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श्राविका गोरी बारव्रत इच्छा परिमाण टीप
।। पंडित श्री श्रीगुणविजयगुरुभ्यो नमः ।।
दूहा। श्रीजिनचरणकमल नमी, समरी सरसति देवि । समकितमूल बार वरतनी', टीप लखुं छु हेव ||१|| अरिहंत देव सुसाधु गुरु, केवलिभाषित धर्म। ए आराधुं परिहरु, कुगुरु कुदेव कुधर्म ।।२।। एक जिनपूजा वरसनी, एक अंगलूहणुं सार | देव-गुरुवांदी सूयतुं, योगि मिलि निरधार ||३।। चोखा सेर एक वरसना, दिनप्रति बइ पचखाण। जपमाली त्रीस मासनी, गुणवी' धरिय विनांण ||४|| अमार सहित सात खेत्रमां, वरसि पाउलूं एक । संकादिक समकित तणी, अतिचार करुं छेक ।।५।।
|| ढाल ।। हवई पहिलइ व्रत सब जीव, संकल्पी न मारुं अतीव । आरंभिइ जयणा जाणो, इम जीव जतन मन आणो ||६|| बीजइ जूठां मोटा पंच, बोलंता हुइ अधसंच। कन्या गो भूमि न भाऱ्या, थापिण धणी योगि न राखुं ||७|| कूडीसाख स्वजननी धरमिं, जयणा मुझनइं घणि(णी) मरमिं| मोटी जे कूडीमाप, ते न भरुं निज-गुरुशाख ।।८।। त्रीजुं व्रत निश्चई पालुं, चोरदंडनी चोरी टालुं । दाणचोरी मुदप्फरी-मांन, एक वरसि चालीस जांण ।।९।। पड्या वीसर्या लाघा जे द्रव्य, धणी योग जाणी आलु सर्व। चोथु व्रत धरि(री) चतुराई, पालुं कायाई द्रढ थाई ।।१०।।
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