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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्राविका गोरी बारव्रत इच्छा परिमाण टीप ।। पंडित श्री श्रीगुणविजयगुरुभ्यो नमः ।। दूहा। श्रीजिनचरणकमल नमी, समरी सरसति देवि । समकितमूल बार वरतनी', टीप लखुं छु हेव ||१|| अरिहंत देव सुसाधु गुरु, केवलिभाषित धर्म। ए आराधुं परिहरु, कुगुरु कुदेव कुधर्म ।।२।। एक जिनपूजा वरसनी, एक अंगलूहणुं सार | देव-गुरुवांदी सूयतुं, योगि मिलि निरधार ||३।। चोखा सेर एक वरसना, दिनप्रति बइ पचखाण। जपमाली त्रीस मासनी, गुणवी' धरिय विनांण ||४|| अमार सहित सात खेत्रमां, वरसि पाउलूं एक । संकादिक समकित तणी, अतिचार करुं छेक ।।५।। || ढाल ।। हवई पहिलइ व्रत सब जीव, संकल्पी न मारुं अतीव । आरंभिइ जयणा जाणो, इम जीव जतन मन आणो ||६|| बीजइ जूठां मोटा पंच, बोलंता हुइ अधसंच। कन्या गो भूमि न भाऱ्या, थापिण धणी योगि न राखुं ||७|| कूडीसाख स्वजननी धरमिं, जयणा मुझनइं घणि(णी) मरमिं| मोटी जे कूडीमाप, ते न भरुं निज-गुरुशाख ।।८।। त्रीजुं व्रत निश्चई पालुं, चोरदंडनी चोरी टालुं । दाणचोरी मुदप्फरी-मांन, एक वरसि चालीस जांण ।।९।। पड्या वीसर्या लाघा जे द्रव्य, धणी योग जाणी आलु सर्व। चोथु व्रत धरि(री) चतुराई, पालुं कायाई द्रढ थाई ।।१०।। For Private and Personal Use Only
SR No.525279
Book TitleShrutsagar Ank 2013 06 029
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2013
Total Pages84
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size2 MB
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