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श्रुतसागर • २९
ढाल।। अढीआनी।। आठमुं व्रत अति सार, अनरथदंड परिहार। सतीय न[ने] जोइए, पाप ननि] धोइ ए ||५३ ।। रोद्रध्याननी वात, नगर दाह गाम घात। किमई न कीजीइ ए, वयर न लीजीइं ए ||५४।। बलद समारी पाप, नाक फोडी संताप! ते हुं नवि करूं ए, बिलाइं नवि धरूं ए ||५६ ।। यंत्र हल हथीआर, मूसल छरी तरवार । किहनई नापीइं ए, पाप न थापीई ए ।।५७।। उखल घरटी जेह, आगि प्रमुख वली तेह। न आपुं इम कहुं ए, कुटंबजि लहुं ए 11५८ ।।* पापतणो उपदेश, ते टालुं लवलेश। घरकाजि सही ए, जयणा कही ए । ५९।। नाटिक भवाईआ मोर, बाजीगर करई बरइ बकोर६ | उदेरी न जोइए, सरोवर न झीलीए 11६०।। राजकथादिक च्यार, ते जयणा निरधार | पातिक मोटां नहीं ए, नानानी जयणा सही ए ||६१।। अंघोलनहा नही पच्चखाण, वली पगधोअ जाण । नीलोतरी मण वीस सही ए. मोकली दिनइ सही ए ||६२।। सजन-विवाह मनरंग, वली छ पर पलंग। हीडोला खाटनी ए, जयणा वली सही ए ६३|| देव-गुरुतणी तेह, आसातणा वली तेह। जांणी न कीजीइ ए, सारंग गीत लीजीइं ए ||६४।। एणि व्रति भेद अनेक, पालो धरीय विवेक।
जिनजी भाखई सदा ए, पामो सुखसंपदा ए |६५।। * आदा प्रकारनी यंत्र सामग्री कोइ मांगवा आवे त्यारे कोइ कुटुंबी लइ गया छे एम कहुं.
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