Book Title: Shrutsagar Ank 2013 06 029
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 19
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर - २९ १७ श्राविकाए ग्रहण करेल आठमा अनर्थदंडना परिहारमा कृति उल्लेखानुसार पोतानी पासे अनाज दळवानी घंटी, खांडणीयुं, सांबेलु, छरी विगेरेनो पोताना उपयोग हेतुं ज वपराश करवो, परंतु अन्य कोईने आपवा नही, कारण प्रसंगे लेवा आवे तो अन्य कुटुंबी लई गया छे. एम कहेवू. आ प्रकारना कथनथी व्रत पालननी तत्परता साथे व्यवहारीक सूझ पण जणाइ आवे छे. केटलाक विशेष नियमो कृतिमां जणाव्या छे. रोज एक नवकार- स्मरण करीने भोजन करवू, भोजन करतां पहेलां दिशावलोकन एटले नजरनी मर्यादामां कोई महात्मादि देखाय अने योग मळे तो एमने वहोरावी भोजन लेवु. व्रत पालन करता अनाभोगथी व्रत तूटे तो बीजा दिवसे लीलोतरीनो त्याग करवो. कृतिमा आवता केटलाक विशेष शब्दो : पारका अर्थमां वपरायेलो पीआरी शब्द ध्यान खेंचे छे, तो खेतरमां बंधाता मांचडाना अर्थमां माला शब्दनो प्रयोग बहु अर्थपूर्ण रीते लखायो छे. भूकी अर्थमां वपरातो शब्द बूकी पोतानुं मूळ स्वरूप जणावे छे, तो क्वाथ अने गोळी अर्थमा प्रयोजाता काथ, गोली शब्दमां सामान्य फेरफारो जणाय छे. उदीरणा करवू, हाथे करीने उभं करवू आ अर्थमां वपरातो शब्द उदेरी कृतिनी विशेषतामां वधारो करे छे, तो घर-वाखरो शब्द धरवखरीना अर्थने उजागर करे छे. घउंना छोडमां उपरना भाग माटे वपरातो शब्द उंबी एनी प्राचीनता सिद्ध करे छे. उंबी शब्द आजे पण घउंना डोडा माटे वपराय छे.* प्रत परिचय: ___ आ प्रत डभोई श्रीसंघना ज्ञानभंडारमाथी प्राप्त थई छे. श्रुतकार्य माटे आ रीते प्रत आपवा बदल आभार सह धन्यवाद. प्रतनुं प्रथम पत्र नथी. कुल ७ पेजनी प्रत छे. अक्षरो प्रमाणमां मोटा अने सुधड छे. प्रतमा हांसियामां अने टीप्पणमां खंडित पाठ आपवामां आव्यो छे. आ प्रत वि. सं. १७२९मां लखायेल छे. आ कृतिनी रचना वि.सं. १६८३ दर्शावी छे. ज्यारे प्रत लेखन संवत् १७२९ दर्शावेल छे. एटले आ कृति कोई अन्य आधारे उतारी होवानुं संभवे छे. *आ अर्थ अमारा कोम्प्युटर विभागमा कार्यरत मित्र संजयभाई गूर्जरे जणाव्यो छे. For Private and Personal Use Only

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