Book Title: Shrutsagar Ank 2013 06 029
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 38
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // चोपाई ।। गंध आणाना कहइस्युं बोल, सूंठि मिरी हरडइ अमोल । हींग पीपिर किरीयातुं सार, खारकि टोपरां अतिहि सफार ||६३।। रतब खलहलां कहियां भूर, गोल खांड साकर खजूर । आसंधि केरु नहीं परिहार, पीपलीमूल हलद जव खार ||६४ ।। जून २०१३ गंध आणइ एतई सारीइ, करि नामनइ आप तरीइ । गोली उसड काजिइं करी, आसव" काढउ" बूकी खरी ||६५|| गोली बूकी दिनि पा सेर, काथकि” द्वारिइं तु इक सेर । आहार ऋणि वार दिन प्रति करूं, सूखडी वली वली आचरुं ||६६ || द्राख तथा सूकी आबिली, कडा वीगइनी सख्य भली । मांडी मुरकी अति हिं गली, खाजा फीणानई सांकली ॥ ६७ ॥ ॥ खरं मांहे रे समी गुलपापडी, तिलवटपूडा तली पापडी । जलेबीनइं तिलपापडी, वडां लापेसीनई तली वडी || ६८ ॥ ॐ४ सूंहाली फाफडा दहीथरा, गांठीआ मोतीचूर घेवरां । खांड साकरना हुइ तेह, तलिउ गूंदनइं ठामणा जेह ।। ६९ ।। ||ढाल || गुंदवडां लाडूंनी जाति, इम अनेक तल्यानी भाति । मुझ कहइता वीसरीआं जेह, पांच अधिका लेस्युंजी तेह ||७० || कर्मादान रे बोलुं भावस्युं, अनरथ तु परिहार । अरथिई जयणा बोहुली कीजीइ, आगमि अधिक विचार ||७१ ।। भवीण लाघो नरभव दोहिलो, नही लाभइ बार वारि । एहवुं जाणी मनसघि आदरु, जिनधर्म एकज सार ।।७२।। (आंचली) भवीयण लाघो नरभव... For Private and Personal Use Only अंगालकरम रे जे छइ मोकलुं, सोनुं रुपुं सहु धात | वरसिंह एक मण अधिक न गालीइं, कुंभकारनी कहुं वात 1|७३ ।। भवीयण लाधो नरभव...

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