Book Title: Shrutsagar Ank 2013 06 029
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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श्री सम्यक्त्वमूल द्वादश व्रत सज्झाय
पईसा' आपुं मनि रुली । *
थूल दस आसायण कही, मूल गभारइं टालुं सही ||७||
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खादिम भोजन पाणी जाणि वाहणी मिहुणनुं पचखांण । थूक सलेम सुवुं नही, लघुनीति जुवटू' ते सही ||८||
राय गण बलाभिओग, देव गुरुनिग्रहनो योग । वित्तीकंतार' छ आगारइं करी, समकित व्रत पालुं मनि धरी । ९ ।
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संवत्सर चउदसि चउमास, देहशक्तिं करवो उपवास । समकितनुं कारणी होइ, हवई भणसुं व्रत दस- दोई ||१०||
|| मेहं सेवीजी देवी सरसति तणा पाय-ए ढाल //
व्रत पहिलइंजी थूल, जीव सवि पालवा
कृमि वालादिकजी' विण, अपराधई टालवा ! व्रत बीजुंजी थूल, मृषा हुं परिहरु । कन्या गो भूमिजी थापणि, मोसो नवि करुं । ।
नवि भरुं कूडी साखि केहनी" न भाखुं ते हुं भली । ए मोटा पांच जूठां जांणीनई टालुं वली !
अवर असत्य जे सूखिम" तेहनी जयणा वरुं ।
बीजुं अणुव्रत सच्चर पालुं दोष टालुं सुख करुं ||११||
व्रत त्रीजइंजी राजदंड चोरी नवि करुं । अणदीधाजी वस्तु पीआरी नवि हरु । पडी - वस्तुजी लाभई मुझनई जे वली । धणी" मिलइंजी पाछी आपुं ते भली
ते आपुं अरध धरम थानकि, निधान इम जाणी सही ।
वाट गांठिनइ खात्र* चोरी, पाप तोल कूडां नही ।
प्रथम पत्र नथी.
चोरी करवा माटे घरमा प्रवेशवा मीतमां पाडवामां आवतुं कांणुं.
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