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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जून - २०१३ आ पांच व्रतोना विकास माटे त्रण गुण व्रतो छ : (६) दिशा परिमाण व्रत (७) भोगोपभोग परिमाण व्रत अने (८) अनर्थ दंड विरमण व्रत. आ व्रतोना पालनमा दृढता आवे ते माटे चार शिक्षा व्रतो छ : (९) सामायिक (१०) देशावगासिक (११) पौषध अने (१२) अतिथि संविभाग व्रत. आ बार व्रतो जीवनने उर्ध्वगामी बनाववा माटेनां पगथियां छे, तेना पालनथी आत्मोन्नति निश्चित बने छे. एक साथे बार व्रतो अंगिकार करवां ए उत्तम छे, छतां कोई एक साथे लेवाना बदले पोतनी शक्ति अनुसार व्रत स्वीकारी, क्रमशः उत्तरोत्तर बार व्रतनो स्वीकार करी शके छे. व्रत धारण करवाथी चारित्रनो विकास तो थाय ज छे, साथे-साथे अविरतिमां होवाथी निरर्थक आश्रवोथी बची शकाय अने एटला अंशे कर्मनो बंध टळे, सम्यक्त्व एटले शुं? बार व्रतो ग्रहण करतां पहेला सम्यक्त्व एटले श्रद्धा खास जरूरी छे. श्रद्धा न होय तो बाकीना व्रतो एकडा वगरनां मींडां जेवां छे, माटे बार व्रत के कोई पण व्रत साथे सम्यक्त्व उच्चरवानुं छे. सम्यक्त्व एटले श्रावकधर्मरूपी महान ईमारतनो पायर्या छे. सम्यक्त्व वगरनी कोईपण धर्मक्रिया अचिंत्य फल आपवा समर्थ बनती नथी. तेथी ज पू. महोपाध्याय श्री यशोविजयजी महाराजए कह्यु छ के, 'दानादिक किरिया नवि दीए, समकित विण शिवशर्म' आथी भवभीरू आत्माए सौ प्रथम सम्यकत्व अंगीकार करी, व्रत स्वीकार अने व्रत परिपालनमा जागृत बनवू जोईए. सम्यक्त्वनुं मूळ : सुदेव,सुगुरू अने सुधर्म उपर श्रद्धा. १. सुदेव : रागद्वेषादि अढार दोषो रहित अने १२ गुणो सहित वीतराग अरिहंत परमात्मा तेमज आठेय कर्मोनो नाश करनार सिद्ध भगवंतो सुदेव स्वरूप छे. २. सुगुरू : कंचन अने कामिनीना त्यागी, पंच महाव्रतधारी, षट्काय जीवोना रक्षक, सत्तावीश गुणोने धारण करनार वीतराग प्रभुनी आज्ञामां विचरनार साधु ते सुगुरु छे. ३. सुधर्म : सर्वज्ञ भाषित विनय मूलक अहिंसा, संयम अने तप रूप धर्म ते सत्य सुधर्म छे. For Private and Personal Use Only
SR No.525279
Book TitleShrutsagar Ank 2013 06 029
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2013
Total Pages84
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size2 MB
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