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( १७ )
मल-विनिर्मुक्त सम्यक्त्व ही तीन लोक में महान है. सम्यक्त्वके आठों अंगोंमें प्रसिद्ध पुरुषोंका नाम निर्देश अंगहीन सम्यक्त्व-भवावलिको छेदने में असमर्थ है
सम्यक्त्व युक्त नारक और तिर्यंच श्रेष्ठ है पर सम्यक्त्व-रहित मनुष्य और देव श्रेष्ठ नहीं
एक मुहूर्त मात्र भी सम्यक्त्वको धारण कर उसे छोड़ने वाला पुरुष भी दोर्घ कल तक संसार में नहीं रहता
सम्यक्त्वके भेद और उनका स्वरूप
सम्यक्त्वी जीव दुर्गतिमें उत्पन्न नहीं होता
क्षायिक सम्यक्त्वी जीव उसो भव में, या तीसरे चौथे भवमें तो नियमसे सिद्ध पदको प्राप्त करता है ।
सम्यक्त्वके अतिचार
सम्यक्त्वके होने पर ही व्रतादि सफल हैं, अन्यथा व्यर्थ हैं
सम्यक्त्वके आठ गुण, तथा संवेगादि भावोंसे सम्यक्त्वीकी परीक्षा होती है अविरत सम्यक्त्वी पुरुष विषयोंको सेवन करने पर भी पापों से अधिक पीड़ित नहीं होता है
द्वितीय अधिकार
श्रावकके तीन भेद - पाक्षिक, नैष्ठिक, साधक और उनका स्वरूप नैष्ठिक श्रावक के प्रतिमारूप ग्यारह भेदोंके नाम
दर्शनिक श्रावकका स्वरूप
आठ मूल गुणोंका निरूपण
मद्य दोषोंका विस्तृत वर्णन
मांसके दोषों का विस्तृत वर्णन
त्रस प्राणिज होने पर भी दुग्धकी भक्ष्यता और मांसकी अभक्ष्यताका सयुक्तिक वर्णन
काक-मांसके भी त्याग करनेवाले खदिरसारकी कथाका वर्णन और श्रेणिक रूपसे जन्म लेनेका उल्लेख
ग्रन्थान्तर के अनुसार खदिरसारके कथानकका प्रकारान्तरसे वर्णन खदिरसारका जीव मैं हूँ, यह जानकर राजा श्रेणिकका विस्मित होकर आनन्दा - पूरित होना
मधु दोषोंका निरूपण
मधुके समान नवनीत और पञ्च क्षीरी फलोंके त्यागका उपदेश मद्य, मांस और मधु त्यागके अतिचारोंका निरूपण प्रकारान्तरसे आठ मूलोंका निरूपण
सप्त व्यसनों में से एक-एक व्यसनके सेवनसे महान् दुःख पानेवालोंके नामोंका निर्देश
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