनुसार गोरी श्राविकाए गुणविजय पंडित पासे व्रत ग्रहण कर्यु होवानी संभावना छे. व्रत ग्रहण के व्रत ग्रहण टीपना समयनो निर्देश थयो नथी, तो साथे स्थळ अने काळ विषयक चोक्कस उल्लेख पण कृतिमाथी प्राप्त थतो नथी. गुणविजय गणिना समयकाळनी होवा अंगे पण कोई स्पष्ट अंदेशो मळतो नथी. कृतिना स्वरूपने जोतां, कृति सोळमीना उत्तरार्ध अने सत्तरमीना पूर्वार्धनी रचना होवानुं संभवे छे. कुल ४१ कडीमां विस्तरेल कृति दूहा अने ढाळ छंदमां रचायेली छे, कृतिमा ढाळ क्रमांकनो निर्देश नथी, परंतु ढाल अनुसार कृति ५ ढाळ- परिमाण धरावे छे. क्यांय देशीनो प्रयोग थयो नथी, दरेक ढाळमां राग प्रयुक्त थया छे.
कृतिमा शब्द अने वर्णनो अनुप्रास एनी गेयतामां सारो एवो वधारो करे छे. शब्द रचना अने वर्णबंधनी द्रष्टिमां कविनी प्रतिभानो परिचय थया वगर रहेतो नथी. कृतिनो प्रारंभ जिन चरणना स्मरण पूर्वक करता कवि कृतिना विषय नी रजूआत करे छे. प्रति दिन जिनेश्वर भगवंतनी पूजा करवी, वर्षे एक अंगलूंछणुं आप, योग मळे तो गुरुभगवंतने एक वार वंदन करीने ज सू... इत्यादि श्राविकाए ग्रहण करेला व्रतो जणावे छे.
त्रीजा व्रत ग्रहण दरम्यान एक वर्षे ४० मुदफ्फर प्रमाण करनी जयणा राखवानी वात व्यवहार जीवननी प्राधान्यतानी सूचक छे, तो आ प्रकारनु अदत्तादान विरमण व्रतनुं ग्रहण धर्मने केंद्रमा राखी जीवन पद्धतिना निर्माणनुं दर्शन करावे छे. सातमा भोगोपभोग विरमण व्रत परिमाणना स्वीकार समये चार नावथी वधारे नावना उपभोगना त्यागनी वात त्यांना स्थळ अने तत्कालीन स्थितीने वधु स्पष्ट करे छे. व्रत ग्रहण करनारने आ रीते नावनो वधु वपराश होवानी संभावनाने पण सूचवी जाय छे.
बस्सो मुद्दफरी प्रमाण धान्यनो व्यापार करवाना परिमाणथी लोभ मर्यादित थई जाय छे, तो सार्थ साथे व्यापार संबंधी पुरातन व्यवस्थाओ पण जाणवा मळे
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श्रुतसागर - २९
४१ छे. कर्मादानना परिमाण प्रसंगे कोलसानो व्यापार करी, आजिविकानो निर्वाह क्यारेय न करुं आ वातना निर्देशथी ए समयमां कोलसानो व्यापार वधु गर्दापात्र होवानी संभावना व्यक्त थाय छे. सामान्यथी कर्मादानना कोई एक पेटा भेदना उल्लेख साथे आजीविकाना निर्वाहनो स्पष्ट निषेध मळतो न होइ आ प्रकारनुं अनुमान संभवे छे.
पोतानी अंगत आराधना रूपे दर महिने त्रीस सामायिक करवा. रोजनुं एक सामायिक लेवानी अहीं वात नथी, परंतु मासांते त्रीस सामायिकना व्रतनो स्वीकार जणाय छे. तेमज वर्ष दरम्यान १२ पौषध करवानी नोंध आपी छे. प्रति वर्ष एकवार आ टीपनुं वांचन करवानी नोंध आपी व्रत प्रत्येनी पोतानी स्मृत्ति अने जागृति व्यक्त करी छे. कृतिमा आवता केटलांक विशेष शब्दो :
सरगवा माटे वपरातो मूळ शब्द शरगुआफली एना पुरातन वैभवने सूचवे छे. वस्त्रना पर्याय माटे वपरातो लूगडां शब्द अहीं जोवा मळे छे. तदडा शब्द कोई धान्य विशेषना अर्थमां वपरायो होय एयु संभके छे.
पूर्ण करवाना अर्थमां पोचाडवा शब्द पण भाषाना फेरफारोनी नोंध आपे छे. प्रत परिचय :
आ प्रत डभोई श्री संघना भंडारमाथी मळी छे. प्रत पत्र कुल बे छे. प्रतना अक्षरो सुंदर छे. वच्चेना भागे चोखंडामां चार अक्षरोनुं अंकन छे. पत्र क्रमांकना स्थाने फुल वेलनी सुंदर डीझाईन आपवामां आवी छे. खंडित पाठने हांसियामां उतारेल छे. प्रत लेखन संवत विगेरे कोई उल्लेखो प्राप्त थया नथी. परंतु लेखनना आधारे प्रत १७मी सदीनी होवानुं संभवे छे.
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श्राविका गोरी बारव्रत इच्छा परिमाण टीप
।। पंडित श्री श्रीगुणविजयगुरुभ्यो नमः ।।
दूहा। श्रीजिनचरणकमल नमी, समरी सरसति देवि । समकितमूल बार वरतनी', टीप लखुं छु हेव ||१|| अरिहंत देव सुसाधु गुरु, केवलिभाषित धर्म। ए आराधुं परिहरु, कुगुरु कुदेव कुधर्म ।।२।। एक जिनपूजा वरसनी, एक अंगलूहणुं सार | देव-गुरुवांदी सूयतुं, योगि मिलि निरधार ||३।। चोखा सेर एक वरसना, दिनप्रति बइ पचखाण। जपमाली त्रीस मासनी, गुणवी' धरिय विनांण ||४|| अमार सहित सात खेत्रमां, वरसि पाउलूं एक । संकादिक समकित तणी, अतिचार करुं छेक ।।५।।
|| ढाल ।। हवई पहिलइ व्रत सब जीव, संकल्पी न मारुं अतीव । आरंभिइ जयणा जाणो, इम जीव जतन मन आणो ||६|| बीजइ जूठां मोटा पंच, बोलंता हुइ अधसंच। कन्या गो भूमि न भाऱ्या, थापिण धणी योगि न राखुं ||७|| कूडीसाख स्वजननी धरमिं, जयणा मुझनइं घणि(णी) मरमिं| मोटी जे कूडीमाप, ते न भरुं निज-गुरुशाख ।।८।। त्रीजुं व्रत निश्चई पालुं, चोरदंडनी चोरी टालुं । दाणचोरी मुदप्फरी-मांन, एक वरसि चालीस जांण ।।९।। पड्या वीसर्या लाघा जे द्रव्य, धणी योग जाणी आलु सर्व। चोथु व्रत धरि(री) चतुराई, पालुं कायाई द्रढ थाई ।।१०।।
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श्रुतसागर - २९
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व्रत पांचमइ परिग्रह मांन करतां ते लहो सुखनिधान । मुदाफरी पांच हजार, मोकली' जावजीव अपार ।।११।।
कांसा - कूट पांच मण वरसि, दश माप धांन एक वरीस । हेम सेर एक हाट कहिइ, खडकी छ घर जिहां रहिइ ||१२||
एक वहिल" बलद एक सार, घोडीनो सब परिवार | दीइ दास-दासी एक महिसी, गो छाली " वेला सरसी ||१३||
छटिं दिगव्रतनी सीम, जलवट १२ लाभार्थि नीम |
उंचुं नीचुं जोअण दोइ, थलवट
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लाभार्थि सो होई ||१४||
||ढाल ||
सात व्रत हवई सांभलो, अभख अनंतकाय नीम । पांच सचित द्रव्य चालीस, च्यार विगयनो सीम " ||१५||
पणवीस पांन सुमोकलां, वाणही " जोडी च्यार । पंचदशांबर दिन प्रतिं, कुसुम तणो परिहार ||१६||
वाहण गाडुं एक एव घोडा दो चउ नाव । पांच बलद दोइ सिज्या, अवर तजुं मनभाव ||१७||
तेल विलेपन पा सेर, अधसेर धूपेल सार । शील कायाइं पालवु, आप वसिं निरधार ||१८||
दिशि अहोरात्र थई नई, मोकली कोस च्यालीस । आप वसिं दोइ नाहण", अंघोल" मासि तीस ||१९||
भात सेर पंच पांणी, छासनी गागरि एक । खादिम सेर त्रिण दिनप्रतिं, सादिम सेर ज एक ||२०||
भाइ दस दिन सालणा", हवइं सुणो नीलवणि जात । आंबा लींबू डांगरां, केलां काकडी जात । २१ ।।
नालीयर नीलुं चणा वली, भाजी मेथीनी जांण । तुरीयां दाडिम सेलडी, काहलुं" पुंखनइं पान ||२२||
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जून - २०१३ झालरिया कारेलां ए, ओला उंबी२४ बेय। बीजोरु दातण सही, आओलवू ज होय ।।२३।।
ढिाल राग-पर्मिओ।। जात सुकवैण तणी कहिइ, कयर सेलरां बोर रे। कोठिंबडां काचरीअ डोडी६, ओढवां राइंण जोर रे ।।२४।।
जात सुकैवण तणी... आंबली खेजड८ हलद हरडांस, आंबला बहिडा जांण रे। सरगुआफली३२ अगथिआफली, कडाफलीय वखांण रे ।।२५।।
जात सुकैवण तणी... बाओलिया आमलागंठी, काकडी वली चंग रे। कोठवडी हविं कणनी संख्या, कहुं धरि(री) मन रंग रे ।।२६।।
जात सुकैवण तणी... चोखा तुअरि तदडा, वाल चोला बाजरी। मसुर कलथी अडद कुटकी, मूंग जोआर कोदरी ||२७ ।।
जात सुकैवण तणी... राइ रालो चणा सरसव, बरटीय तिल जव जांण रे। झालरिया अलसीय पाणी, जात सब मन आंण रे ।।२८।।
जात सुकैवण तणी... व्याज पंचोतरासई कइ, राजव्यापार नीम रे| व्यापार कणनो मुदफरी सत, दोइनो मुझ सीम रे ।।२९ ।।
___ जात सुकैवण तणी... ढाल।। राग-केदार गोडी।। पनर करमादाननो रे, सुणयो हविं उपदेस । कोलसा वेची नवि करूं रे, आजीवका लवलेस रे ||३०।।
भविजन पालो ए व्रतसार (आंकणी)
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४५
श्रुतसागर • २९
आजीवका भली चालता रे, रंगावू नहिं वस्त्र। निखरावू नहिं लाभार्थि रे, जिम होइ जीव पवित्र रे ।।३१।।
भविजन पालो ए... पटोला साडी लूगडां रे, एहनो करुं व्यापार । मुदफरी सिं३५ च्यारनो रे, बइसिं नाणावट सार रे ।।३२।।
भविजन पालो ए... मुदफरी सत बइ तणो रे, कणनो करुं व्यापार आजीवका वर चालतां रे, धूपेल मण चित्तधार रे ।।३३।।
भविजन पालो ए... खांडवू पीसवू भरडवू, मली मण दस सार।। चूला च्यार संधूकवा रे, माथां गुंथू दिन च्यार रे ।।३४।।
भविजन पालो ए... काजिं कामिं दिनप्रति रे, सेकवू पांच ज सेर। महिनइ मण एक मोकलूं रे, जिम छूटइ भव फेर रे ।।३५।।
भविजन पालो ए... आठमई धर्म अर्थ टाली रे, मोटा अनर्थनो नीम। चोर सती नवि जोयवा रे, ऊदेरीनइ८ कीम रे ।।३६ ।।
भविजन पालो ए... व्यापार मुदफरी सो तणो रे, गोलनो घीनो जांण। सात वसन सेवू नर्हि रे, जांणी धरम विनांण ||३७ ।।
भविजन पालो ए... नवमइ करीय पोचाडवां रे, मासिं सामायक त्रीस। मासिं वरसिं वांचवी रे, दसमइ टीप जगीस रे 11३८1।
__ भविजन पालो ए... ढालII राग-धब्यासी।। पालुं रे पालुं रे पोसहव्रत भलुं, निरमलुं मुगतिनुं सुख जांणी। बार पोसह करूं वरसना हुं सही, जिम वही जाइ सब पाप खांणी ।।३९।।
पालुं रे पालुं रे...
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जून २०१३
बारमइ साधुनो जोग जांणी करी, वरसनो एक करूं संविभाग । साहमी - साहमिण भगति बइनी करूं, जिम वरुं मुगति रमणीसु राग ||४०||
पालुं रे पालुं रे...
बार व्रतटीप लखी अछइ जेहवी, तेहवी पालवी मनशुद्धिं श्राविका गोरी इंम कहइ रंगस्युं, पालतां लहिइ सर्व सिद्धि ||४१||
पालुं रे पालुं रे...
।। इति श्री श्राविका गोरीनी बारव्रत इच्छापरिमाणनी टीप ।। // शुभं भवतु || || श्रीरस्तु ||
=
१. वरत = व्रत
२. हेव = हवे
३. अंगलूहणुं ४. सूयवुं = सुबुं ५. गुणवी ६. छेक ७. धणी
८. मोकली = जयणां
९. खडकी = घर आगळ बांधेली
2
=
अंत
गणवी
अंगलुंछणा
मालिक, स्वामी
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=
गाडुं ११. छाली
बकरी
१२. जलवट = जलमार्ग
=
बारणावाळी छूटी जग्या.
१०. वहिल = उपरथी ढांकेलुं शणगारेलुं
१३. थलवट = निर्जलभूमि, रणप्रदेश
१४. अभक = अभक्ष्य १५. सीम १६. वाणही = मोजडी
मर्यादा
शब्दार्थ
१७. नाहण = संपूर्ण स्नान १८. अंघोल
स्नान
१९. सालणा = कचुंबर
२०. नीलवणि
२१. काहलुं = कोळुं २२. पुंख = पोंक
२३. झालरिया वालोर २४. उंबी घउंनो डोडो २५. सुकवैण डोडी
२६.
1T
३४. कोदरी
३५. सिं
३६. संधूकवा
३७. गुंथू
माथुं भीनुं कर्या वगरनुं ३८. ऊदेरी
जोइने
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=
=
=
२७. राण = रायण
२८.
खेजड
२९. हरडा =
३०. आंबला
=
३१. बहिडा = बहेडा
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सुकवणी एकप्रकारनी वनस्पति
=
=
=
=
३२. सरगुआफली = सरगवो
३३. जोआर
सो
हरडे
=
लीलोतरी
खीजडो
=
आंबिला
जुवार
चोखानी एक जात
गुंथवुं
पेटाववा
उदीरणा करीने, जाणी
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श्रावक बार व्रत स्वाध्याय
·
हिरेन दोशी
दूहा, ढाल अने चोपाई छंदमां रचायेल श्रावक बार व्रत स्वाध्याय विजयसेनसूरि महाराजना शिष्य साधु कवि सूरविजय महाराजनी रचना छे. कविनी रचनाए ३८ कडीमां श्रावकना बार व्रत संबंधी परिमाण अने त्यागनी वात करी छे. कृतिना प्रवाहमां सरळतानी साथे रसाळता भळी छे. काणि, छेक, रूपईआ, सुकाम जेवुं शब्द सौदर्यं कृतिनी उपादेयतामां वधारो करे छे. कृतिमां आम तो स्पष्ट रीते व्रत ग्रहण करनारना नामनो उल्लेख नथी. परंतु प्रत पुष्पिका रूपे मळता ' श्राविका पांखडी कृते अलेखि आ उल्लेख द्वारा आ व्रत टीप श्राविका पांखडीनी होवानी संभावना वधु छे. अन्य कृतिओनी जेम आ कृतिनो वर्ण्यविषय पण बार व्रतना स्वीकार रूप नोंधनो ज रह्यो छे. व्रत ग्रहण अने कृति रचना संबंधी स्थळ अने काळनो स्पष्ट निर्देश नथी मळतो.
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सुमति जिन अने मा शारदानुं स्मरण करी, कवि कृतिनो प्रारंभ करे छे. बे वर्ष जिनपूजा करवी वर्ष दरम्यान अडधो सेर दिवेल अने ११ फल आपवा इत्यादि व्रतनी नोंध कृतिना प्रारंभमां मळे छे, तो सवारे नवकारशी अने सांजे दुविहारना पच्चक्खाणनी वात पण नोंधनी विशेषतामा वधारो करे छे. साथे साथे . वर्ष दरम्यान एक हजार नवकार गणवानी नोंध करी छे. आ नोंध बाबते ओछामां ओछा आटला नवकारनो स्वाध्याय तो करीश ज आ रीते अर्थ समजवो.
त्रीजा व्रतना परिमाण दरम्यान दश मुंहमदी प्रमाण करनी जयणा राखवानी वात पण अहीं नोंधनीय छे. पुरातन काळमां राजा विगेरे द्वारा वेपार उपर कर लादवामां आवतो हतो, आ कर न चूकवे तो पोते स्वीकारेल अदत्तादान विरमण व्रतनो भंग थाय एटले व्रतने अखंडित राखवा माटे व्रत लेचार अमुक नक्की करेली रकम अनुसार करनी छूट राखता, राजादिना करनी छुट माटे अहीं कृतिमां दाणचोरी शब्द वपरायो छे, परंतु आ शब्द आजना संदर्भे घणो विपरीत अर्थमां वपराय छे. ए आवी कृतिओना पठनथी जाणी अने जोइ शकाय छे,
सातमा भोगोपभोग विरमण व्रत स्वीकारना प्रसंगे कृति उल्लेख अनुसार
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जून
२०१३
आजीविका चलाववा खेतीवाडीना निषेधनी नोंध मळे छे, तो अडधा सेरथी वधारे कांतवाना निषेधनी मळती नोंध सामान्य कृतिओ करता विशेषता जन्मावे छे. दर महिने १५ सामायिक ( वर्षना १८०), दर वर्षे १२ पौषध करवा अने दर वर्षे बे अतिथिसंविभाग करवा रूप नोंध आपी पोतानी अंगत आराधनानी वात करी छे. अनाभोगथी नियम भंग थाय तो नीवीना पच्चक्खाणनी वात करी, व्रत प्रत्येनी पोतानी जागृति व्यक्त करी छे.
कृतिमां आवता केटलाक विशेष शब्दो :
संकोच अने शरम अर्थमां वपरातो काणि शब्दना वैविध्यने जणावे छे.
धरवा माटे ढोउं शब्द रसाळ लागे छे.
भैंस माटे भिंसि शब्दनो प्रयोग मूळ शब्दनी नजीकनो जणाय छे. बेडा माटे बेढा शब्दनो प्रयोग पोतानी प्राचीनता सिद्ध करे छे. प्रत परिचय :
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-
आ प्रत अमारा ज्ञानमंदिरमां ५०४३७ नंबरना क्रमांक पर संगृहित छे. प्रतमां कुल २ पत्रो छे, प्रत संपूर्ण छे. प्रत परिमाण २६ ११.५० छे एक पेजमां कुल १४ लाइन अने एक लाइनमां ४६ अक्षरोनुं आलेखन थयुं छे. प्रत लेखन विक्रमनी १९मी सदीमा लखाइ होवानी संभावना छे. एकंदरे प्रत सारी छे. अक्षरो सुंदर छे. प्रतमां विशेष पाठ लाल रंगथी अंकित छे. खंडित पाठने हांसियामां अने टीप्पणमां उमेर्यो छे क्यांक-क्यांक जीवात अने उंदरों द्वारा प्रतनी किनारीओ अने प्रतनो थोडोक भाग खवाई गयेल छे.
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श्रावक बारव्रत स्वाध्याय
||ई|
प्रणमीअ सुमति जिणेसरु, समरीअ शारदमाय रे । पभणुं श्रावक व्रत तणुं, देशवरविरति सज्झाय रे ||१||
चउत्रीस अतिशय राजता, देव ध्याउं अरिहंत रे ! सदगुरु सेव सदा करूं, साचा संयमवंत रे ||२||
केवलि भाषित भावस्युं, धर्म्म (र्म) मनिरंग रे । ए त्रिणि तत्त्व आदरूं, नवि करुं कुमतिनुं संग रे ||३||
पूजा बि वरसिं कही, अध सेर दीवेल जाणि रे । एकादश फल देहरइ, ढोउं मुंकी काणि रे ||४||
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मिथ्यात करणी टालवां, आशतना तिम देहरे। सहस नुंकार वरसिं गणुं, पामुं जिम भव छेह रे ॥१५॥
संयोग गुरू वांदवा, नितु नमुं श्री जिनराज रे । छ आगार पालवु, समकित व्रत शिरताज रे || ६ ||
सात खेत्रे वावरूं, अढी ढबूआ अतिसार रे । नितु करवी नुकारसी, रांति तीम दुविहार रे ।।७।।
पहिलइ व्रति त्रस जीवनी ए, हिंसा न करूं वली मूलनी ए । आरंभि जयणा कही ए, वाल्हादिक कारणिं तिम सही ए ।।८।।
कन्या गो भूमी तणुं ए, नवि बोलुं झुलुं अति घणुं । कूडी साखि ते नवि भरूं ए, बीजइ व्रति थांपिणि नवि हरू ए १९ ।।
राजदंड जिणि जाणीइ ए, ते चोरी चिति मिं नाणीइ ए । महिमुंदी* दसनी भली ए, वरसिं दाणचोरी* मोकली ए ||१०||
निधि लाइ घरि थापस्युं ए जु जाणुं तु धणी आपस्युं ए । नहींतरि अरधु खरचीइ ए, बीजइ व्रति इम शुभ संचीइ ए ||११||
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जून - २०१३ चउथु व्रत सूधुं धरउं ए, कायाइं अब्रह्म परिहरूं ए। मन वचनिं जयणा करूं ए, भवसायर इणि परि हुँ तरूं ए ।।१२।।
ढाला।
पंचमइ व्रति सुणइ दोकडा रूपईआ शत च्यारि रे। वीस वीस तोला राखवा, कंचन रूपुं उदार रे ।।१३।। हाट" एक हुं वावरू खडकी बद्ध घर एक रे। पांचसिं मण धान' संचवू, दोय मण कूटि' प्रविकार ||१४|| गाय भिंसि छाली भली, पांच पांच सार उछेर रे। वृषभ दोइ जोडि राखवा, जवहर११ वर पा सेर रे ।।१५।। दस मण किरिआणुं सर्वासु, मण रूअ कपास रे । खांड तेल गुल धृत घj, साठि २(बे) मण मनि आस रे ।।१६।। छ मण मीठु वरसमां, घर-वाखरु१३ अशेष रे। महिमुंदी पंचासनु पंचमि, व्रति ए रेख रे 11१७ ।। छठ्ठइ व्रति निज वासथी, जोअण शत बइ जोय। उंचु नीचुं जाय, बइ, एक जोयण होय रे । [१८ ।। सातमु व्रत हविं सांभलु, भोगोपभोग ज नाम रे। सात सचित्त मुज मोकलां, बत्रीस द्रव्य सुकाम रे ।।१९।। विगय पंच दो वाणही", पासेर तंबोल सार रे । च्यार वेस नितु पहिरवा, कुसुम तणु परिहार रे ।।२०।। वाहन च्यार चतुरपणइ, शय्या च्यार जगीस रे। पाउ विलेपन मासमां, त्रिणि न्हाण आंघोलि वीस रे ।।२१।। घोणी पांच सोहामणी, अधमण भात प्रमाण रे। दोइ घडा जल पीजीइ, चऊदि नियम वखाणि रे ।।२२।। खांडवू दल, भरड, सेकQ छ मण होय रे। चूल्हा च्यार संधूकवा", कातवू अद सेर दोय रे ।।२३।।
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श्रुतसागर - २९
खेती वाडी नवि करूं, माथां गं,१६ बार रे। त्रिणि मण सूकुं सालगुं", नीलवणि१८ नीसुणि वात रे ।।२४।। नालकेर अनि तांजलजु, आंबांनि वली पान रे। लची झालर१९ पापडी, बीजी कहुं अभिधान रे ||२५।। दातणि आउलि बोरडी, चीभड केरी जाति रे। कालिंगडुं खजुआरिनु, चुलाफली मनि भाति रे ।।२६।। बाजरीआं नइ तूरीआं, नामि एह ज तेर रे। एह विना नवि वावरूं, घांन नाम सुविचार रे ।।२७।। चीणु बरटी बाजरी, चउला मग मठ माल रे। तूयरि बल तिल झेझरु, राई मण चीवाल रे ।।२८।। झारि१ गहुँ ज सवे करीउ, मेथी भीडी कांग रे। शालि अडद च्यणा घणा, कलथ कोदिरा लांग रे ।।२९ ।। शाक मण दोइ सूकवू, न चढुं शफरी२३ वाहण रे। अनंतकाय सवि परिहरूं, अभख्य तणुं पचखांण रे ।।३०।। बार हेलि माटी तणी, च्यार भरणीयां छांण रे। बेढा नितु दस जल तणां, रंगवू सउ गज जांण रे ।।३१।। साव, साडी साडलुं, एक एक हुं राखुं रे। कर्मादांन नवि आदरूं, सातमुं व्रत इम भाऱ्या रे ||३२||
चुपई। अनरथदंड व्रत छइ आठमुं, आदरतां दुरगतिनी गमुं। घरटी२६ ऊखल मूंसल" जोडि, नवि आपुं दाखिण विण कोडि ।।३३ ।। चोर सती जोउं नवि धाय, हीचोले हीचुं नवि जाय । सामायक व्रत पालुं खरूं, मासिं पनर सामायक करूं ।।३४।।
दसमि वर्ति संभारूं रली, चऊद नीयम संखे, वली। त्रीस गाऊ मुझनिं मोकलां, चऊ दिसिं जाउं आईं भलां ||३५।।
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जून - २०१३
वरसिं पोसह करवा बार, मुगति तणुं ए साचुं बार। संविभाग वरसिं बि सही, संविभाग व्रत मिं सद्दही १३६ ।। बारइ व्रत सूधां पालीइ, जाव-जीव ते संभालीइ। नियम भंगि नीवी दंड, करतां लाभइ सुख अखंड ।।३७ ।।
1/कलशा
इम सुगुरु वाणी चित्ति आणी, लाभ जाणीये धरइ। व्रत बार भार उदार रागि, सार समकित उच्चरइ। श्री विजयसेनसूरिंद सुंदर, पाय सेवीये करइ। सूरविजय कहइ भलइ, भावई, तेह शिवरमणी वरइ ।।३८।।
।। इति श्री श्रावक बारव्रत सम्झायः।। । श्राविका पांखडी कृते अलेखि ॥श्री।।
शब्दार्थ १. ढोउं = धरूं
१५. संधूकवा = प्रगटाववा २. काणि = संकोच
१६. गॅy = गुंथर्बु ३. ढबूओ = रूपियानो एक प्रकार १७. सालणुं = कचुंबर, अथाणु ४. महिमुंदी = रूपियानो एक प्रकार १८. नीलवणि = लीलोतरी ५. दोकडा = रूपियानो एक प्रकार १९. झालर = वालोर ६. कंचन = सुवर्ण
२०. चुलाफली = चोळी ७. हाट = दुकान
२१. झारि = जार ८. धान = धान्य
२२. कलथ = कलथी ९. कूटि = भंगार
२३. शफरी = मोटुं वहाण १०. छाली = बकरी
२४. बेढां = बेडां ११. जवहर = जवेरात
२५. सावढू = रेशमी जरीयांन वस्त्र १२. साठि =
२६. घरटी = घंटी १३. धरवाखरु = घरवखरी
२७. ऊखल = खांडणियो १४. वाणही = मोजडी
२८. मूसल = सांबेलु
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भरुचतीर्थना प्रतिमा लेखो
__ आचार्यश्री विजयसोमचंद्रसूरिजी विहार दरम्यान थती तीर्थोनी स्पर्शना आनंद® कारण बनी रहे छे. यात्रा क्यारेक एवा मुकामे पहोंचे छे. ज्यां आनंद बेवडाय छे. आवी ज बेवडायेला आनंदनी स्पर्शना भरूच तीर्थनी भूमिमां संप्राप्त थई. तीर्थ यात्रानी साथे एनी ऐतिहासिक विगतो नोंधवानुं सद्भाग्य सांपड्यु, आ लेखोना माध्यमे.
_ वि. सं. १९८०मां पू. योगनिष्ठ आचार्य भगवंत श्री बुद्धिसागरसूरिश्वरजी म.सा. द्वारा संपादित जैन धातु प्रतिमा लेख संग्रह भाग-२मां भरूच तीर्थना लेखो प्रकाशित थया छे. एमांना केटलांक लेखो सुधारा वधारा साथे अत्रे प्रकाशित कर्या छे, तो केटलांक साव नवा ज धातु प्रतिमा लेखो मळी आव्या ए अहीं प्रकाशित कर्या छे. प्रतिमा लेखोमां सचवायेलो ऐतिहासिक वारसो आपणा वर्तमान अने भविष्यने वधु सार्थक अने समृद्ध बनावे छे. भरुचतीर्थनो परिचय जैनतीर्थ सर्वसंग्रह, जैनतीर्थोनो परिचय, विविध तीर्थ कल्प विगेरे ग्रंथोमांथी मळी रहे छे. भरूचतीर्थना ईतिहासमां केटलांक नवा तथ्यो अने नवं साहित्य उमेराशे आ लेखोना माध्यमे ए ज आशा साथे...
अनंतनाथ भगवानना जिनालयना प्रतिमा लेखो १. १७० जिन पट्ट, (आरस), प्राय: १३मी सदी
............... चैत्ये पल्लीवालज्ञातीय जगसीहप्रभृतिनिजकुटुंब यु. कारितं प्रतिष्ठितं....................... देवसंतानीय श्री. २. संभवनाथ भगवान, चतुर्विंशति
संवत् १४९६ वर्षे फागुण वदि ११ रवी श्रीश्रीमालज्ञातीय पितृ-केल्हा मातृपाल्हणदेसुत माईआ-वाईआभ्यां श्रीसंभवनाथचतुर्विंशतिबिंब कारितं श्रीब्रह्माणगच्छे प्रति. श्रीविमलसूरिभिः ।। ३. पार्श्वनाथ भगवान, त्रितीर्थी संवत् १८८१ नेमाज्ञातीय.......................... सा. खुसालदास..........रेवा
........ कारापितं श्रीपार्श्वजिनबिंबं प्रतिष्ठितं श्रीआनंदसोमसूरिभिः ।
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४. पार्श्वनाथ भगवान, त्रितीर्थी
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सं. १३८५ वर्षे फागुण वदि ३ शुक्रे श्रीश्रीमालीज्ञातीय पितृ-झांझण मातृधांधलदेश्रेयसे सुत सहजाकेन श्रीपार्श्वजिनबिंबं कारितं प्र. श्री गुणाकरसूरिशिष्यश्रीरत्नप्रभसूरिभिः । श्रीः ।
७. पार्श्वनाथ भगवान, एकलतीर्थी
जून २०१३
सं. १४०५ वर्षे वैशाख सु. ७ सोमे श्रीश्रीमालज्ञातीय पितृ-केल्हा मातृकुमारदेविश्रेयसे जगसीहेन श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीभावचंद्रसूरिणामुपदेशेन ।
६. श्रेयांसनाथ भगवान, एकलतीर्थी
सं. १८८१ वैशाख शुदि ६ रवौ ज्ञाति. वा. सा. उसवाल बाई जडाव श्रीश्रेयांसनाथः [कारितः] आणंदसोमसूरिभिः ।
आदीश्वर भगवानना जिनालयना प्रतिमा लेखो
फाल्गुन शुद्ध ५ शुक्रे..... सीसातसिंघल (?)
७. तीर्थ पट्ट, (पंचधातु)
संवत् १७५९ वर्षे फागुण वदि ५ गुरौ श्रीसूर्यपुरवास्त. सा. खुसालचंद लखमसीकेन तीर्थपट्टः कारितः ।
८. चौमुखजी, (आरसना)
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वासाग्राम
वास्तव्य..
९. धर्मनाथ भगवान, एकलतीर्थी
संवत् १७८६ वर्षे वैशाख वदि १३ रवौ सं. नाथा जयकर्णेन श्रीधर्मनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः । श्रीउकेसज्ञातीय भरूअचिबंदिरवास्तव्य । १०. पार्श्वनाथ भगवान, एकलतीर्थी
संवत् ११४९ श्रीब्रह्माणगच्छे आसिकयाकेन वैल्लकविमलसिरिश्रेयोर्थं कारिता । ११. सुविधिनाथ भगवान, एकलतीर्थी
संवत् १७८६ वर्षे वैशाख वदि १३ रवौ सं. सा. रतनजी जयकर्णेन श्रीसुविधिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं भ. श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः । श्रीउकेसज्ञातीय भरूअचिवास्तव्य ।
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श्रुतसागर - २९ १२. पार्श्वनाथ भगवान, एकलतीर्थी
संवत् १४९९ वर्षे वैशाख वदि २ सोमे श्रीमूलसंघे सरस्वतीगच्छे भट्टारकश्रीदेवेन्द्रकीर्तिदेवा तच्छिष्य श्रीमत्विद्यानंदीदेवा तद्गुरोरूपदेशेन हंबडवंशे श्रेष्ठि जेता तत्सूनु सायर भार्या रूपिणी तयोः पुत्राः ठ. पेथा-करणसिंह-खेतसी पेथा भार्या धरणू तयोः पुत्रा राणसी-जिनदास-हरिचंद-कान्हाख्यैः तेषां मध्ये ठ, पेथा श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारापितं ।।। १३. वासुपूज्यस्वामी भगवान, एकलतीर्थी
संवत् १७८६ वर्षे वैशाख वदि १३ रवौ तपागच्छाधिराजभट्टारक श्री१०८ विजय ऋद्धिसूरिराज्ये श्रीविजयआणंदसूरिगच्छे सिणोदवास्तव्य ओसवालज्ञातिय सा. जिणदास सं. सुत संघजी बिंब कारापितं भट्टारकश्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः प्रतिष्ठापितं शुभं भवतु। वासुपूज्यबिंब भरापितं । १४. चंद्रप्रभस्वामी भगवान, एकलतीर्थी
संवत् १७८६ व. वै. वदि. १३ रवी सा. नाहजीकेन श्रीचन्द्रप्रभबिंब कारितं प्र. भट्टा. श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः । १७. पार्श्वभाथ भगवान, पंचतीर्थी
॥ सं. १३८९ व. खे................. पल्ली . ज्ञातीय श्रे. धणचंद्र सुत देपाल भार्या देवसिरि श्रेयोर्थं श्रीअभयसीहेन श्रीपार्श्वनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसूरिभिः । १६. आदिनाथ भगवान, पंचतीर्थी
संवत् १४०४ वर्षे............. श्रीश्रीमालज्ञातीयान्वय.................... गजा बाई राणी सुत खेतल पुत्र सारंग श्रेयोर्थं बाई.....
.................. श्री आदिनाथबिंब कारापितं । श्रीसूरिभिः। १७. जिन प्रतिमा, त्रितीर्थी
...... श्रीवाजी-वर्धा-पासा-पुंड? .............................. स्रा(श्रा)विकया कारिता १८. महावीरस्वामी, एकलतीर्थी
श्रीवर्धमानबिंब प्र. त. ग. श्रीविजयसेनसूरिभिः । १९. आदिनाथ भगवान, एकलतीर्थी
सं. १८६० वैसाखे [वै.सु.५] चंद्रवासरे श्रीआदिनाथः श्रीजिनेन्द्रसूरी....
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५६
२०. मुनिसुव्रतस्वामी भगवान, एकलतीर्थी
सं. १६४६ मुनिसुव्रतबिंबं प्र. तपाग..
२१. सुमतिनाथ भगवान, एकलतीर्थी
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श्री आदिनाथबिंबं बाई खीमाइ का. ।
२३. शांतिनाथ भगवान, एकलतीर्थी
सं. १७०२ व..
संवत् १७८६ वर्षे वैशाख सुदि १३ रवौ विजयऋद्धिसूरिराज्ये श्रीविजयाणंद
सूरिगच्छे श्रीमाली . सा. दादा सुत...
..श्रीसुमतिनाथ..
२२. आदिनाथ भगवान, एकलतीर्थी
तपागच्छे.
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जून २०१३
सा. रामजी बा. रूपाकेन कारितं शांतिनाथबिंबं
शांतिनाथबिंबं प्रतिष्ठितं विजयाणंदसूरिभिः ।
२४. कुंथुनाथ भगवान, पंचतीर्थी
संवत् १५०९ वर्षे माघ सुदि १० शनौ ऊकेशवंशे साह गोत्रे सा. नेणा भा. सुणदे पुत्र सा. मेराकेन भां. सुहवदयुतेन श्रेयोर्थं श्रीकुंथुजिन का. प्र. खरतरगच्छे श्रीजिनसागरसूरिभिः श्रीरस्तु ।
२७. शांतिनाथ भगवान, एकलतीर्थी
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२६. हर्षविजयगणिना पादुका (आरस )
।। संवत् १८६५ व. वर्षे श. १७८० शुभंकारि माघमासे शुक्लपक्षे पंचभ्यां तिथौ रविवासरोचितायां श्रीमंतहीरविजयसूरीश्वरचरणकमलसेवी उपाध्यायश्रीमत्कांतिविजयजितत्पदपद्मसेवी उपाध्याय श्रीमद्विनयविजयजितच्चरणाब्जसेवी पं. पदधारकाः पं. मानविजयजित्कास्तत्पादपंकजसेवी पं. पदधारकाः पं. अमरविजयगणिजित्कास्तच्चरणाब्जसेवी स चंचरीकतुल्याः पं. पदधारकाः पं. सौभाग्यविजयगणिवराः तत्पादपंकजजललीनमनमधुकर समानकूपानां उपाध्यायपदधारकाणां श्रीमत्सागरगच्छस्थितानां श्रीमुनिसुव्रतजिनचरणकमलन्यासपवित्रीकृतभूवलयश्रीमद्भृगुकच्छनगरकृतस्थानकानां, श्रीमदाजिनपादपंकजकोविदानां श्रीमदुपाध्यायवटंकानां उ० श्रीहर्षविजयगणिवराणां पादुका कारापिताऽस्ति । संघस्येयं पादुका मांगल्यकरणार्थे भवतु || श्रीरस्तु ||
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श्रुतसागर - २९
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मुनिसुव्रतस्वामीना जिनालयना प्रतिमा लेखो
२७. शीतलनाथ भगवान, पंचतीर्थी
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संवत् १५२५ वर्षे माघ शु. १३ ओसवालज्ञातीय मं. पंचायण भा. पातू सुत मोर भा. अमरादे सालिग भा. अहिवदे कामा भा. कमलादे कोका भा. रूपाई पुत्र हरदास-जिणदासप्रमुकुटुंबयुतेन कोकाकेन पितृश्रेयोर्थं श्रीशीतलनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसूरिभिः ।
२८. चंद्रप्रभस्वामी भगवान, पंचतीर्थी
संवत् १५३७ वर्षे वैशाख सु. १० सोमे श्रीश्रीमालज्ञातीय पु. खीमा भा. अमादे सुत महिपा माअड- देसल एतैः पितुः श्रेयोर्थं श्रीचंद्रप्रभस्वामिबिंबं कारितं पिप्फलगच्छे श्रीधर्मसागरसूरिभिः प्रतिष्ठितं । श्रीः ।
२९. पार्श्वनाथ भगवान, एकलतीर्थी
||६|| सं. १३३४ वर्षे चैत्र वदि ७ शुक्रे श्रीमालज्ञातीय श्रे पाल्हा सुत झांझणेन पितुः श्रेयोर्थं श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं
३१. महावीरस्वामी, एकलतीर्थी
संवत् १३८४ .. श्रीबृहद्गच्छे महावीरबिंबं कारितं श्रीसूरिभिः । ३२. शांतिनाथ भगवान, एकलतीर्थी सं. १३२४ वर्षे
प्र. श्रीभावप्रभसूरिभिः ।
३३. जिन प्रतिमा, पंचतीर्थी
३०. सुमतिनाथ भगवान, पंचतीर्थी
सं. १४७८ वर्षे पोष वदि ५ शुक्रे ला. माधव भार्या लाहू तयोः सुत मांडणेन सुमतिनाथबिंबं कारापितं श्रीआगमगच्छीय श्रीमुनिसिंहसूरीणामुपदेशेन । मधुमती
वास्तव्यः ।
५७
. सुदि ७ ओसवालज्ञातीय ठ. खीमाकेन भा. खेता श्रेयोर्थं
संवत्..... गुणाकरसूरिभिः प्रतिष्ठितं ।
३४. पार्श्वनाथ भगवान, पंचतीर्थी
सं. १४३७ वैशाख वदि ..
श्रीश्रीमाल, पितृ-पीहड मातृ-सुहवदेवि ......
देदाकेन भ्रातृश्रेयसे श्रीशांतिनाथबिंब
प्राग्वाटश्रेष्ठि राणाक भार्या रणादे
..श्रीपार्श्वनाथपंचतीर्थी पूर्णिमा० श्रीगुणाकरसूरीणामुपदेशेन ।
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५८
जून - २०१३ ३७. पार्श्वनाथ भगवान, एकलतीर्थी
संवत् १३६४ पोष सु. १२ निवृत्तिगच्छे सा. पुनसीह भार्या................. सा. सामलेन राणां-चांपा-गोहरु-विलण-रतन-घणदेव-वीर श्रीपार्श्वनाथबिंबं का. प्र.
श्री
३६. जिन प्रतिमा, पंचतीर्थी
................. श्रीविवेकरत्नसूरीणामुपदेशन कारि. प्रतिष्ठितं श्रीः । ३७. पार्श्वनाथ भगवान, पंचतीर्थी सं. १४५.......
................... श्रीपार्श्वनाथबिंबं का. श्रीरत्नप्रभसूरीणामुपदेशेन। ३८. विमलनाथ भगवान, पंचतीर्थी
संवत् १६१५ वर्षे पोष वदि ६ शुक्रे श्रीगंधारवास्तव्य श्रीश्रीमालज्ञातीय साहा पासवीर भार्या पूतलि सुत सं. वर्धमान भार्या विमलादे सुत सा. लहुजी नाम्ना स्वश्रेयसे श्रीविमलनाथबिंब कारापितं श्रीतपगच्छे श्रीविजयदानसूरिभिः प्रतिष्ठितं ।। शुभं भवतु । ३९. शांतिनाथ भगवान, पंचतीर्थी
संवत् १६७० वर्षे मार्ग. सित द्वितीयायां रवी श्रीअहम्मदावादनगरवास्तव्य प्राग्वाटज्ञातीय बृद्धशाखीय सा. ताना भार्या वीरादे सुत सा. रवजीनाम्ना भार्यापुराई सुत सा. रहीआप्रमुखकुटुंबयुतेन स्वश्रेयसे श्रीशांतिनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठापितं वस्वप्रतिष्ठायां प्रतिष्ठापितं च श्रीतपागच्छिश्रीअकबरसुरत्राणदत्तबहुमान भट्टारकश्रीहीरविजयसूरिपट्टालंकार श्रीअकब्बरछत्रपतिसभासंप्राप्तवादजयकार भट्टारकश्री विजयसेनसूरिभिः। ४०. शांतिनाथ भगवान, पंचतीर्थी
सं. १७६५ वर्षे फा. शु. ५ गुरौ श्रीशांतिनाथबिंबं प्रतिष्ठितं तपागच्छे भ. श्रीज्ञानविमलसूरिभिः। ४१. जिम प्रतिमा, एकलतीर्थी
श्रीनागेंद्रकुले श्रीविजयतुंगाचार्यगच्छे अच्छुभा-राणिकया देव शक (?) संवत् ९३०। कप्पतिटेयं।
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श्रुतसागर - २९ ४१. जिन प्रतिमा, एकलतीर्थी
संवत् १८५४ ....... ... अबकसा पुत्र सा. ............... बंचर गृ. भार्या .................. पद्मविजे प्रतिष्ठितं ४३. जिन प्रतिमा, चतुर्विंशति (खंडित)
सं. १३०४ .......................... श्रीश्रीमालज्ञातीय वरणागेन आत्मीयपितृवयरसिंह श्रेयोर्थं श्रीचतुर्विंशतिजिनबिंबानि कारितानि प्रतिष्ठतानि सोमप्रभसूरिभिः। श्रीकनकप्रभसूरिभिः । भद्रमस्तु । ४४. आदिनाथ भगवान, एकलतीर्थी
सं. १८१६ व. फागुण सु. ५ गुरौ भ. श्रीविजयउदयसूरिभिः प्रतिष्ठितं उसवंसलघुसाखीय नागर अमीचंद भार्या मानकुंवर ऊषभ भरा. ४५. आदिनाथ भगवान, एकलतीर्थी
सं. १७९७ वर्षे माघ वदि १० ................. भार्या लाडकुंआर श्री आदिनाथबिंब कारापितं प्रति. तपा भ. श्रीविजय..... ४६. संभवनाथ भगवान, एकलतीर्थी
सं. १८५६ वर्षे वैशाख शुदि ६ कुंअरबाई श्रीसंभवजिनबिंबं शीलविजय प्र. ४७. शांतिनाथ भगवान, एकलतीर्थी
संवत् १७८६ वर्षे वैशाख वदि १३ रवौ तपागच्छाधिराजभट्टारक श्री १०८ श्रीविजयऋद्धिसूरिराज्ये श्रीविजयाणंदसूरिगच्छे भरूअचवास्तव्य उशवालज्ञातिय सा. वनराज सुता बाई कुंअर श्रीशांतिनाथबिंब कारापितं श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः । प्रतिष्ठितं । ४८. विमलनाथ भगवान, एकलतीर्थी __संवत् १७८६ वर्षे वैशाख वदि १३ रवौ तपागच्छाधिराज भट्टारकश्री १०८ श्रीविजयऋद्धिसागरसूरिराज्ये श्रीविजयाणंदसूरिगच्छे सिणोरवास्तव्य उसवालज्ञातिय सा. मोहन सुत वल्लभ विमलनाथबिंब कारापितं श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः शुभं भवतु। ४९. नेमिनाथ भगवान, पंचतीर्थी
सं. १६९७ फा. शु. ५ श्रीमा, रतना गमतादेभ्यां श्रीनेमिबिंब प्रति, भरापितं श्रीविजयिसंहसूरि का.
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५०. धर्मनाथ भगवान, एकलतीर्थी
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का.
५५. जिन प्रतिमा, एकलतीर्थी
ॐ खुशालविजय प्रति.
सं. १८२३ना माघ सुदि १० बुधे गाम कणारवास्त. मं. यशराज तत्पुत्र हीराचंद श्रीधर्मनाथबिंबं ।
५१. चंद्रप्रभस्वामी भगवान, एकलतीर्थी
संवत् १७९२ व. ज्येष्ट सुदि १२ श्रीश्रावक अभयतकेन श्रीचंद्रप्रभबिंबं कारापितं ।
५२. कुंथुनाथ भगवान, एकलतीर्थी
सं. १८५४ वैशा. शु. ६ चंद्रे उसवंशीय भृगुपुरवास्त....
श्री आणंद सूरिगच्छे घोघारी वीरचंद खुशालेन श्रीकुंथनाथबिंबं कारापितं पं. वल्लभविजयेन प्रतिष्ठितं पिपायां ।
५३. जिन प्रतिमा, एकलतीर्थी
सं. १८५६ वैशाख शु. ६
७४. नमिनाथ भगवान, एकलतीर्थी
संवत् १७८९ वैशाख सुदि ७ सूरति वास्त. अंकीबाई नाम्न्या श्रीनमिनाथबिंबं
सं. १८५६ वैशाख शु. ६ ओसवाल भाणजी तद्भ्रातृ..
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जून २०१३
-
श्रीखुशालविजय प्रति का.
प्र.
५७. अजितनाथ भगवान, एकलतीर्थी
सं. १८७७ भ. वदी २ वीरचंद्र हेतुबाई अजितनाथप्रतिष्ठितं ।
७८. शांतिनाथ भगवान, एकलतीर्थी
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५६. पद्मप्रभस्वामी भगवान, एकलतीर्थी
सं. १८५६, वैशाख शु. ६ फतुबाइयें पद्मप्रभ [ स्वामी) बिंबं का ॐखुशालविजें
देव. बिंबं का.
संवत् १६१० वर्षे फागुण वदि २ सोमे बा. टींबी श्रीशांतिनाथबिंबं तपागच्छे श्रीभट्टारक विजय ........
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श्रुतसागर - २९ ७९. आदिनाथ भगवान, एकलतीर्थी
सं. १६४४ सा. समरथ सुत सा. हीरजीकेन श्रीआदिनाथर्बिबं का. प्र. तपा०श्रीहीरविजयसूरिशिष्य श्रीविजयसेनसूरिभिः तत्पट्ट....... ६०. आदिनाथ भगवान, एकलतीर्थी
लाहग्याई? श्रीआदिनाथबिंब विजयदानसूरिभिः प्रति.। ६. आदिनाथ भगवान, एकलतीर्थी
सं. १८७७ माघ वदि २ चद्रे हरखा वांछू भा. .............. आदसरभगवानबिंब प्रतिष्ठितं अनसूरगच्छे। ६२. धर्मनाथ भगवाम, एकलतीर्थी
संव. १३८४ भवडा०.................. बिंबं श्रीधरम.......... ६३. मुनिसुव्रतस्वामी, एकलतीर्थी
महिसकर्ण(?) श्रीमुनिसुव्रतबिंब............ विजयदानसू......... ६४. शांतिनाथ भगवान, एकलतीर्थी
तेजपाल-धरणा श्रीशांतिबिंबं । ६७. धर्मनाथ भगवान, एकलतीर्थी
जेवंत श्रीधर्मनाथबिंबं श्रीविजयदानसूरि । ६६. कुंथुनाथ भगवान, एकलतीर्थी
संवत् १७१० वर्षे ज्येष्ट सित ६ गुरौ श्रीकुंथुनाथबिंबं श्रीसि.....त का. प्र. श्री विजयराजसूरिभिः। ६७. महावीरस्वामी, एकलतीर्थी
सं. १८७७ मा. वदी २ वार चंद्र महावीरबींब प्र. नानीबाईनी प्रतीष्ठीआ। ६८. वासुपूज्यस्वामी, एकलतीर्थी
सं. १८७७ माघ वदी २ वार चंद्र बाई मानकुंवर वासुपूज्यबिंब प्रतिष्ठितं आणसूरगच्छे। ६९. नमिनाथ भगवान, एकलतीर्थी
सं. १६२२ व. पोस वदि... रवौ तपागच्छे........... श्रीहीरविजयसूरिभिः........
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जून - २०१३ श्री नमिनाथबिंबं............. ७०. चंद्रप्रभस्वामी भगवाम, एकलतीर्थी
सा. वीरफुल(फुल?)श्रेयसे चंद्रप्रभबिंब ७१. आदिनाथ भगवान, एकलतीर्थी
सं. १९५ माह वदि ५ प्रद(ति)ष्ठ. जवराम आदि.......... ७२. जिन प्रतिमा, एकलतीर्थी
संवत् १८५८ वैशाख शु. ६ ............. भार्या बिंबं का.... ७३. जिन प्रतिमा, एकलतीर्थी
सं. १६१७ ............. ७४. जिन प्रतिमा, एकलतीर्थी
संवत् १६६० वर्षे मा. शुदि ५ श्रीकाष्टसंघे भ. श्री ............. कुंवर नित्य प्रणमति। ७७. पार्श्वनाथ भगवाम, एकलतीर्थी
संवत् १७२५ वर्षे ................. पार्श्व ............ ७६. जिन प्रतिमा, एकलतीर्थी संवत् १७५७ वर्षे .............. ६ वार शनौ दिनरा
............ रेवदास प्रतिष्ठायां प्रतिष्ठिता। ७७ जिन प्रतिमा, एकलतीर्थी
सं. १६४२ विजयदेवसूरि। ७८. शांतिनाथ भगवान एकलविंष
संवत् १६१५ वर्षे पोष वदि ६ ............ श्रीसूरजीनाम्ना श्रीशांतिनाथबिंब कारितं विजयदानसूरिभिः । ७९. पार्श्वनाथ भगवान पंचतीर्थी
संवत् १५९५ वर्षे माह शुदि १२ शुक्रे श्रीपाग्वटारि ग्यातिथी श्रीधरमसी भारजा कामा? कीमाई श्रीपारसनाथ तपागच्छे श्रीआणंदविमलसूरि भट्टारक श्रीविजयदानसूरि प्रतिष्ठितं
सुत
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श्रुतसागर - २९
८०. शांतिनाथ भगवान, एकलतीर्थी
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.....---.-.....
संवत् १७८६ वै वदि १३ रवौ भृगुकच्छे प्राग्वाटज्ञातीय भ. श्रीविजयाणंदसूरिंगच्छे श्रीशांतिनाथबिंबं कारापितं प्रतिष्ठापितं श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः ।
श्रीकपूरबाई..
८१. वासुपूज्यस्वामी भगवान, एकलतीर्थी
संवत् १८४९ व. वैशाख सुदी ६ सा. समधर वासुपूज्यबिंबं कारापितं ...
प्रतिष्ठितं ।
८२. सुमतिनाथ भगवान, एकलतीर्थी
संवत् १८४९ वैशाख सुदी ६
कारापितं ।
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पुत्री माणक श्रीसुमतिनाथबिंबं
८३. पार्श्वनाथ भगवान, पंचतीर्थी
. गो. नाणा - जयन्तपुत्रेण सोहडानुजेन सोमसीहाग्रजेन पूर्णसिंहेन कारितः बृहद्गच्छीय श्रीजयमंगलसूरिभिः प्रतिष्ठितं । ८४. विजयानंदसूरि पादुका, (आरस)
संवत् १७४९ वर्षे आषाढ वदि ११ दिने सोमवासरे रोहिणीनक्षत्रे श्रीतपागच्छीय सकलसूरिशिरोमणि भट्टारक श्री१०६ श्रीविजयतिलकसूरिपट्ट नभ....... नभौमणि सकलसूरिपुरंदर भट्टारक श्री९९ श्रीविजयाणंदसूरीणां पादुका कारिता श्रीभरूअचिवास्तव्य सकलसंघेन श्रेयोऽस्तु । संघस्य ।
८४. परिकरनी गादीनो लेख
संवत् ११७६ वैशाख सुदि ९ श्रीमदूकेशगच्छे श्रीपार्श्वनाथचैत्ये साधु अभ. सुत सुमतिना तत्पत्नी सीतमाइ ( र ? ) श्रेयोर्थं कारितं ।
८६. विजयराजसूरि पादुका, (आरस )
श्रीमत्सकलगणभृद् सार्वभौमभट्टारक श्री१०५ श्री श्रीमत् विजयाणंदसूरीश्वर पट्टोदयगिरिसहस्रकिरणायमान सकलसूरिपुरंदरभ. श्री१९ श्रीविजयराजसूरीश्वराणां पादुकाभ्यो नमोनमः ||श्रीः ||
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८७. आदीश्वर भगवान, पादुका, (आरस )
संवत् १८९४ वर्षे फागुण शुदि ५ शुक्रवासरे श्रीभृगुकच्छवास्तव्य श्रीतपागच्छे ओसवंशीय लघुशाखीय.. मीठा तत्पत्नी देवबाई तत्कुक्षीजा बाई मूलीबाईये
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६४
जून २०१३
कारापिता । भट्टारक श्रीविजयजिनेंद्रसूरिभिः संपूजिताश्च श्रीभृगुकच्छे। श्रीरस्तु ।
८८. विनितविजय, पादुका, (आरस)
संवत् १८५३ ना वर्षे आसो वदि ३ दिने पं. वनितविजयजी पादुका कारापितं । ८९. गुलालविजय, पादुका, (आरस )
श्रीसंवत् १८४७ना श्रावण वदि ९ दिने भृगुकच्छपुरे निर्वाण छ । पं. गुलाल विजयपादुका ।
९०. महावीरस्वामी भगवानना परिकरना काउस्सगीया प्रतिमानो लेख श्रीमहावीरस्वामिबिंबं श्रीकुमारदेवि आत्म...
११. मूळनायक मुनिसुव्रतस्वामी भगवाननो लेख,
जमणीबाजुनी पाटलीपर
यु. = युतेन
वास्त., वा. = वास्तव्य
भट्टारक श्रीहीरविजयसूरिपट्टप्रभावक.. गच्छे श्रीः । मार्गशीर्ष शुक्ल डाबीबाजुनी पाटली पर मुनिसुव्रत..
भ., भट्टा. = भट्टारक
गृ. = गृहिणी
मं. = मंत्री
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शु.
शुद
श्रे. = श्रेष्ठी
ग. = गच्छ
=
संघचंद्रबाण सकलसुरासुरनायक.
संकेतसूचि
सा. = साह
सं. = संघवी
भा. = भार्या
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श. = शक
ला. = लाहू
ठ. = ठक्कुर
वदि
व. =
.. तपा. विजयी भट्टा. श्रीविजयदेवसूरिभिः
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-
सु., शु. = सुद
प्र. प्रति = प्रतिष्ठित
का. =
कारित
उ. = उपाध्याय
फा. = फागण पल्ली. = पल्लीवाल
त. = तपागच्छ
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सम्राट संप्रति संग्रहालयना प्रतिमा लेखो
आजे आपणी परंपरा अने श्रमण संस्कृतिनो क्रमबद्ध इतिहास प्राप्त नथी, इतिहासना केटलाय तत्त्वो ग्रंथ भंडारो, ताम्रपत्रो, शिलालेखो, अने प्रतिमालेखोमां धरबायेला छे. आवी ऐतिहासिक साधन साम्रगीओमां प्रतिमालेखो अग्रता क्रमे छे, प्रतिमा लेखमां बे प्रकार मळे छे.
१ पाषाण प्रतिमा लेखो २ धातु प्रतिमा लेखो, धातु प्रतिमानी अपेक्षाए पाषाण प्रतिमामां लेखो बहु ओछा प्राप्त थाय छे. प्रतिमा लेखोमां श्रमण परंपरा अने तत्कालीन श्राद्ध परंपरा अखंड रूपे प्राप्त थाय छे. श्रमण परंपराना ईतिहासमां खूटती कडीओनुं अनुसंधान करवामां प्रतिमा लेखो बहु महत्त्वनो भाग भजवे छे. पूज्यपाद् गुरूदेव श्रीमद् आचार्य श्रीपद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज प्रभु शासनना आवा ऐतिहासिक मूल्योनी काळजी अने जतन माटे सतत उद्यमशील अने कांईक करी छूटवानी भावना धरावी, प्रभु शासननी शान अने गरिमाने हृष्ट पुष्ट करता रहे छे.
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पूज्य गुरुमहाराजना अथाग प्रयत्नथी निर्मित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर अने सम्राट् संप्रति संग्रहालयमां आवी केटलीय ऐतिहासिक सामग्रीओ संकलित, संग्रहीत अने सुरक्षित छे. संग्रहालयमा रहेला धातु अने पाषाण प्रतिमाना लेखो अहीं प्रस्तुत छे. आ लेखोने उतारी आपवानुं पुण्यकार्य परम पूज्य शासनसम्राट्श्री नेमिसूरिजी म. सा. ना समुदायना आचार्य भगवंत श्रीसोमचंद्रसूरीश्वरजी महाराज साहेब अने एमना शिष्य परिवारे करी आप्युं छे. संग्रहालयमा जे क्रमांके धातुप्रतिमाओ नोंधायेल छे. ते क्रमानुसार ज प्रतिमाना लेखो प्रकाशित करीए छीए.
संपा.
१. विभागीय नं. १९, शांतिनाथ भगवान, पंचतीर्थी
सं. १२८६ फागुण सुदि १२ रवौ मातृ पद्मावतिश्रेयोर्थं सुत ठ. श्रीशांतिनाथप्रतिमा कारापिता ।।
२. विभागीय नं. १०*, पार्श्वनाथ भगवान, एकतीर्थी
संवत् १२.......
३. विभागीय नं. २२, जिनप्रतिमा, एकतीर्थी देशलेन ....
संवत् १२३९ कार्तिक वदि
****
कृता श्रीसर्वदेवसूरिभिः ।।
लेख घसाई गयेल होवाथी मात्र आटलुं ज वंचाय छे.
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भ्रातृ प्रिय
ऊदलेन
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६६
४. विभागीय नं. २३, सुविधिनाथ भगवान, पंचतीर्थी
संवत् १५३१ वर्षे वैशाख सुदि ५ सोमे उसवालज्ञातौ लिंगागोत्रे सा. उदयरत्न पुत्र सा. सालिग भार्या साही पुत्र सा. संग्रामेन भा. डीडाही पुत्र सा. सीधर पुत्र जटू प्रभृतियुतेन स्वश्रेयसे श्रीसुविधिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं तपागच्छे लक्ष्मीसागरसूरिभिः ।।
५. विभागीय नं. २४, शीतलनाथ भगवान, पंचतीर्थी
संवत १५१३ वर्षे वैशाख सुदि ३ प्राग्वाट ज्ञा. सं. वाला भार्या लली सुत धरमणकेन भार्या कूअरि सुत लखमसीकुटंबयुतेन पिटविक सं. मांडणश्रेयार्थे श्रीसीतलनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं तपागच्छेश श्रीरत्नशेखरसूरिभिः । शुभं भवतु ।। श्रीः । । श्रीः ।।
जून २०१३
६. विभागीय नं. २६, नेमिनाथ भगवान, पंचतीर्थी
संवत १६६३ वर्षे वैशाख सुदि ११ सोम दिने आगरानगरवास्तव्ये उपकेशज्ञातीय लोढागोत्रे आगाणीशाखीय सा. राजपाल भार्या राजश्री तत्पुत्र म. रिखवदास भा. रेखश्री तदंगजन्मना सं. कुरपालेन भा. अमृतश्रीयुतेन सपुत्रपौत्रेण श्रीनेमिनाथ बि. का. अंचलगच्छे श्रीधर्ममूर्तिसूरिणा आचा. श्रीकल्याणसागरसूरियुतानामुपदेशेन || श्रीसंघेन कारितेयं मूर्तिः सं सिंघराजेन | |श्रीः ||
७. विभागीय नं. २७, चंद्रप्रभस्वामी भगवान, पंचतीर्थी
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संवत १६६२ वर्षे वैशाख शुदि १९ सोमे आगरानगरवास्तव्य लोढागोत्रे आंगाणीवंशे संघपति ऋषभदास तत्पत्नी रेखश्री तत्पुत्र ( त्रे) एत्िंबं श्रीजिनशासनो - नतिकृ. कुंरपाल तत् भा. कुंरश्री पुत्र सा. सिंघराज तद्भार्यया सिंध श्रीया ससकातदासपुत्रया सकुडूबया श्रेयसे चंद्रप्रभबिंबं कारितं श्री अंचलगच्छे श्रीधर्मूर्त्तिसूरीणां श्रीमदाचार्य कल्याणसागरसूरीणामुपदेशेन प्रतिष्ठितं ।।
८. विभागीय नं. २९, पार्श्वनाथ भगवान, पंचतीर्थी
संवत् १४२९ चैत्र वदि १२ शनौ सूराणागोत्रे डीडा भा. देवसिरी पु. रत्नसीह भा. रत्नासिरीभ्यां निजपुत्रपरिवारआत्मश्रेयोर्थं च श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीधर्मघोषगच्छे भट्टारिक श्रीसागरचंद्रसूरिपट्टे भट्टारक श्रीमलयचंद्रसूरिभिः ।। ९. विभागीय नं. ३०, अजितनाथ भगवान, पंचतीर्थी
सं. १५३७ वर्षे वैशाख शुदि ५ शनौ ऊकेश ज्ञा. मं. पाता भा. तोडी पुत्र
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श्रुतसागर - २९
सीधरेण भा. राणी पुत्र कीका- गला-लाला भा. दाकिमदे - जीठादे - लीलादेप्रमुखकुटुंबयुतेन श्री अजितनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसूरिभिः || श्री ||
१०. विभागीय नं. ३१, शांतिनाथ भगवान, पंचतीर्थी
सं. १४१२ फा. शु. १४ ऊकेश ज्ञा..
मोखा पुत्र
|| ६ || सं. १३८० वर्षे माह सुदि ६ सोमे श्रीउपकेश... रूदपाल-लखमणाभ्यां भ्रातृ धणसींह - देवसीह-पासचंद्र - पूनसीहसहिताभ्यां कुटुंबश्रेयसे श्रीशांतिनाथबिंबं का. प्रतिष्ठितं श्रीककुदाचार्यसंताने श्रीकक्कसूरिभिः ।। ११. विभागीय नं. ३३, पद्मप्रभस्वामी भगवान, पंचतीर्थी
गोत्रे...
श्रीपद्मप्रभबिंबं का. श्रीसुविहितशृंगारश्रीसूरिभिः । ।
.......
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पु.
१२. विभागीय नं. ३४, पार्श्वनाथ भगवान, एकतीर्थी
૬૭
भा. राजलदे
सं. १२१५ वैशाख सु. १२ श्री थारागच्छे हीमकस्थाने जसधर पुत्र जसकवलेन जसदेवि श्रेयसे कारिता ।।
१३. विभागीय नं. ३७, जिनप्रतिमा, एकतीर्थी
|| ६ || संवत् १३२६ वर्षे माघ वदि २ रवौ मोढज्ञातीय ठ. सांतकुंयार भार्या ठ. जयतूश्रेयोर्थं ठ. आहडेन कारितं प्रतिष्ठितं श्रीपरमाणंदसूरिभिः ।।छ! १४. विभागीय नं. ३६, पार्श्वनाथ भगवान, पंचतीर्थी
|| || सं. १४५३ वैशाख सुदि २ श्रीपल्ली, गच्छे डीडाउत्तगोत्रे श्रीमाल सा. घीणा भार्या वीरेण पुत्र धर्मा भा. आल्हण पुत्र हापा भा. आसू पु. महणाकेन पितृव्य नापाश्रयर्थं श्रीपार्श्व कारितः प्र श्रीशांतिसूरिभिः ।।
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१५. विभागीय नं. ३७, पार्श्वनाथ भगवान, एकतीर्थी
१. सं. १३४५ वर्षे चैत्र शुदि १० गुरौ श्रे, जशधर भार्जा (र्या) जयंतसिरि पु. विजयपालश्रेयोर्थ जसधर - जयतु पुत्र साकेन बिंबं का प्रतिष्ठितं सूरिभिः ।। शुभं भवतु ।।
१६. विभागीय नं. ३८, आदिनाथ भगवान, एकतीर्थी
सं. १३२७ माह शुदि ५ श्रीमालज्ञातीय शान्त्यान्वये भांडा राजा सुत भांडा. नागह भार्या वउलदेवि तयोः सुत राणाकेन पित्रोः श्रेयोर्थं श्रीआदिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं भावडारगच्छे श्रीसावदेवसूरिभिः || छ
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जून - २०१३ १७. विभागीय नं. ३९, शांतिनाथ भगवान, एकतीर्थी
संवत् १२३९ .......................... श्रीदाश्रेयोर्थं सा. सश्रीयेन शांतिनाथप्रतिमा कारिता || १८. विभागीय नं. ४०, शांतिनाथ भगवान, एकतीर्थी
सं. १२२१ तिहुणदे(?)सुत भीमाकेन भातृ रत्ननाश्रेयोर्थं श्रीशांतिनाथप्रतिमा कारिता ||
संकेतसूचि
आचा. = आचार्य का. = कारितं भा. = भार्या म. = महत्तम, मंत्री प्र. = प्रतिष्ठित सा. = साह सं. = संधवी, संवत
कृ. = कृत ठ. = ठक्कुर ज्ञा. = ज्ञातीय बि. = बिंब भांडा = भांडागारिक पल्ली. = पल्लीवाल पु. = पुत्र
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ભરતેશ્વર બાહુબલિ રાસ : યુદ્ધ અને ઉપશમને વિષય બનાવતી થના
ૉ. શ્રી અભય દોશી
મધ્યકાળના વિપુલ સાહિત્યમાં અનેક વિષયોની રચનાઓ વ્યાપકપણે જોવા મળે છે. ધર્મ, અધ્યાત્મ, પ્રણય આદિ વિષયોની સાથે જ યુદ્ધ પણ સાહિત્યમાં એક મહત્ત્વપૂર્ણ રચનાવિષય રહ્યો છે. આપણા બે ય આર્ષ મહાકાવ્યો રામાયણ અને મહાભારતમાં પણ વનવાસ અને યુદ્ધ એ મહત્ત્વપૂર્ણ વિષય વસ્તુ રહ્યા છે. આમાંની સમગ્ર કથામાંથી પણ કેવળ યુદ્ધકથાને અમુક પ્રસંગે સાંભળવાનું વલણ આદિવાસી પ્રજાઓમાં રહ્યું છે.. ભીલી-ભારથની કેટલીક પાંખડીઓ (કેટલાક ખંડો) કે જગદેવ પરમારની કથા વગેરે શ્રોતાઓમાં વીર-૨સ જગાવવા કહેવાની પરંપરા હતી. ચારણી પરંપરામાં પણ શ્રોતાઓને વીર રસ જગાવે એવી પદાવલી દ્વારા શૂરત્વ જગવવાનો ઉપક્રમ રહેતો. આ મધ્યકાલીન સાહિત્યમાં પણ પૂર્વ મધ્યકાળ અગિયારમી સદીથી પંદરમી સદીના કાળમાં ગુજરાતમાં મુસ્લીમ સત્તાના પગરણ થઈ રહ્યા હતા, પરંતુ હજી સ્વતંત્ર હિન્દુ રાજ્યો પ્રભાવ પાથરી રહ્યા હતા. પાટણના ગૌરવશીલ રાજાઓ સિદ્ધરાજ અને કુમારપાલથી માંડી ધોળકાના રાજા વીરધવલ અને તેના પ્રતાપી મંત્રીઓ વસ્તુપાલ અને તેજપાલ જીવાતા જીવનના ભાગરૂપ હતા. બૃહદ્ ગુજરાતના ભાગરૂપ જાલોરના વીર રાજવી કાન્હડદે વળી હમ્મીર આદિ પણ અવિસ્મરણીય હતા. આવા સમયે જૈન-સાધુઓ પણ મુખ્યત્વે અહિંસાના ઉપદેશક હોવા છતાં સંસ્કૃતિ રક્ષા કરનાર વીરપુરૂષોની ગૌરવ-ગાથા ગાતા. જ્યારે સમાજના નાયક પુરૂષો સંસ્કૃતિ રક્ષા માટે યુદ્ધમાં રમમાણ હોય ત્યારે પ્રજા પણ આ યુદ્ધનાયકોના ગુણગાન ગાવા પ્રેરાય. કાન્હડદે પ્રબંધ, હમીર પ્રબંધ, વિમલપ્રબંધ આદિ રચનાઓ આવા વીરત્વના ગુણગાનની - મહિમાં મંડનની રચનાઓ છે.
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પ્રજાને એક યુદ્ધના સમયે પૂર્વના યુદ્ધ વર્ણનની રચનાઓમાં પણ વિશેષ રસ પડતો હોય છે. રામાયણ અને મહાભારતની રચનાઓ તો પ્રજાને માટે ચીરકાલીન કથાભંડાર રહ્યો છે. આ સાથે જ જૈન કવિઓએ મહાપુરુષો, પ્રસિદ્ધ શ્રાવકોના જીવનમાંથી વીરત્વભર્યા પ્રસંગોને કેન્દ્રમાં રાખી તેની રસમય પ્રસ્તુતિ કરી.
તેઓનો ઉદ્દેશ્ય યુદ્ધ નિમિત્તે અંતે વૈરાગ્ય તરફ દોરવાનો રહ્યો છે. યુદ્ધ આમે પણ વૈરાગ્ય તરફ દોરી જતું હોય છે. હારનાર પક્ષને તો હારનો અનુભવ
મહાભારતની ભીલ પ્રજામાં સંભળાતી કથા-પરંપરા
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७०
जून २०१३
જ નિર્વેદકારક હોય છે, પરંતુ જીતનાર પણ વિજયને જે કિંમતે ઉપલબ્ધ કરી શક્યો હોય છે, તેમાં કેટલેક અંશ હાર હોય જ છે. એમાં પણ બે સ્વજનો વચ્ચે ખેલાતા યુદ્ધમાં આ નિર્વેદની માત્રા વધુ તીવ્ર હોય છે. આથી જ 'પ્રાચીના'માં યુધિષ્ઠિરના મુખે શ્રી ઉમાશંકરે મૂકેલા શબ્દો અત્યંત યથાર્થ લાગે છે;
સમાન પલ્લા વિધિની તુલાના; જય વિજય તો કેવળ બ્લાનાં.
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·
રાજગચ્છની પરંપરામાં વજ્રસેનસૂરિના વિદ્વાન શિષ્ય શાલિભદ્રસૂરિએ પણ જૈન પરંપરામાં ઉપલબ્ધ થતાં બે ભાઈઓના યુદ્ધની ભયાનક અને રમ્ય કથાને રાસા છંદમાં રજૂ કરવાના ઉપક્રમ સાથે 'ભરતેશ્વર બાહુબલિ રાસ' આપણી સમક્ષ પ્રસ્તુ થાય છે.
આપણી એક માન્યતા એવી છે કે, પ્રારંભિક રાસાઓ ટૂંકા, ગેય નર્તનક્ષમ હતા, પરંતુ આપણો સર્વપ્રથમ રાસ જ ગેય અને પાઠ્ય હતો તે તેના આંતરસ્વરૂપથી સ્પષ્ટ થાય છે. ૧૭ ઠવણી અને ૨૦૩ કડીઓમાં ફેલાયેલી આ રચના કેવળ નર્તન માટે ન જ હોય તે સ્પષ્ટ છે. વળી કર્તા અંતે કહે પણ છે,
જો પઢઈ એ વસુહા વદીત, સો નરો નિતુ નવ નિહિ લહઈએ
(આ રાસ જે પઢશે (વાંચશે) તે વસુધા-પૃથ્વીમાં પ્રસિદ્ધ થશે અને તે મનુષ્ય નિત્ય નવનિધિને પ્રાપ્ત કરશે.) આમ, આ પ્રારંભિક રાસ પણ રાસા સ્પષ્ટરૂપે પઠન-વાચન-ક્ષમ હતા, તેની પ્રતીતિ કરાવે છે. ભરત-બાહુબલિની આ યુદ્ધ કથા યુદ્ધ કથા રૂપે પણ વિશિષ્ટ છે,
સામાન્ય રીતે યુદ્ધની પૂર્ણાહુતિ બાદ બેમાંથી એકને નિર્વેદ આવે (મોટે ભાગે હારનારે) એ તો સહજ અને સ્વીકાર્ય માનવધટના ગણાય. પરંતુ અહીં તો યુદ્ધની ચ૨મક્ષણોમાં વિજય જ્યારે સાવ સમીપ હોય ત્યારે વિજેતા બનનાર તે જ ક્ષણે વિજયનો અસ્વીકાર કરે, નિર્વેદ અનુભવે અને વૈરાગી બની જાય એ તો વિરલ ઘટના છે. તો આ વિરલ યુદ્ધ ઘટનાનો કવિના શબ્દમાં પરિચય પામીએ.
કવિ પ્રારંભે ઋષભદેવ પ્રભુ અને સરસ્વતી દેવીને પ્રણામ કરી બીજી જ કડીમાં કહે છે કે, વસુધા મંડળમાં પ્રસિદ્ધ એવું ભરત અને બાહુબલિ એ બે ભાઈઓનું બાર વર્ષનું યુદ્ધ મનને આનંદ આપનારા ૨ાસા છંદમાં કહીશ, હે ભાવિકો! તેને ભાવપૂર્વક સાંભળો.
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આમ કહી કવિ પીઠિકારૂપે બંને ભાઈઓના પિતા શ્રી ઋષભદેવનું ચારિત્ર સંક્ષેપથી વર્ણવી ઋષભદેવની દીક્ષાનો પ્રસંગ વર્ણવે છે. શ્રી ઋષભદેવ ભરતને
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श्रुतसागर • २९
૭૧ અયોધ્યાનું તેમ જ બાહુબલિને તક્ષશીલાનું રાજ્ય આપી દીક્ષા લે છે તેમ જણાવી, કવિ તેમના કેવળજ્ઞાનના પ્રસંગને વર્ણવે છે. આ જ પ્રસંગે ભરતના ઘરે ચક્રરત્ન પ્રગટ થાય છે, પ્રથમ પિતાના કેવલજ્ઞાનના અવસરને આનંદથી ઉજવી ચક્રવર્તી ભરત દિગ્વિજય માટે નીકળી પડે છે. આ મુખ્ય યુદ્ધ પૂર્વેના વર્ણન દ્વારા કવિ યુદ્ધની ભયાનકતા, ભીષણતા આદિનો સમુચ્ચિત ખ્યાલ આપી દે છે. કવિએ આ કાર્ય માટે વર્ણાનુપ્રાસમય પદાવલી દ્વારા ઓજસમય શૈલીનો વિનિયોગ કવિએ ખપમાં લીધો છે;
ધડહડત ધર દ્રમદ્રમીય, રહ સંઘઇ રહવાટ તો રવ ભરિ ગણઈ ન ગિરિ ગહણ, થિર થોલઈ રહ-ચાટતુ. ૨૭
ધ્રૂજતી ધરા ધમધમી રહી રથોએ રથવાટ (રથનો માર્ગ) રૂંધી નાખ્યો. રથો ભારે વેગથી પર્વત કે ખાઈને ગણતા નથી. આમ, આ ઓજસભર્યો વાણીપ્રવાહ યુદ્ધના વાતાવરણનો વેગવંત રીતે અનુભવ કરાવે છે.
છ ખંડ પરના પ્રબળ વિજય બાદ પણ ભરતરાજનું ચક્ર પુનઃ આયુધશાળામાં પ્રવેશતું નથી, આથી ચિંતામાં મૂકાયેલ ભરત આ પ્રશનનું નિરાકરણ લાવવા મંત્રીશ્વરને કહે છે. મંત્રીશ્વર કહે છે કે, તમારા ભાઈ બાહુબલિએ તમારી આજ્ઞા સ્વીકારી નથી, માટે ચક્ર પ્રવેશતું નથી. આથી, ભરત ક્રોધે ભરાઈ બાહુબલિ સાથે યુદ્ધ કરવા તત્પર થયો, ત્યારે મંત્રી કહે છે, ભાઈ સાથે યુદ્ધ શું કરવાનું? પહેલા દૂત મોકલી વાત જણાવીએ. જો તે નહિ આવે તો પછી સૈન્ય મોકલીએ. રાજાએ સુવેગ નામના દૂતને મોકલ્યો. સુવેગ દૂતના તક્ષશીલા ગમન સમયે ઘોડો ફરી ફરી સામે થવા લાગ્યો, બીલાડો આડો ઊતર્યો. અને અનેક અપશકનો થયા. આ સમગ્ર અપશુકનોનું વર્ણન શ્રી બળવંત જાનીએ દર્શાવ્યું છે, તે પ્રમાણે મધ્યકાલીન રિષ્ટસમુચ્ચયમાંથી લેવાયું છે, પરંતુ કવિએ તેનો સાર્થક વિનિયોગ સિદ્ધ કર્યો છે. હવે દૂત વેગથી તક્ષશીલા પહોંચે છે. ત્યાં તક્ષશીલાના મુખ્ય નગર પોતનપુરના અપૂર્વ સૌંદર્યના વર્ણનમાં કવિની વર્ણનકળા ખીલી ઊઠી છે;
ધરણી તરણિ - તાડક, જેમ તુંગ ત્રિગટું લહઈએ એહ કિ અભિનવ લંક, સિરિ કોસીસાં કલયમય.
તેનું ત્રિગટું એવું લાગે છે કે, જાણે ધરતીરૂપ તરુણીએ કુંડળ ધારણ કર્યા ન હોય? ઉપર રહેલા સોનાના કાંગરા વાળી આ અભિનવ લંકા છે?
પોઢા પોલિ પગાર, પાડા પાર ન પામીઈએ સંખ ન સીહ દુયાર, દસઈ દેઉલ દહ દિસિ. ૧૭
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जून २०१३
આ નગરમાં વિશાલ પોળોને દીવાલો હતી, તેના પાડાઓ (મહોલ્લાઓ) નો પાર પમાય તેમ નથી. ત્યાંના સિંહદ્વારની સંખ્યા (ગણાય) એમ ન હતી, અને દશે દિશાઓમાં દેવમંદિરો શોભી રહ્યા હતા. અત્યારે પાટણમાં કે અમદાવાદમાં નાના વસ્તી ગુચ્છો માટે વપરાતો પાડા શબ્દ તેરમી સદીથી પ્રચારમાં હતો, એમ કહી શકાય.
ચઉકીય માણિક થંભ, માહિ બઈઠઉ બાહુબલે
રૂપિહિ જિસિય રંભ, ચમરહારિ ચાલાઈ ચમરૂ. ૬૯
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ચોકીમાં માણસ્તંભ હતા, તેમાં રાજા બાહુબલિ બેઠો હતો. રૂપમાં રંભા સમાન ચામરધારિણી ચામર ઢોળી રહી હતી. એ પછીના બાહુબલિના વર્ણનમાં કવિતાનો મનહર સ્પર્શ અનુભવાય છે. ઉદયાચલ પર જેમ સૂર્ય શોભે છે, તેમ તેના મસ્તક પર મણિમુકુટ શોભી રહ્યો હતો. તેની છાતી પર મોતીનો હાર, હાથમાં વીરવલય (કડા) શોભી રહ્યા હતા. આવા બાહુબલિને જોઈ દૂત મનમાં આનંદ પામ્યો અને દૂતે ભરતનો સંદેશ ક્યો, બાહુબલિએ કહ્યું, અમે ભરતને અમારી રીતે મળવા આવીશું. ત્યારે દૂત આગ્રહપૂર્વક ભરતની સેવા અને આજ્ઞા સ્વીકારવાનો આગ્રહ કરવા લાગ્યો, ત્યારે બાહુબલિએ દૂતને પોતાના પરાક્રમ પ્રગટ કરતી ઉક્તિઓ કહી તીરસ્કાર કર્યો. તેને કહ્યું કે, જો ગાય વાઘણને ખાય તો ભરત બાહુબલિને જીતી શકે. વળી ભરતને પોતાના ચક્ર પર વિશેષ ગર્વ હોય તો કહેવું કે 'અમારા નગરમાં પણ ઘણાં કુંભારો ચક્ર ચલાવી રહ્યા છે’
ત્યાર બાદ પોતાના બાળપણના પ્રસંગનું સ્મરણ કરે છે;
જઈ જણાવિ સુનંદા જાઓ મ સર મન ધિર ગરુઉઉ ગાહો આપણિ ગંગાતિરિ રમંતા, ધસમસ ધૂંધલિ પડિય ધર્મતા તઉ ઉલાલીય ગયણિ પડંતઉ, કરુઉણા કરીય વલી ઝાલંતઉં, ૧૧૫
સુનંદાના જાયા (ભરતેશ્વર) ને જઈ જણાવ કે અમારી ગરવી ગાથાને મનમાં યાદ કરે.) આપણે ગંગા તીરે રમતાં, તેના ધસમસતાં વમળોમાં પડી ધમાલ કરતા, ત્યારે (હું) તને ગગનમાં ઊછાલતો અને (ત્યાંથી) પડતા તેને કરુણા કરીને ઝીલી પણ લેતો. આમ છતાં, ભરત રાજા હઠ કરી યુદ્ધ માટે આવશે, તો મુગટધારીના મુગટ ઊતરશે, અને લોહીના રેલામાં ધોડા અને હાથી
તરશે.
દૂતે આ સંદેશ ભરત રાજાને કહ્યો, એટલે કોપિત થયેલો ભરત રાજા યુદ્ધ માટે તત્પર થયો. બંનેના સૈન્યોનું પરસ્પરનું યુદ્ધ બાર વર્ષ સુધી ચાલ્યું. આ
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श्रुतसागर - २९ યુદ્ધવર્ણન ત્રિષષ્ટિશલાકા પુરૂષ ચરિત્રમાં કે ચઉપન્ન મહાપુરૂષચરિયંમાં નથી, આથી કવિ બીજી અન્ય પરંપરાને આધારે આ યુદ્ધ વર્ણન આપે છે, તેવું જણાય
છે.
આ યુદ્ધમાં ચંદ્રચૂડરાજાના પુત્રે ખૂબ પરાક્રમ બતાવ્યું, ત્યારે રાજા ભરત ચક્ર છોડ્યું. આ ચક્રથી બચવા ચંદ્ર, સૂર્ય, મંડળ અને પાતાળમાં પહોંચ્યો, પરંતુ છેલ્લે જાણ્યું કે, ચક્રથી કોઈ બચી શકતું નથી, ત્યારે વીરની જેમ આદિનાથ પ્રભુનું સ્મરણ કરતા સામે જઈ મૃત્યું સ્વીકાર્યું.
એના મૃત્યુબાદ ચંદ્રચૂડે ત્રણ મહિના, રત્નારિ અને રત્નચૂડ દોઢ વર્ષ, બાહુબલિક-સુરસારી, અમિતકેતુ - ભરત સાત મહિના, મહેન્દ્રચૂડ – રથચૂડ, ભરતપુત્ર યુરદાદિ-બાહુબલિ પુત્ર બલિ સાત માસ, સિહરથ-અમિતગતિ ત્રણ માસ, અમિતતેજ – સારંગ એક મહિનો, સૂર્ય-ચંદ્ર નામના યોદ્ધાઓ એ પાંચ વર્ષ યુદ્ધ કર્યું. આમ ઘણા યોદ્ધાઓના યુદ્ધનું વર્ણન કર્યું છે. છેલ્લે ભરત રાજા ગુસ્સે થઈ ધનુષ્ય લઈ યુદ્ધિ ભૂમિ પર આવ્યો.
આ યુદ્ધની ભયાનકતા વર્ણવતાં કહે છે : વહઈ હિર-નઈ સિરવર તરઈ, રીરીયાટ રણિ રાખસ કરી હળદલ હાકઇ ભરત નરિંદ, તુ સાહસુ લહઈ સગ્નિ સુરિંદ, ૧૮૦
રુધિરની નદી વહે છે, માથાઓ તરી રહ્યા છે. રાક્ષસો રણમાં રીરીયાટા (અવાજ) કરે છે, ભરત રાજા દળને હાક મારે છે, સુરેન્દ્ર સાહસિકોને સ્વર્ગમાં લઈ જાય છે.
આવા ભયાનક યુદ્ધને શાંત કરવા ઇન્દ્ર રાજા પૃથ્વી લોક પર આવી ભરત બાહુબલિને કહે છે, યુદ્ધમાં અન્ય મનુષ્યોનો સંહાર કરવાનું છોડો, તમારા પરાક્રમની પરીક્ષા કરવી છે, તો તમે સ્વયં સામ સામે મલ્લયુદ્ધ કરો.
ઇંદ્રની વાત સ્વીકારી બંને ભાઈઓ મલ્લોના અખાડામાં ગયા. તેઓના યુદ્ધમાં વચનયુદ્ધમાં ભારત જીત્યો નહિ, દૃષ્ટિ યુદ્ધમાં કોઇ ન હાર્યું, દંડયુદ્ધમાં ભરત જમીન પર પડી તરફડવા લાગ્યો. મુઠ્ઠિયુદ્ધમાં બાહુબલિ ગોઠણ સુધી જમીનમાં ખૂંપી ગયા, ત્યારે સામા પ્રતિકારમાં કરેલા મુદ્ધિપ્રહારથી ભરતરાજા કિંઠ સુધી ખૂંપી ગયા. આથી ક્રોધિત ભરતે પોતાનું અંતિમ શસ્ત્ર ચક્ર ફેંકવા ઇડ્યું, પરંતુ ચક્ર બાહુબલિની ચારે બાજુ ફરી પાછું ફર્યું. ચક્રનો નિયમ એવો છે કે, પોતાના કુટુંબની વ્યક્તિનો ઘાત કરતું નથી. આ પાછા ફરતા અને બાહુબલિએ *આ પરંપરા અત્યારે અનુપલબ્ધ તીર્થંકર ચરિત્રોમાંથી હોઈ શકે.
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जून - २०१३ ખેંચી લીધું અને બળવાન બાહુબલિ ચક્ર હાથમાં લઇ કહેવા લાગ્યો કે હું આ ચક્રનો ચૂરો કરી નાખુ. આ જ વિજયની, પરાકાષ્ઠાની ક્ષણે બાહુબલિના મનમાં મનોમંથન થયું અને કહેવા લાગ્યો;
તુ બોલઈ બાહુબલિ રાઉં, ભાઇય મનિ મ મધરાસે વિસાઉ તઇ જીતવું મેઈ હારિઉં ભાઇ, અમદ્દ શરણ રિસદેસર પાય ૧૮૯
પોતાના કર્તવ્ય પર પશ્ચાત્તાપ કરતા બાહુબલિએ મસ્તકનો લોચ કરી સંયમ ગ્રહણ કર્યો. આ પ્રસંગે ભરતે પુનઃ સંસારમાં આવવા ઘણી વિનંતી કરી, પરંતુ દૃઢમના બાહુબલિ સંયમમાં સ્થિર રહ્યા. તેઓ મૌનમાં રહ્યા
કેવળજ્ઞાન પ્રાપ્ત થયા પછી જ પ્રભુ પાસે જવું, જેથી મારા લઘુ બાંધવોને મારે વંદન ન કરવું પડે આ વિચાર રૂપ માનમાં રહ્યા. વર્ષ અંતે બંને બહેનોના હાથી પરથી ઊતરવાનો સંદેશો સાંભળી અંતઃકરણનાં વિચાર કરતાં અનુભવાયું કે, પોતે માન રૂપી હાથી પર બેઠા છે કેવળજ્ઞાન પ્રાપ્ત થયા પછી જ પ્રભુ પાસે જવું, નાના ભાઈઓને ન નમવું એવી જીદ ખોટી છે. આથી બાહુબલિ નમ્ર બની પ્રભુ પાસે જવા તત્પર થયા, ત્યાં જ્વળજ્ઞાન પ્રાપ્ત કર્યું. ભરત રાજાએ આયુધશાળામાં આવી ચક્રરત્નની પૂજા કરી, છ ખંડ પૃથ્વી પર પોતાની આજ્ઞા પ્રવર્તાવી.
આ રાસ રાજગચ્છ શણગાર વજસેનસૂરિના પટ્ટધર શાલિભદ્રસૂરિએ ફાગણ સુદ પાંચમના દિવસે રચ્યો છે, એમ કહી આ રાસ સમાપ્ત કર્યો છે. કવિએ આ રાસમાં પોતનપુર નગરના વર્ણનમાં, બાહુબલિના વર્ણનમાં તેમજ સૈન્યની વિવિધ ગતિવિધિ અને બાર વર્ષના યુદ્ધના વર્ણનમાં સુંદર કલાના દર્શન કરાવ્યા છે. કવિ વાત વેગભરી ગતિએ પરંતુ જીવંતતાના સ્પર્શ કરાવતી પદ્ધતિએ કરાવે છે.
આ કથા ધર્મનિમિત્તક છે, પરંતુ કવિ યુદ્ધવર્ણન માટે જેટલો સમય ફાળવે છે, એટલો બાહુબલિના અંતરંગ વૈરાગ્ય વર્ણવવા માટે નથી ફાળવતા, પરંતુ કવિનો હેતુ તો યુદ્ધકથા નિમિત્તે ધર્મકથા કહેવાનો જ છે.
આ જગતનું પ્રત્યેક યુદ્ધ પહેલા ચિત્તની ભૂમિમાં સર્જાતું હોય છે, પછી અનુકૂળતાએ તે બહાર પ્રગટ થતું હોય છે. ચિત્તની ભૂમિમાં રહેલ અહંકાર એ યુદ્ધનું પ્રેરક બળ છે, તે ભરત અને બાહુબલિના ચિત્તમાં રહેલ ગર્વના સચોટ આલેખન દ્વારા સર્જકે ધર્મ અને સાહિત્યનો સુમેળ કર્યો છે. ધર્મ પણ કહે છે કે,
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श्रुतसागर - २९
પ
અહંકાર એ યુદ્ધને જન્મ આપે છે, તો જગતનું ઉત્તમ સાહિત્ય પાત્રના મનોપ્રદેશને ઉજાગર કરે છે.
અહીં જુઓ બાહુબલિની ભરત પ્રત્યેની ઉક્તિઓ;
કહિ રે ભરદેસર કુણ કહીઈ, મઈ સિરૂં રણિ સુરિ અસુરિ ન રહઈ જે ચકિઈ ચક્રવૃત્તિ વિચાર, અમ્લ નગારે કુંભાર અપાર. ૧૧૪
અરે તું જ કહે, ૨૫માં જ્યાં મારી સામે સૂર કે અસૂર પણ ટકી શકે નહિ, ત્યાં ભરતેશ્વરનું શું કહેવું? જે ચક્રથી એને ચક્રવર્તીપણાનું (અભિમાન) છે, તેવા ચક્ર ચલાવનાર તો અમારા નગ૨માં અસંખ્ય કુંભાર છે,
આવી ગર્વોક્તિઓ યુદ્ધનો જન્મ ન આપે તો જ નવાઈ.
કવિએ આ રાસમાં છંદોરચના પણ અત્યંત કુશળતાપૂર્વક કરી છે. આમાં ઠવણીમાં દોહરા, સોરઠા, ચોપાઈ, ચરણા કુલ, કોળા, જેવા છંદો તેમ જ ધોળ અને ત્રુટકના બંધો પ્રયોજીયા છે સાથે જ ઠવણી અંતે અવલોકનાર્થે વસ્તુછંદ પ્રયોજ્યો છે. આ છંદોમાં ધોળ અને ત્રુટકના બંધો દ્વારા સર્જકે વાતાવરણને અત્યંત જીવંત બનાવ્યું છે. કવિએ યુદ્ધને લગ્નની પરિભાષામાં વર્ણવી ધઉંલ બંધ, લગ્નગીતના ઢાળમાં રજૂ કર્યું છે, તે કવિની છંદોવિધાનની સૂઝનું ઉત્તમ ઉદાહરણ છે;
મંડએ માથએ મહીયલિ રાઉ, ગાઢિમ ગય-ધડ ટોલવએ પિડિ પર પરબત પ્રાય, ભડધડ નરવએ નાચવઇએ
કાલ કંકોલએ કરિ કરમાલ, ઝાઝએ ઝૂઝિäિ ઝલહલઈએ ભાંજએ ભડધડ જિમ જમ જલ, પંચાયણ ગિરિ ગઢયડએ.૧૪૬
રાજપુત્રો પોતાના મસ્તકથી ધરતીને શણગારે છે, શત્રુઓના પર્વત જેવા હાર્થીઓની ગાઢ ઘટાને પીડીને તોડે છે, રાજા યોદ્ધાઓના ધડને નચાવે છે. હાથમાં રહેલી કાળ વિકરાળ તલવાર યુદ્ધોમાં ઝળહળે છે, પર્વતમાં ગાજતા સિંહ જેવો તે, જેમ જમ મનુષ્યોના ટોળાને તેમ, હાથીઓના સમૂહ તથા વીર યોદ્ધાઓને ભાંગી નાખે છે. સર્જનની આવી મનોહર લીલા વડે કવિએ કવિતા અને ધર્મનું અપૂર્વ સાયુજ્ય સિદ્ધ કર્યું છે. આવું આ નાના પરંતુ મનભર રાસનના અવલોકનથી કરી શકાય.
આ રાસનું પ્રથમ સંપાદન મુનિ શ્રી જિનવિજયજીએ કર્યું, ત્યાર બાદ અન્ય
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जून
२०१३
પ્રતને આધારે શ્રી લાલચંદ ગાંધીએ સંપાદન કર્યું હતું. ત્યાર બાદ વર્ષો પછી ડૉ. બળવંત જાનીએ પુનઃ મૂળ હસ્તપ્રતનો ઉપયોગ કરી સંપાદન કર્યું, તેમ જ તેનો અર્વાચીન ગુજરાતીમાં અનુવાદ ઉપલબ્ધ કરી આપ્યો, વળી આગલા બંને સંપાદનોના ઉત્તમ અંશોને આ સંપાદનમાં સમાવિષ્ટ કરી લીધા. આ સંપાદન વિદ્વત્તા અને રસજ્ઞતાનું ઉત્તમ ઉદાહરણ છે. આમાં અર્થઘટનના એક-બે સ્થળોમાં ચર્ચાનો અવકાશ છે. આ રાસમાં ૪૦મી કડી આ પ્રમાણે છે;
સાઠિ સાહસ સંવરચ્છરš, ભરહસ ભરત છ ખંડ તુ સમરું ગણિ સાઈ સધર, વરતઈ આણ અખંડતુ. ૪૦
-
(રાજા ભરતે સમરાંગણમાં છખંડ પૃથ્વી જીતી લધી. સાઠ હજાર વરસ સુધી ભરતની આણ અખંડ વરતાણી.)
અહીં અર્થ આ પ્રમાણે હોવો જોઇએ;
ભરત રાજાએ ભરત (ક્ષેત્ર)ના છ ખંડ સાઠ હજાર વર્ષ સુધી સમરાંગણમાં યુદ્ધ કરી સાધ્યા અને પોતાની અખંડ આજ્ઞા પ્રવર્તાવી. અહીં કથા અનુસાર ભરત ચક્રવર્તી એ સાઠ હજાર વર્ષ યુદ્ધ કર્યું હતું, સાઠ હજાર વર્ષ સુધી માત્ર આજ્ઞા પ્રવર્તાવી નહોતી. આજ્ઞા તો લાખો પૂર્વ સુધી પ્રવર્તાવી હતી.
એ જ રીતે ફમી કડીમાં આવતા યક્ષ અને કાળિયાર શબ્દો પક્ષીનામ સૂચક હોવા જોઈએ. હમણાં ઉપલબ્ધ થયેલું સતીષ કણાકનું સંપાદન ડૉ. બળવંત જાનીના સંપાદનને જ અનુસરે છે. ટૂંકમાં, આ રચનામાં વીર, ભયાનક, બીભત્સ શાંત આદિ રસો અને બોલચાલની વિવિધ છટાઓ આસ્વાદ્ય છે અને ગુજરાતી ભાષાની પ્રારંભિક કૃતિ તેમ જ તેના કર્તા શાલિભદ્રસૂરિ ગૌરવના અધિકારી છે.
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(ગુજરાતી સાહિત્ય પરિષદ અને હેમચંદ્રાચાર્ય સ્વાધ્યાયપીઠના ઉપક્રમે યોજાયેલ જૈન સાહિત્યવિષયક પરિસંવાદમાં ૨જૂ કરેલ વક્તવ્ય થોડા સુધારા વધારા સાથે અત્રે પ્રકાશિત કરેલ છે.)
સંદર્ભ સૂચિ
(૧) ગુજરાતી સાહિત્યકોશ ખંડ - ૧ (મધ્યકાળ) ૧૯૮૮ (૨) શાલિભદ્રસૂરિરચિત ભરતેશ્વર બાહુબલિ રાસ (૩) શાલિભદ્રસૂરિષ્કૃત ભરતેશ્વર બાહુબલિ રાસ - ૨૦૦૩.
સં. - જયંતભાઈ કોઠારી
J
સં. - સતીશ ડશાક
સં. - ડૉ. બળવંત જાની
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जैन प्रतिमाओं की परम्परा
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डॉ. सत्येन्द्र कुमार
प्रतिमा का अर्थ है प्रतिरूप । इसी भाव को स्पष्ट करने के लिए प्रतिकृति, प्रतिमा, बिम्ब आदि शब्द प्रयुक्त होते हैं। बिम्ब का अर्थ है छाया । यह शब्द पारलौकिक प्रतिमाओं के लिए प्रयुक्त होता है। जैन धर्मानुसार उपासना का मूल उद्देश्य हमारे उपास्य देव अर्हंतों के गुणों की प्राप्ति है अथवा दूसरे शब्दों में उनके (आत्मा के स्वाभाविक) गुणों में हमारे अनुराग को दृढ बनाने के लिए ही उनकी उपासना की जाती है ताकि बारबार एकाग्रतापूर्वक चितवन करने से हममें भी वही गुण प्रकट हो जायें। जनसाधारण में प्रतिमा का उपयोग तो होता ही था, ज्ञानी एवं ध्यानी भी ध्यान एवं मनन के लिए प्रतिमा का आधार लेते थे ।
जैन प्रतिमा की प्राप्ति तो हडप्पा काल ( २५०० - १७५० ई. पू.) से ही मानी जाती है। हडप्पा से एक मृण्मूर्ति नग्न मानव द्वारा अपने हाथों से एक पक्षी को पकड़े हुए है जिससे पंचम तीर्थकर का अपने लांछन के साथ होने का आभास देता है। हडप्पा के उत्खनन से प्राप्त लाल रंग के जैसपर पत्थर (सूर्यकान्त मणि) का बना एक नग्न मानवकबंध मूर्ति ( कायोत्सर्ग मुद्रा में है, कायोत्सर्ग मुद्रा को भगवान महावीर ने समस्त दुखों से मुक्ति प्रदान करने वाला बताया है ) को प्रथम जैन तीर्थंकर का प्रतीक माना जाता है। तथा मोहनजोदडो एवं हडप्पा की खुदाई में उपलब्ध सील-मुहर नं. ३से५ व ४४९ में डॉ. प्राणनाथ विद्यालंकार जैसे वैदिक विद्वान, 'जिनेश्वर, शब्द का सद्भाव पढते है। रायबहादुर चंदा जैसे महान पुरातत्त्व विद् का कहना है कि वहाँ की मोहरों में जो भी मूर्तियाँ पाई गयी हैं उनमें ऋषभदेव की खड्गासन मूर्ति मे त्याग व वैराग्य का भाव अंकित है । सिन्धु सभ्यता से जो सामग्री मिली है उस पर से अनुमान है कि उस प्राचीन भारतीय संस्कृति में योग का उच्च स्थान था । ऐसी स्थिति में जैन धर्म को तथाकथित सिन्धु संस्कृति (२५००-१७५० ई. पू.) से भी संबद्ध किया जा सकता है। क्योंकि जैन धर्म में प्रारम्भ से योग का उच्च स्थान रहा है।
जैन धर्म में मूर्तिपूजा की प्राचीनता से संबद्ध सबसे महत्वपूर्ण वह सन्दर्भ है जिसमें साहित्यिक परम्परा से ज्ञात होता है कि विद्युन्माली ने भगवान महावीर के जीवनकाल (५९९-५२७ ई. पू.) में ही उनकी चन्दन से निर्मित एक प्रतिमा का निर्माण किया था। इस मूर्ति में महावीर को दीक्षा लेने के लगभग एक वर्ष पूर्व राजकुमार के रूप में अपने महल में ही तपस्या करते हुए दर्शाया गया है। चूँकि
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जून २०१३
यह प्रतिमा भगवान महावीर के जीवनकाल में ही निर्मित हुई अतः उसे जीवितस्वामी संज्ञा दी गई।
प्रतिमा के लिए लकड़ी काटने के प्रसंग अनेक ग्रन्थों में प्राप्त होते हैं। बृहद्संहिता के वनसम्प्रदेशालय में वन में जाकर वहाँ से लकड़ी काटकर घर लाने और तत्पश्चात उससे देवी-देवताओं की प्रतिमा बनाने का वर्णन हुआ है। जैनों का अर्धमागधी आगम साहित्य में लकड़ी द्वारा निर्माण की कला को 'कट्ट्ठकम्म' कहा गया है तथा व्यवहार में वरातक मुनि का संदर्भ मिलता है। जिसकी काष्ठ मूर्ति बनायी गयी थी और उसके पुत्र द्वारा पूज्य थी । 'अंतगडदसाओ' ग्रंथ में मोग्गरपाणि यक्ष की काष्ठ की बनी हुई प्रतिमा का उल्लेख हुआ है। यह राजगृह नगर के बाहर बनी हुई थी । शिलामय चैत्यगृहों का वास्तु विन्यास पूर्ववर्ती काष्ठकर्म से लिया गया है। ये महाकाय पर्णशालाएँ थीं जिनमें काष्ठतोरण और बडे-बडे काष्ठ पंजर और खम्भे लगाये जाते थे। स्तूपों के स्तम्भों और तोरणों पर विभिन्न अलंकरण उत्कीर्ण किये जाते थे, जो मूलभूत काष्ठकर्म के अंग थे, जैसे-चन्दनकलश या पूर्णघट, आसन, छत्र चामर, आदि । चन्द्रगुप्त मौर्य ( ई. पू. ३२५ ) के राजप्रासाद में फर्श और छत में काष्ठ का ही प्रयोग हुआ था । विद्वानों के अनुसार शिल्प के वे आचार्य जिन्होंने बराबर पहाडी (बिहार) में चट्टानी गुफाओं का निर्माण किया, पूर्ववर्ति काष्ठ शिल्प में पूर्णतः दक्ष थे । मौर्यशुंग युग काष्ठ शिल्प से पाषाण शिल्प का संक्रान्तिकाल था, मथुरा के आयागपट को भी इसी क्रम में देखा जा सकता है।
साहित्यिक और आभिलेखिक साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि मथुरा का कंकाली टीला एक प्राचीन जैन स्तूप था। जैन परम्परा के अनुसार इसका निर्माण सातवें तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ के समय में हुआ था। जैन परम्परा में मथुरा की प्राचीनता सुपार्श्वनाथ के समय तक प्रतिपादित की गई है। जहाँ कुबेरा देवी ने सुपार्श्व की स्मृति में एक स्तूप बनवाया था । विविधतीर्थकल्प (१४वीं सदी) में उल्लेख है कि पार्श्वनाथ के समय में सुपार्श्व के स्तूप का विस्तार और पुनरुद्धार हुआ था, तथा बप्पभट्टसूरी ने वि. सं. ८२६ ( ७६९ ई.) में पुनः उसका जीर्णोद्धार करवाया। इस परवर्ति साहित्यिक परम्परा की एक कुषाणकालीन तीर्थंकर मूर्ति से पुष्टि होती है जिसकी पिठिका पर लेख (१६७ ई.) है कि यह मूर्ति देवनिर्मित स्तूप में स्थापित की गई।
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(क्रमशः)
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આચાર્યશ્રી કૈલાસસાગરફ્યુરિ જ્ઞાનમંદિર, ડોળા
સંક્ષિપ્ત કાર્ય અહેવાલ મે-૧3 જ્ઞાનમંદિરના વિવિધ વિભાગોના કાર્યોમાંથી મે-૧૩માં થયેલાં મુખ્ય-મુખ્ય કાર્યોની ઝલક નીચે પ્રમાણે છે. ૧. હસ્તપ્રત કેટલૉગ પ્રકાશન કાર્ય અંતર્ગત કેટલોગ નં. ૧૬ માટે કુલ ૧૦૯
પ્રતો સાથે ૩૯૩ કતિલિંક થઇ અને આ માસાંત સુધીમાં કેટલૉગ નં. ૧
માટે ૨૬૦૩ લિંકનું કાર્ય પૂર્ણ થયું. ૨. હસ્તપ્રતોના ૩૬૮૯૭ પૃષ્ઠોનું સ્કેનીંગ કાર્ય કરવામાં આવ્યું. ૩. સાગરસમુદાય ગ્રંથ તથા વિશ્વ કલ્યાણ ગ્રંથ પુનઃ પ્રકાશન પ્રોજેક્ટ હેઠળ કુલ - ૩૮૨ પાનાઓની ડબલ એન્ટ્રી કરવામાં આવી. ૪. લાયબ્રેરી વિભાગમાં પ્રકાશન એન્ટ્રી અંતર્ગત કુલ પ્રકાશનો, ૯ પુસ્તકો,
૩૮૪ કૃતિઓ તથા પ્રકાશનો સાથે પર૫ કૃતિ લિંક કરવામાં આવી. આ સિવાય ડેટા શુદ્ધિકરણ કાર્ય હેઠળ જુદી-જુદી મહિતીઓના રેકોર્સમાં સુધાર
કાર્ય કરવામાં આવ્યું. ૫. મેગેઝીન વિભાગમાં ૧૩૭ મેગેઝીનોના અંકોની એન્ટ્રી તથા ૪૭ પેટાંકો
સાથે ૬૪ કૃતિઓ લિંક કરવામાં આવી. . ૪ વાચકોને હસ્તપ્રતના ૧૮ ગ્રંથોના ૧૦૭૫ પૃષ્ઠોની ઝેરોક્ષ નકલ ઉપલબ્ધ કરાવવામાં આવી. આ સિવાય વાચકોને કુલ ૪૪૩ પુસ્તકો ઇશ્ય થયાં તથા પ૯૭ પુસ્તકો જમા લેવામાં આવ્યાં. ૭. વાચક સેવા અંતર્ગત પ. પૂ. સાધુ સાધ્વીજી ભગવંતો, સ્કોલરો, સંસ્થાઓ વિગેરેને ઉપલબ્ધ માહિતીના આધારે જુદી-જુદી ક્વેરીઓ તૈયાર કરી આપવામાં આવી, જેમાંથી તેઓ દ્વારા જરૂરી પુસ્તકો તથા હસ્તપ્રતોના
ડેટાનો તેઓના કાર્યમાં ઉપયોગ કરવામાં આવ્યો. ૮. સમ્રાટુ સંપ્રતિ સંગ્રહાલયની મુલાકાતે ૮૪૮ યાત્રાળુઓ પધાર્યા. ૯. આ સમયગાળામાં જાપાનના MANAHIRGUEDA, સમણી રમણીય પ્રજ્ઞા –
લાડનું યુનિવર્સિટી, અલકાબેન આર. શાહ જ્ઞાનમંદિરની મુલાકાતે આવેલ હતા. તેઓને વિશેષાવશ્યકભાષ્ય, જૈન આચાર વિચાર, દર્શન, આહાર ચર્યા વિગેરે તેમના શોધકાર્ય સંબંધી વિવિધ માહિતીઓ આપી. .
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समाचार सार
# प. पू. आचार्य भगवंत श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. उपरनी अप्रतिम श्रद्धा भावथी मीरा भायंदर महानगरपालिकाना अध्यक्ष श्री गिलबर्ट मेन्डोल्प द्वारा ता. १-५-२०१३ ना रोज पूज्य गुरुदेवश्रीनी पधरामणी थतां विशिष्ट सभानुं आयोजन करी, मीरा रोड महानगर पालिकाना नूतन भवननुं नाम आचार्य पद्मसागरसूरि स्थापित करी उद्धाटन करवामां आव्यु. 8 ता. ८-५-२०१३ना रोज गोरेगांव जवाहरनगर जैन संघना आंगणे पू. गुरुभगवंतनी
पावन निश्रामा श्री संघना नूतन उपाश्रयना उद्धाटन प्रसंगना अवसर योजायो. * पू. गुरुभगवंतश्रीना प्रशिष्यरत्न अने श्रुतमग्न पू. पं. श्री अजयसागरजी म.सा.
ना शिष्यरत्न मुनिराज श्री हर्षपद्मसागरजी म.सा.ना सळंग बीजा वर्षीतपना पारणा प्रसंगनो लाभ गोरेगांव श्री संघने मळ्यो, विशिष्ट तपना पारणा प्रसंगे श्री संघनो उत्साह पण विशेष अने अनेरो रह्यो, तो साथे साथे भावनगर निवासी मुमुक्षु श्री श्रद्धाकुमारीनी भागवती प्रव्रज्यानो प्रसंग पण श्री संघ माटे
अने उपस्थित सर्वे माटे यादगार अने अनुमोदनीय रह्यो. 8 पू. गुरुभगवंतनी पावन निश्रामा ता. २०-५-१३ना रोज मुंबईना समस्त जैनोनी
आस्था समान गोडीजी पार्श्वनाथनी २०१मी वर्षगांठनी उजवणी भावोल्लास पूर्वक उजववामां आवी. जेमां हजारो दर्शनार्थीओए महापूजानो लाभ लीधो. # ता. २१-५-१३ना रोज कोबा तीर्थना ट्रस्टीवर्य श्री प्रवीणभाई एन. शाहनी
आग्रहभरी विनंतीने स्वीकारी पू. गुरुभगवंत एमना निवासस्थाने पधार्या हता. ॐ ता. २१-५-१३ना रोज श्री चंदनबाळा - वालकेश्वर जैन संघ द्वारा पूज्यश्रीना विशिष्ट प्रवचननु आयोजन करवामां आव्यु, आ प्रवचन सत्संगमां श्रीसंघना
श्रावक-श्राविकाओए भावोल्लास पूर्वक लाभ लीधो. ॐ पू. गुरुभगवंतश्रीनी पावननिश्रामां ता. २९-५-१३ना रोज मीरा रोड खाते
बुद्धिसागरसूरि मानव सेवा केन्द्रनुं उद्घाटन करवामां आव्युं हतुं. आ मानव सेवा केन्द्रमा प. पू. गुरुभगवंतश्रीनी प्रेरणाथी गुरुभक्तोए सुंदर
योगदान आप्युं हतुं. 28 पू. गुरुभगवंतश्रीनो ता. ३०-५-१३ना रोज मुंबईथी अमदावाद तरफनो विहार
शरू थयो छे. हाल तेओश्री अमदावाद तरफ पधारी रह्या छे. चालु वर्ष २०६९नुं चातुर्मास श्री आंबावाडी जैन संघ - आंबावाडी - अमदावाद खाते नक्की करवामां आव्युं छे. पूज्यश्रीनो संघमां चातुर्मास माटेनो प्रवेश ता. १४७-१३ना रोज थवानो छे.
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とうとうり
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वि.सं. १२५१ मां प्रतिष्ठित શ્રી પાર્શ્વનાથ ભગવાનની પ્રતિમા
प वैसा ष ५२ या वासासाम कछा
म
जसवर शत्र
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जैस क्वाल
जम
दिविश्रयास कारिता
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नाश्रीयाानमा मारक्ष्सारदयावाशिदीपदालम्बी सिवायज्ञमतिजमा विमलादिविनद्वारना सामयायपणमीमगर र गिरधाराषअपारजीएसदीयासमाणीसुदरपाणी जमनिया बाक्तिरामजीदमवियरस विधबिवसिषासचिजनसही दीदाबतायाणवीशजिासरशीमुषितावश्यावकमावसना रिजीजमबियामनसुहियालालमतलहसषदारा। जीवरसालबवालीसवाबामाम माधमितिधिसविवारनामा धर्मसरनिरिसिारामणि श्रीविधिपधिगणारखीमपण नासत्रा आणावयादसममनियाबासावविमालजी श्रीवादसमस्या कवरीयां बारहवतरमालजीप साममकिव सुधागनिजमा मालमलादासनवारजी बतइजागिदिवयुरुवंग सं. काथासकतिमदा जा सादापनद पररहितजमिनवरग्राउ दाहाङनाजी एहानीय धाणानायण रचातीसप्रतिमा करिमयनाजीनामा गमा वादिक्षतविकनिधिशमावधीवंदाजश्ना मामबाण तनावकिनधारीधीसपलहाजजामानिनप्रतिमाजानह) पिलवदिमिाना निम्नवमिजी धर्ममूत्रिमरियाणधरशज। तमुनियापनमस्पंजणी सणकवलीमामउजिनधरममा बुादायमामादिश्वरस्पंजीटरिटवाझादवनमा ऊयमा अदायश्हिरमजीरियामा अतीचारयांचाइयरिदमाघ एणयांचा घरीजासूक्षसमक्ति निजमनिरामा निससवमायरवा राजी सम्पनुकारसीकममित घरसिइंशजायक जासिनायनश्नवकारसत्साविज्ञपणवीसगखविश्वकाजी सपावरसिश्यक अंगमूहदहरसादामायकनगमायुजामाव जावयासरणावरमिए ककराजाराबताजागा मुजपतीवाहराबुदाम- झापावधर्मवाणजीणि परिसमकिहम्मकंया लुग्राणानायविनाण जीरियामा टरलंहिवाई लुंगुबतकहीर मदि जीवदयामनिवदीशकादरी संकलपवारगी रनविरुद्धवीय श्राविका सरुपाइनी व्रत ग्रहण टीपर्नु प्रारंभनु चित्र BOOK-POST / PRINTED MATTER प्रकाशक आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा, गांधीनगर - 382007 फोन नं. (079) 23276204, 205, 252 फेक्स : (079) 23276249 E-mail : gyanmandir@kobatirth.org website : www.kobatirth.org For Private and Personal Use Only