Book Title: Shrutsagar Ank 2013 06 029
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
श्रुतसागर - २९
www.kobatirth.org
दांणचोरी* वरस एकिं सो महुर ते उपर नही ।
सहि* गुरु केरां वचन पालुं वांछित सुख पामुं सही ||१२||
व्रत चउथईजी, सीलव्रत काईं पालीइं ।
मन वचनइंजी, जयणा विशेष भालीइं । कर्म सवेमांजी, मोहिनी " दोहिलुं" जीपतां । तिम व्रतमांजी, दोहिलुं ए व्रत राखतां,
राखता दोहिलं नहीअ सोहिलुं" ए व्रत पालो खरुं । सतीय सीता शेठ सुदर्शन, ब्राह्मी चंदन मन धरुं । धन धन जे जगि सील पालई, नांम तेहनइं रंजीइं" जसुं जाणो सील पालो, मानवभवफल लीजीइ ||१३|| ||ढाल || //फागनी ।।
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पांच अणुव्रत मनि धरुं, इच्छापरिमाणनुं माण |
एक हजार वली पांचसई, महिमुंदी" रोकडी जाण ||१४||
धन धन भविजन सांभलो पालो ए व्रतनीम । चंचलपणुं सवि मुंकीइं, न चूकीइं" सकल व्रतसीम" ।।१५।।
सोनुं मोती जडित वली, सेर पांच मुझ तेह | पांच सेर रूपुं भलुं, कुटि मण पांच ज एह ||१६||
*
वर्ष दरम्यान सो महोर प्रमाण करनी जयणा.
द्विपद दास-दासी मिली, बि राखिवा मुझ खंति । जाति चतुःपद च्यार भलां, ते पणि वेला समेत ।।१७।।
For Private and Personal Use Only
१९
धन धन भविजन...
धन धन भविजन...
धन धन भविजन...
खेत्र वाडी माला * नवि करूं, वहिल तथा गाडूं एक । खडक त्रिण सहित घर हाट मुझ मोकलां, जिहां रहुं तिहां धरीअ विवेक ||१८ ! |
धन धन भविजन...

Page Navigation
1 ... 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84