Book Title: Shrutsagar Ank 2013 06 029
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 32
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अतीचार पांचइ परिहरीइ, भूषण पांच धरीइजी । सुधुं समकित निज मनि राखो, जिम भवसायर तरीइजी ||११|| पचखाण नुकारसी करुं नित वरसिहं पूजा एकजी । सिज्झायनइ नवकार सभाविइं, पणवीस गणुं सुविवेकजी ||१२|| समकित सुद्ध धरो.... वरसिइं एक अंगलूहणुं देहरइ, साहामी एकभगतावुंजी । जावजीव चंद्रूउ” आभरण", वरसिहं एक करावुंजी ||१३|| जून २०१३ समकित सुद्ध धरो.... छत जोगि मुहपती वोहरावं, दोकडा पांच धर्मठाणजी। इणि परि समकित सूधुं पालुं, आणी भाव विनाणजी ||१४|| समकित सुद्ध धरो.... ||ढाल || पहिलं अणुव्रत कहीइ रे, सखि जीवदया मनि वहीइ । ऊदेरी” संकल्प आणी रे, नवि दूहवई त्रस प्राणी ||१५|| अपराध विना जे हणीइ रे, आरंभिदं वयणा भणीइ । पुढवी पाणी तेऊवाय रे, अनइं वली वनस्पतीकाय || १६ | समकित सुद्ध धरो... For Private and Personal Use Only तेह दिन जेहनो आरंभ रे, तेह दिन तेहनो आरंभ | मुज आण रहइ जे जीव रे, सीख दिउ तेहनइं सदीव ।।१७।। १७ - हिव पढवीधर परमाण रे, खणवी मिदं सहीय सुजाण । ऊंडी पिहुली" वली तिम रे, हुइ घरनो माझेंनो जिम्म ||१८|| हिव समुद्रवारि नवि पीजइ रे, निज हाथि अगनि न खीजइ । वृक्ष वावेवा परिहार रे, मनि सूधो धरीअ विचार ||१९|| एह व्रत * सवाविसु पालुं रे, वली पांच अतीचार टालु । थूलमृषावाद हिव भणीइ, पांच मोटां कूडा सुणीइ ||२०|| २० वसा एटले एक रूपियो. महाव्रतनुं पालन २० वसा समान छे. महाव्रतना २० वसानी अपेक्षाए अणुव्रतां सवा वसा (रूपियामा एक आनी जेटलुं) अहिंसानुं पालन श्रावकजीवनमां थाय छे.

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