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संपादकीय
ज्ञानमंदिरनी एक विशिष्ट फलश्रुति रूपे श्रुतसागर पत्रिका दर मासे प्रकाशित थई रही छे. केटलाक समयथी आ ज पत्रिकानो दर त्रीजो अंक विशिष्ट विषयना समुच्चय रूपे प्रकाशित थई रह्यो छे. आ ज उपक्रमनो पहेलो अंक मार्च-२०१३मां प्रकाशित थयो, जेमां सागरचंद्र रास, अरणिक रास, तेमज अन्य विशिष्ट लेखोनुं प्रकाशन थयु. आ अंक पण ए ज कुळनो बीजो अंक छे. आ अंकमां एक विषयानुसारी कृतिओनुं प्रकाशन करवामां आव्युं छे. पूर्वकालीन महापुरुषोए स्वीकारेल बार व्रत टीपनी कृतिओना समुच्चय रूपे आ अंक प्रकाशित कर्यो छे.
आ अंक आपना हाथमां विशिष्ट श्रावक-श्राविकानी जीवन चेतनाने लईने आव्यो छे, तो श्रावकोए गुरुभगवंतनी प्रेरणाथी दृढप्रतिज्ञ थई ग्रहण करेल व्रत स्वीकारनो रोमांच अहीं जोवा मळे छे. श्रावकोना परिणाम अने एमनी व्रत पालननी निष्ठानो परिचय आ व्रतग्रहणनी कृतिओमांथी मळे छे. मापवानी वृत्तिथी सदंतर पर थई, पामवानी वृत्तिमां ज चित्तने परोवनार भव्यात्माओना परिणाम अने पुरूषार्थनी आ यशोगाथा छे.
पूर्वकाळमां श्रावकोए स्वीकारेल व्रतोनी टीप ए आ अंकनो मुख्य विषय रह्यो छे, तो व्यवहार प्रधान जीवनमां व्रत ग्रहण द्वारा केंद्र स्थाने धर्म स्थापनानी वात ए आ व्रत टीपोनो मुख्य विषय रह्यो छे. व्रत ग्रहणना विषयनी साथे साथे प्राचीन परंपरागत जीवन प्रणालीनो मळतो बोध आ टीप कृतिओनुं महत्त्व- पासुं छे.
व्रत टीपनी कुल ४ कृतिओ आ अंकमां प्रकाशित करी छे. आ व्रत टीपोनी विशेषता ए छे, के' आवा प्रकारनी कृतिओनी बीजी नकल मळवी मुश्केल होय छे, तेमज आ कृतिओ व्रत ग्रहण करनारनी हयातीना समयनी ज होवानी संभावना वधु छे, तेथी कृतिकार अने व्रत ग्रहण करनार श्रावक के श्राविकाना समयनी केटलीक विशेषतानो स्पष्ट परिचय पण मळी रहे छे. आ कृतिओनी रचना सामान्यथी व्रत ग्रहण करनार पोतानी स्मृत्ति माटे करता होय छे, के कोई गुरुभगवंत पासे आ प्रकारनी पद्यात्मक के गद्यात्मक नोंध बनावता होय छे. मूळमां आ कृतिनी रचना पाछळनो उद्देश तो एटलो ज होय छे, के व्रत ग्रहण करनार व्रत प्रत्येनी पोतानी जागृति अकबंध राखे अने बने एटली व्रतनी आराधना वधु सारी
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