Book Title: Shrutsagar Ank 2013 06 029
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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श्रुतसागर - २९
कन्या गो भूमी अलीक रे, नासावि हार कूडसाखीक। आप काजिइं सजन काजि रे, बोलीसइ ए धर्मकाजि ।।२१।। पर काजिइं कहइवा नीम" रे, ए पालुं जीवित सीम। एह व्रत सवाविसु राखुं रे, निज मनि संवेगिई दाखु रे ।।२२।। हिवइ त्रीजइ व्रति परिहार रे, जेणइ राजविरोध विचार । ते मुजइं नीम लेवा रे, जो धणी अमिलइ तु देवा ।।२३।। जु न मिलइ तु ते वस्त रे, दीजइ धर्मठामि समस्त। एह व्रत सवावसु पालुं रे, एहना पांच अतीचार टालूं ||२४ ।।
सेत्तुंज केरी वाटडी-ए ढाल।। हिवइ चोथं व्रत बोलीइ, ब्रह्मचर्य व्रत उदार सखीजी। दुःकृत सवि पूरिइं करई, सिद्धिवधू उरि हार सखीजी ।।२५।। सील सदा भवीयण धरो, जेहथी सिवसुख ठाण सखीजी। मनवंछित फल पामीइ, आणो भाव विनाण सखीजी. (आंचली) देव-पसू(शु) मेहुण" नही, दुविध त्रिविध पचखाण सखीजी। माणसनो वेरु" कहुं, स्वपुरुषसंतोष जाणि(ण) सखीजी ।।२६ ।।
सील सदा भवीयण... मासे च्छ दिन आखडी" ए, मनमांहिइ राखि सखीजी! अवर पुरुष सवि परिहरु, एकविध एकविह दाखी सखीजी ।।२७।।
सील सदा भवीयण... सेठ सुदरसण जाणीइं, ब्राह्मी-सुंदरी होइ सखीजी। सीता-सुलसा-द्रुपदी, चंदनबाला जोइ सखीजी ।।२८ ।।
. सील सदा भवीयण... पुफ्फचूलानइं चिल्लणा, सुभद्रादेवी सार सखीजी। जिठ्ठ-सुजिठ्ठा मृगावती, पउमावइ देवि उदार सखीजी ।।२९ ।।
सील सदा भवीयण...
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