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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १४ www.kobatirth.org जून २०१३ पुद्गलप्रक्षेप : कांकरो वगेरे नांखी धारेल हद बहार रहेलाओने पोते अहीं छे वगेरे जणाववुं ते. (99) पौषध शिक्षाव्रत : व्याख्या : धर्मने पुष्ट करे ते पौषध कहेवाय आठ प्रहर अथवा चार प्रहरनी विरतिनी साधना एटले पौषध ! एक दिवस संपूर्णरूपे सांसारिक इच्छाओं, सर्व प्रकारनो आहार, अब्रह्म सेवन विगेरेनो त्याग करवानुं सूचववामां आव्युं छे. बीजी बाजु आत्मसाधनानुं लक्ष्य पूर्वक विरतिनी आराधनामां होवु ए पौषध कहेवाय छे. पौषधना मुख्य चार प्रकारो छे. १. आहार पौषध, २. शरीर सत्कार पौषध, ३. अव्यापार पौषध, ४. ब्रह्मचर्य पौषध. पौषधना छ अतिचारो जाणी दूर करवा जेवा छे. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अतिचार अप्रतिलेखित शय्यासंथार अप्रमार्जित - दुष्प्रमार्जित अप्रति- दुष्प्रति उच्चार अप्रमा- दुष्प्रमा-उच्चार पासवण भूमि पौषधविधि विपरीतता : शय्या = बेसवा - उठवा - सूवानी भूमिनी बराबर पडिलेहणा न करवी ते... : संथारो पूंजवो, प्रमार्जवो नहि अथवा संथारो बराबर पूंजवो, प्रमार्जवो नहि ते, : स्थंडिल मात्रानी जग्या बराबर पडिलेहवी नहि ते... स्थंडिल मात्रानी जग्या प्रमार्जवी नहि अथाव तो बराबर प्रमार्जवी नहि ते... : पौषध समयसर न लेवो अने समय करतां वहेलो पाळवो ते. (१२) अतिथिसंविभाग शिक्षाव्रत : विधि : आठ प्रहरनो पौषध चोविहार उपवास साथे करवो, पारणे ठाम चोविहार एकासणुं करवुं अने एकासणामां पू. साधु-साध्वीजी भगवंतने वहोरावी तेमणे वहोरेला होय ते ज द्रव्य एकासणामां वापरवां. क्वचित पू. साधु-साध्वीजी मनी प्राप्ति न थाय तो साधर्मिक भाई बहेननी भक्ति करी तेमणे वापरेला द्रव्य वापरीने एकासणुं करवु पंच महाव्रतधारी मुनिराज, पौषध व्रतधारी, देश विरतिधर तथा मार्गानुसारी For Private and Personal Use Only
SR No.525279
Book TitleShrutsagar Ank 2013 06 029
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2013
Total Pages84
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size2 MB
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