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सरूपाइ बार व्रतोच्चार टीप
सारद सार दया करी देवी-ए ढाल।। श्री सिद्धारथभूपतिनंदन, त्रिसलादेवि मल्हारजी। तास पाय प्रणमी मनरंगिइ, आणी हरख अपारजी ।।१।। सहीय समाणी सुंदर प्राणी, जे मनि समकित राखइंजी। इहभवि-परभवि वंछित सिवसुख, ते भविजन सही दाखइजी ।।२।। वीर जिणेसर श्रीमुखि भाखइ, श्रावकना व्रत बारजी। जे भवियण मनसुद्धिइ पालइ, ते लहइ सुख उदारजी ।।३।। सोलछइतालीस चैत्रमासे, अष्टमि तिथि रविवारजी। श्रीधर्ममूरतिसूरि सिरमणि', श्रीविधिपखि गणधारजी ।।४।। तास तणा उपदेस सुणी मनि, आणी भाव विसालजी। श्रीवीतराग पाईई ऊचरीयां, बारइ व्रत रसालजी ।।५।। समकित सुद्ध धरो निज मनमा, जेम लहो भवपारजी। छतइ जोगि देव-गुरु वांदीसुं. कायासकति उदारजी ।।६।।
समकित सुद्ध धरो... दोष अढार रहित जे जिनवर, आठ प्रतीहार जुत्ताजी। पणतीस वाणीना गुण चोतीस अतिसे करि संपत्तांजी ।७।।
समकित सुद्ध धरो... एहवा अरिहंत चिहुं निखेखिई, भाव धरी वंदीजइजी। नाम-द्रव्य-ठवणानई भाव, जिन आरी(रा)धी सुख लहीजइजी ।।८।।
समकित सुद्ध धरो... जिनप्रतिमा जो नहीं मिलइ तु, दिसि जोईनइं स्तवसिउंजी। धर्ममूर्तिसूरि आण धरइ जे, ते मुनि पाइ नमस्युंजी ।।९।।
समकित सुद्ध धरो... केवली भाखिउ जिन धरम साचु, हीयडामांहिइं धरस्युंजी। हरिहर ब्रह्मा देव न मानु, कुगुरु सदा परिहरस्युंजी ।।१०।।
समकित सुद्ध धरो...
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