Book Title: Shrutsagar Ank 2013 06 029
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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३३
श्रुतसागर - २९
बे वली धारू, वृषभ जोडि अतिसार | बे छाली सवेला, धरीइ हिविं विस्तार ।।३७।। सांभलि रे प्राणी... जठहर दोसे रज, घरस प्रतिइं वीस वेस। सूत्र हीर सणीया, कांचली वीस धारसि। वस्त्र पंच वर्ग गज, शत पंचमिइ राखि । कण" सूडा पंच ज, दास-दासी दस दाखि ||३८ ।। सांभलि रे प्राणी... धृत तेल अनइ गुल, साकर खांड वशेस। ए सवि प्रत्येकइ, वीस मण राखेस। . दोइ विहल ज गाडा, धरीइं अति हि विशाल | बे लाख तणां, करीयाणा अधिक रसाल 1|३९। सांभलि रे प्राणी... वली रू मण च्यालीस राखी जइ सविचार | धणी पुत्र परिग्रह तेहनो नही परिहार। व्रत पंचम ए हुं सवाविसो राखीसि। हिवइ सुंदर छठउं दिसि व्रत सुभ भाखीसि ।।४०।। सांभलि रे प्राणी... थलवटि चिहु दसि गाऊ सित पंच हुइ । ऊचू अट” जोयण नीचूं अध कोस जोय। हिवइ सफर चडेवा नीम मुझसुं रंग। देव-गुरनी यात्रा जाता नही मुझ भंग ||४१11 सांभलि रे प्राणी...
आव्यु आत्यु रे आत्यु नलहर चिहुं परिख । ढाल।। सत्तमव्रत रे भोगपभोग विचारीइ। प्रतिदिवसिई रे सचित जाति दस सारीइ। द्रव्य च्यालीस रे दिवस प्रति वली कीजीइ। हिवइ वारू रे विगइ पंच ते लीजीइ ।।४२।।
टक। पिहरीइ पगरखां च्यार जोडा, तंबोल मुखवास सेर ए। दिन प्रतिइं वेस ज च्यार पहिरू, पंचवन फूल एकसेर ए। दिन प्रतिइं बेसवा त्रीस आसन, दससियन वलेपन अति भला। प्रतिदिवसव गह(म)नं छ दिसि ए, गाऊ वीस मोकलां ।।४३||
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