Book Title: Shrutsagar Ank 2013 06 029
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 34
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३२ www.kobatirth.org जिण जणणी जे ती हुई, ते सवि सील विसाल सखीजी । दवदंतीअ प्रभावती, चंपकमाल दयाल सखीजी ||३०|| भूत-प्रतनई साकिणी, वाघ सिंघलय" दूरि सखीजी । विषधर तु भय तस नहीं, हुइ आणंदपूर सखीजी ||३१|| Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सवि हुइ व्रतमांहि मूलगुं, सील समु नहीं कोइ सखीजी । सुजस घणो जगि पामीइ, बहु सोभागी सोइ सखीजी ।। ३२ । । हिवइ पंचभइ व्रति, परिग्रहनो परिमाण | क्षेत्र दोइ अनिइ, पराजीयां बार वखाणि । घर खडकी वाडा, सहित छइ ते होइय | हाट बेहु ए सारु, भाडइ पोतिसुइ ||३५ ३४ ३५ सांभलि रे प्राणी, साचो धर्म (म) विचार । मनवंछत सिब(व) सुख, पामो जिम उदार. कुट मण दस ज धारूं, रूप्प मुद्रा दोइ सत । वली सोनू रूपू तोला, त्रणसहिहुत्ततरूउं" । शीसूत्राबू पीतल, मली प्रत्येकिइ बे सेर ज राखु, साचो धरि विवेक || ३६ || जून २०१३ सील सदा भवीयण... हिवइ गायस वेली, वारू च्यार उदार । अस्व ऊंट कुं धरीइ, महिषी च्यार सफार । ३७ नारद जे मुगतिइं गया, ते तु सील प्रमाण सखीजी । दुरिततिमिर दुरिइ करइ, उदयो जिम जगि भाण" सखीजी ।। ३३ ।। ३१ सील सदा भवीयण... वाड नवइ संभारीइ, आणी हियडइ न्यान सखीजी । इणी परि ए व्रत पालता, लहीइ अति घण मान सखीजी ||३४|| For Private and Personal Use Only सील सदा भवीयण... || माई धिन सपन तु ध. - ए ढाल // - सील सदा भवीयण... सील सदा भवीयण... सांभलि रे प्राणी...

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