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जून - २०१३
वरसिं पोसह करवा बार, मुगति तणुं ए साचुं बार। संविभाग वरसिं बि सही, संविभाग व्रत मिं सद्दही १३६ ।। बारइ व्रत सूधां पालीइ, जाव-जीव ते संभालीइ। नियम भंगि नीवी दंड, करतां लाभइ सुख अखंड ।।३७ ।।
1/कलशा
इम सुगुरु वाणी चित्ति आणी, लाभ जाणीये धरइ। व्रत बार भार उदार रागि, सार समकित उच्चरइ। श्री विजयसेनसूरिंद सुंदर, पाय सेवीये करइ। सूरविजय कहइ भलइ, भावई, तेह शिवरमणी वरइ ।।३८।।
।। इति श्री श्रावक बारव्रत सम्झायः।। । श्राविका पांखडी कृते अलेखि ॥श्री।।
शब्दार्थ १. ढोउं = धरूं
१५. संधूकवा = प्रगटाववा २. काणि = संकोच
१६. गॅy = गुंथर्बु ३. ढबूओ = रूपियानो एक प्रकार १७. सालणुं = कचुंबर, अथाणु ४. महिमुंदी = रूपियानो एक प्रकार १८. नीलवणि = लीलोतरी ५. दोकडा = रूपियानो एक प्रकार १९. झालर = वालोर ६. कंचन = सुवर्ण
२०. चुलाफली = चोळी ७. हाट = दुकान
२१. झारि = जार ८. धान = धान्य
२२. कलथ = कलथी ९. कूटि = भंगार
२३. शफरी = मोटुं वहाण १०. छाली = बकरी
२४. बेढां = बेडां ११. जवहर = जवेरात
२५. सावढू = रेशमी जरीयांन वस्त्र १२. साठि =
२६. घरटी = घंटी १३. धरवाखरु = घरवखरी
२७. ऊखल = खांडणियो १४. वाणही = मोजडी
२८. मूसल = सांबेलु
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