Book Title: Shrutsagar Ank 2013 06 029
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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श्रुतसागर - २९
हांडल-कुंडल सघलां मली, करी कारी त्रणि ना लेसि। वरसिई छ सहिस नलीआ लीजीइ, दिनि चूल्हा च्यार कहसि ए |७४।।
भवीयण लाधो नरभव... तापणी सगडी रे कारणि करूं, लाहाला पाडावा आणि ए। कामण खांडण पीसण भरडणइ, सेर त्रीससे कण जाणि ||७५।।
भवीयण लाधो नरभव... मुलq बोलवू रे मीठु देउ, तां दिन प्रति माणा दोइ। वीवाह कारणि मांडी सम, नही माथा गूथण छ होइ ।७६ ।।
भवीयण लाधो नरभव... साबू कंकोडी रे साजीखारस्युं, एक मण वरसिक रे। सिकेई छ मीटु एक वरस प्रतिइं, घर काजि तेह धारसिं । ७७।।
भवीयण लाधो नरभव... व्याज वोहोरुं रे दोसो केरडो, वाहणनो व्यापार। बे लाख केरु ए सब कीजीइ, सकट भाडु परिहार |७८ ।।
भवीयण लाधो नरभव... गाडूं वहइल रे पोठी नावडु, डोली पालखी सार। ऊंट ते मुंकी बा(बी)जां छांडीइ, करमादान परिहार ||७९।।
भवीयण लाधो नरभव... आठमइ क्रोध धणो नवि आणीइ, नवि करीइ मुनि रोस। परनइं सावध वचन न बोलीइ, आरति रुद्रध्यन न सोस ।।८।।
भवीयण लाधो नरभव... ढाल दिलानी।। नोमिइ सामायक कीजीइ, आणी मनि उल्हासि । मासिइं पांच सही सदा, शकतिइं अधिकी आस ।।८१।। सुंदर भाविइं पालीइ, लही वेलासी च्यार। शिख्याव्रत सेवतां लहीइ भव पार. दसमुं देसावीगासिक वरसिइ पंच करेसि। पोसहव्रत इग्यारमु, वरसिंइं एक धरेसि 11८२|| सुंदर भाविई पालीइ...
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