________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सम्यक्त्वमूल द्वादश व्रत सज्झाय
मुनिश्री सुयशचंद्रवि. वि. सं. १६८३ना महा सुद १३ना शुक्रवारे आ व्रत टीपनी रचना थई छे. बाइया श्राविकानी आ टीप छे. आ टीप कृतिनी रचना मुक्तिसागर उपाध्याय (राजसागरसूरि)ना शिष्य साधुकवि गुणसागरना शिष्यए करी छे. व्रत ग्रहणना स्थळ विशे कोई चोक्कस माहिती मळी नथी.
बार व्रत टीपमां कविए बाइया श्राविकानी वात करता नोंध्यु छे के' व्रतनुं पालन करतां मननी आशा फळी, व्रत पालननो मनोरथ पूर्ण थयो छे. त्रोटक, दुहा अने देशीना छंदोबंधमां रचायेली आ कृति पोतानी जुदी छाप उभी करे छे. कुल ७२ कडीमां रचायेली आ कृति बाइया श्राविकानी व्रताराधनानी वात विस्तारथी करे छे. कृतिनी छेल्ली केटलीक कडीओमां रचनाकारे उतावळ दाखवी होय एवू अनुभवाय छे. प्रतनुं प्रथम पत्र न होवाथी सातमी कडीना चोथा चरणथी ज कृति प्रकाशित थई छे. कृतिनी कुल ६५ कडीओ अत्रे प्रकाशित करी छे. आम तो सामान्यथी आ प्रकारनी कृतिओमां मळती नोंध अनुसार प्रारंभनी कडीओमा मंगलाचरण, बार व्रत आपनार गुरुभगवंतनुं नाम, अने श्राविकानुं नाम विगेरे होवानी शक्यता कल्पी शकाय.
बाइया श्राविकाए उच्चरेला व्रत ग्रहणंनी नोंध ए ज कृति रचनानो उद्देश होवा छतांय धर्मोपदेशना तत्त्वने पण कविए कृतिना माध्यमे वणी आप्युं छे. पोतानी शक्ति, स्थिति अने परिणाममुं संतुलन जाळवी श्राविकाए संवत्सरी, चौमासी चौदश, अने चौदशना उपवास करवानुं धार्यु छ. तो चोथा व्रत ग्रहण अवसरे ब्रह्मचर्यपालनना आदर्श पात्र सती सीता अने शेठ सुदर्शन, ब्राह्मीसुंदरी अने चंदनबाळाने पण मानसपटलमा उपस्थित करीने धन्यता अनुभवी छे.
पांचमा व्रत ग्रहण समये कवि एक सरस वात रजू करे छे, व्रत स्खलनमां सौथी मोटु व्यवधान छे चंचलपणुं, मननी चंचळता. एटले कवि कहे छे के' मननी चंचळता दूर करी, व्रतनुं पालन करवू जेथी व्रत अखंडित रहे. त्रीजा व्रत ग्रहण दरम्यान वरस दरम्यान सो महोर प्रमाण करवेरानी छुट राखी व्यवहार प्रधान जीवनमां पण धर्मने अविस्मरणीय भावे राखबानी दृढता छती थाय छे. तो साथे. साथे व्रतपालनमां पण आवश्यक अपवाद अने कारण प्रसंगनी जयणा राखी व्रतने अखंड रीते साचवी शकाय छे.
For Private and Personal Use Only