SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५ श्रुतसागर . २९ धन धन ते भवीयण सही, श्रावकी व(वि)रति उदार रे। मनसुद्धिई जे पालसिइ ते, लहइसिइ भवपार रे ||५१।। वेकरीउ बल नागली, चीणो मरटप्रधान रे। वाल मसूरिनई नानूई, कांग तिल तू अरिधान रे ।।५२ ।। मेथी वेसणनई सूआ, राईअ गोखरु भाति रे। चिरहालीनई आसेलीउ, अजमो जीरुं जाति रे ।।५३ ।। एतलां धान उवरिइं जि के, मुझ रहइ सवि पचखाण रे। युध दुरभिख्य मूंकी करी, मिइं कीधा पचखाण रे ।।५४ ।। नीलवणिनी व्रति कीजीइ, सांगरी कइर उदार रे । कालींग जाति नीलाविणा, चीभडां चीभडी सार रे ।।५५।। आंबा मतीरां" त्तुसडी, खडबूजा लीबूंआ चंग रे।। केला पुंहुक गहुं झारि तो, नालीअर मनरंगि रे ।।५६ ।। चोला मुंग गोआरनी, वाल तणी फली सार रे। भाजी सरिसव अनि सूआ, तांजलजु उदार रे ।।५७।। टीडसां डोडी सही कही, परबती राई अपार रे | लीजीइ वली कोठीबडां, नीलां मीरी सफार रे 11५८।। दाडिम बोर बीजोरडां, नीलां करमदां जाति रे। लीजीइ नीलां आमला, टीडूरां तणी भाति रे ।।५९ ।। ए मोकलां करणां मुंहनि, नीली सोपारी द्राख रे। कोहला फालसा सेलडी, वरसोलां सीघोडा राखि रे ||६०।। डांडां जाति मुज मोकली, उलीया गल्लकां पान रे। दांतण आउलि बोरडी, गोरडी खइर तुं मान रे ।।६१|| नीलां ते सूका वली मुज, रहइ मोकला होइ रे। उसह काजि नीलवणि जि के, नीम नहीं मुझ सोइ रे । ६२ ।। For Private and Personal Use Only
SR No.525279
Book TitleShrutsagar Ank 2013 06 029
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2013
Total Pages84
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy